दीपक गौतम, सतना मध्य प्रदेश से
प्रिय मुनिया,
मेरी गिलहरी तुम आज पूरे तीन साल की हो गई हो। इस बार भी तुम्हें पत्र लिखने में पूरा एक साल बीत गया। तुम्हें पिछला पत्र तुम्हारे पहले जन्म दिन पर एक साल पहले 27 जनवरी 2024 को लिखा था। हद तो ये हुई कि तुम्हारा जन्म दिन बीतने के लगभग एक पखवाड़े बाद तुम्हें ये लिखने की कोशिश कर रहा हूँ, जब तुम मेरे पास यहाँ नहीं हो। हाँ, इन दिनों तुम नानी के पास अहमदाबाद में कोहराम मचा रही हो। लेकिन तकनीक के सहारे मैं फेसबुक पर इस पत्र को बड़ी चालाकी से तुम्हारे जन्म दिन वाले पोस्ट की डेट पर ही टाइमलाइन में चस्पा करने जा रहा हूँ। हालाँकि मुझे यह नहीं पता है कि जब तुम ये पत्र पढ़ने लायक होगी, तब ये बचेंगे या नहीं। ये तकनीक रहेगी या नहीं। ऑरकुट की तरह फेसबुक भी आभासी पटल से गायब तो नहीं हो जाएगा। बहरहाल तुम चिन्ता मत करो, इनको सहेजने के हजार तरीके हैं और किसी न किसी तरीके से इन्हें तुम तक पहुँचा ही दिया जाएगा। क्योंकि तुम्हारे लिए लिखा हुआ जब तक तुम न पढ़ लो, मुझे चैन कैसे मिलेगा। तुम्हारे चेहरे के हाव-भाव देखने के लिए मैं लालायित हूँ। हालाँकि इसके लिए मुझे कुछ साल और इंतजार करना पड़ेगा।
प्रिय मुनिया,
मैं चाहता हूँ कि मेरे शब्द और उनमें छिपी मेरी भावनाएँ तुम तक जरूर पहुँचें। ये वाजिब ही है कि इसके लिए मुझे इंतजार करना पड़ेगा। क्योंकि अभी तो तुमने बोलना शुरू ही किया है। पिछले एक साल में अब तुम पूरी ‘कॉपी कैट’ हो चुकी हो। कुछ भी कहा हुआ झट से लपक लेती हो और वो शब्द तुम्हारे शब्दकोष के खाते में हमेशा के लिए जमा हो जाता है। इसलिए मेरी प्रिंसिस अब आपके सामने शब्द बड़े सँभालकर और वाक्य बहुत ही करीने से सजाकर बोलने पड़ते हैं। एक भी गलत शब्द आपके शब्दकोष के लिए भारी पड़ जाता है। क्योंकि उसका खमियाजा हमें भुगतना पड़ता है। यूँ ही एक शब्द से हम लोग अब तक दो-चार हो रहे हैं। फिलहाल मैं यहाँ उसका जिक्र नहीं करूँगा, क्योंकि उसकी तुमने पूरी राइम बना ली है और जब धुन में आ जाए उसे गाती ही रहती हो। इसलिए अब आपकी सुनकर सीखने और रटने से अलग लिखने की भी कक्षा शुरू होने जा रही है। पन्द्रह रोज बाद नानी के घर से लौटते ही मेरी बिटिया रानी, आपका स्कूल शुरू हो जाएगा। तुम्हारी माता जी ने इसका समुचित इंतजाम कर दिया है और इस बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर आपका विद्यालय में प्रवेश और पाटी-पूजन सम्पन्न भी हो चुका है।
प्रिय मुनिया,
तुम्हारे दो-चार नामों में से यज्ञा ज्यादा प्रचलित हो गया है। तुम्हारा घर का नाम निवेदिता ( निवि) घरवालों में से कुछ ही लोग कहते हैं। खासकर तुम्हारे दोनों दादा (आरव और शौर्य) सहित ताऊ और ताई जी ही बुलाते हैं। बीते सालभर में देश-दुनिया के हाल बहुत बदल गए हैं, लेकिन उसकी बात करने में मेरी और तुम्हारी बतकहियों का हिसाब इस चिट्ठी में नहीं हो पाएगा। इसलिए इस दौर की वो सब जानकारी तुम्हें ‘गूगल बाबा’ या मैं दोनों में से जो भी जिन्दा रहा दे ही देगा। चाहे वो देश के चुनावों का हाल हो, राजनीति का, घपले- घोटालों का, विवादों का, आपदाओं का, दुर्घटनाओं का या महाकुम्भ में हुई मौतों का सबका जिक्र इस कालखंड के इतिहास में मिल ही जाएगा। लेकिन एक सामान्य पिता के मन की बात पुत्री तक किसी भी इतिहास के माध्यम से शायद ही पहुँच सके। क्योंकि मैं पंडित नेहरू नहीं और तुम इन्दिरा नहीं हो। हम आम लोग हैं ‘मैंगो पीपुल’। हमारा जीवन कहीं दर्ज नहीं होता। इसलिए मेरे मन के भाव तो मेरे शब्द ही पहुँचा सकेंगे। इसलिए तुम सुनो कि तुम्हारी बदमाशियाँ लगातार बढ़ी हैं, तुम गिलहरी की तरह फुदकने से अब एक कदम आगे बन्दर की तरह काटने भी लग गई हो। मुझे दो से तीन बार लहुलुहान करने के बाद हाल ही में तुमने अपनी माँ को इतना जोरदार तरीके से काटा था कि पूरे सात दाँतों के निशान उसके चेहरे पर थे। शाम तक काफी सूजन और फिर टिटनेस का इंजेक्शन लेना पड़ा। ये तो तुम्हारे दाँत चलने की एक कथा है l ठीक इसी तरह तुम्हारे हाथ और पैर भी बेहिसाब चलते हैं। अरे हाँ, उसी से मेल खाती तोते की तरह पटर- पटर चलती तुम्हारी जबान के तो क्या ही कहने। सुनकर दिल गदगद हो जाता है। तुम तोतली जबान में मुझे अक्सर फोन पर कभी गुड़िया तो कभी कोई खिलौने या कोई और खाने की फरमाइश करती हो। कई बार ऑफिस जाने से ये कहकर रोकती हो कि ‘आद पापा को ऑफिस नई दाना है’। कभी तुम्हें अपनी मम्मा के ऑफिस का सारा काम खुद ही लैपटॉप पर खत्म करना होता है और तुम चट से बोलती हो ‘अब मैं मीतिग काम क्लुँगा मम्मा ठीक है’।
प्रिय मुनिया,
मेरी बच्ची आज तुम्हें नानी के यहाँ गए हुए ये तीसरा दिन है। मैं शाम को जब ऑफिस से घर लौटता हूँ, तो डोर वेल को देखकर ठिठक जाता हूँ। घर पर जड़े ताले को अनमने ढंग से खोलता हूँ। जबकि तुम्हारे रहने पर अन्दर से ही तुम्हारी आवाज आ जाती थी कि ‘पापा आ गए ‘ और दरवाजा खुलते ही तुम मेरे गले से चिपट जाती थी। यकीन मानो तुम्हारे पापा-पापा बोलते ही बिजनेस की दिनभर की झंझट और थकान हवा हो जाती थी। तुम्हारे साथ खेलते-खेलते हम पिता लोग खुद का बचपन भी जी लेते हैं। मैं तुम्हारे बाबा और अपने पिता को इसी बहाने अब और ज्यादा समझ पाता हूँ। क्योंकि पिता के प्रेम पर आज भी बहुत कम बात होती है, क्योंकि उसकी छवि धीर-गम्भीर और जिम्मेदारियों से लदे एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर होती है, जिसके चेहरे पर झुर्रियाँ भले आ जाएँ थकान नहीं दिखती। मन के अन्दर कितना भी तूफान मचा हो, लेकिन चेहरे से मुस्कान नहीं हटती। अपने पिता के प्रेम और उसकी सख्ती के बीच छिपे अपार स्नेह को और गहराई से समझ पाते हैं। क्योंकि मैं तो उस पीढ़ी से हूॅ जहाँ हमें पिता का ‘मौन प्रेम’ ही प्राप्त हुआ है। क्योंकि आज से चार दशक पहले एक बाप अपनी औलाद को अपने बाप के सामने खुलकर प्यार-दुलार देता था, तो उसे समाज में गरिमापूर्ण नहीं मानते थे। अपने स्वयं के बच्चों को अपने ही माँ-बाप के सामने गोद में उठा लेना भी असहज करने वाला बर्ताव होता था। मुझे जितना याद है कि मैं काफी बड़ा होने के बाद ही खुलकर अपने पिता के गले लग सका। अहा कितना सुखद होता है पिता के सीने से चिपट जाना। शायद तुम अभी इसका मर्म नहीं समझ सकोगी। लेकिन मैं इसे अब समझ पा रहा हूँ और तुम्हें बहुत याद करता हूँ।
अब घर सूना है। किसी भी कोने से तुम्हारी आवाज नहीं आती है, तो लगता है कि आज का दिन कुछ अधूरा है। तुम्हारे खिलौने इधर-उधर बिखरे पड़े हैं। उन्हें समेटकर रखने का मन नहीं होता है। तुम्हारी स्कैच बुक, पेंसिल और चाक सहित गुड्डे- गुड़ियाँ मेरे बिस्तर पर वहीं आराम कर रहे हैं, जहाँ तुमने उन्हें छोड़ा था। सिरहने पर पड़ा तुम्हारा पसन्दीदा टेडी बियर इस वक्त मेरी आँखों में आँखें डालकर मुझे घूर रहा है। जैसे कह रहा हो कि मेरी यज्ञा दीदी कहाँ है? यूँ तो तुमसे तकनीक के सहारे वीडियो कॉल पर दिनभर में कभी भी बात हो जाती है, मगर तुम्हारे पास होने का एहसास अलग है मेरी बच्ची। तुम्हें गले से चिपटाकर सारी चिन्ताएँ गायब हो जाती हैं। असल में तुम वो जादू की पुड़िया हो, जिसके पास आते ही मन की सारी पीड़ा हर जाती है। तुम वो प्यारा तोता हो जिस पर हमारी जान बसती है। इसीलिए मैंने तुम्हारे पसन्दीदा टेडी बियर को कम्बल से ढँक दिया है। अब उसकी और मेरी आँखें मौन की भाषा में तुम्हारे आने तक एक-दूसरे से तुम्हारे बारे में बतियाती रहेंगी। अब हमारी चुप्पियाँ तुम्हारे इंतजार में हैं कि तुम जल्दी आना….।
शेष समाचार अगले पत्र में। तुम्हें ढेर सारा प्यार और दुलार मेरी गिलहरी। 💝 एक बार फिर तीसरे जन्म दिवस की ढेरों शुभकामनाएँ।
– तुम्हारा पिता
-27 जनवरी 2025
© Deepak Gautam
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लव यू मेरी जान ❣️ हैप्पी बर्थ डे 😘
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(दीपक, स्वतंत्र पत्रकार हैं। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में लगभग डेढ़ दशक तक राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, राज एक्सप्रेस तथा लोकमत जैसे संस्थानों में मुख्यधारा की पत्रकारिता कर चुके हैं। इन दिनों अपने गाँव से ही स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। इन्होंने बेटी के लिए लिखा यह बेहद भावनात्मक पत्र के ई-मेल पर अपनी और बेटी की तस्वीर के साथ #अपनीडिजिटलडायरी तक भेजा है।)
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अपनी बेटी के नाम दीपक की पिछली चिटि्ठयाँ
6 – बेटी के नाम छठवीं पाती : तुम्हारी मुस्कान हर दर्द भुला देती है
5- बेटी के नाम पाँचवीं पाती : तुम्हारे साथ बीता हर पल सुनहरा है
4. बेटी के नाम चौथी पाती : तुम्हारा होना जीवन की सबसे ख़ूबसूरत रंगत है
3. एक पिता की बेटी के नाम तीसरी पाती : तुम्हारा रोना हमारी आँखों से छलकेगा
2. एक पिता की बेटी के नाम दूसरी पाती….मैं तुम्हें प्रेम की मिल्कियत सौंप जाऊँगा
1. प्रिय मुनिया, मेरी लाडो, आगे समाचार यह है कि…