टीम डायरी
एपल के संस्थापक स्टीव जॉब्स आज भी बहुत लोगों के प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। उनके काम, उनकी बातें आज तक लोगों को याद हैं। ऐसी ही कुछ बातों में उनकी सफलता के पाँच अहम सूत्र भी शामिल हैं। ये ऐसे सूत्र हैं, जिन्हें कभी भी, कहीं भी प्रयोग में लाकर सफलता को छुआ जा सकता है।
पहला सूत्र : एक साथ, एक हजार चीजें नहीं करनी
ज़्यादातर लोगों को पता है कि स्टीव जॉब्स ने जिस एपल कम्पनी को स्थापित किया, उसी से उन्हें 1985 में निकाल दिया गया। हालाँकि उनके जाते ही कम्पनी को नुक़सान होने लगा और आख़िरकार 1997 में उन्हें कम्पनी में वापस ले लिया गया। आते ही उन्होंने कम्पनी के उत्पादों की छँटनी कर दी। उस समय कम्पनी लगभग 350 उत्पाद बनाती थी। स्टीव जॉब्स अगले दो साल में यह संख्या घटाकर 10 पर ले आए। कारण? उनका स्पष्ट मानना था कि एक साथ, एक हजार चीजें नहीं करनी। चुनिन्दा चीजें हाथ में लें और उनमें अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दें। जो चीजें ठीक से न हो पाएँ, उन्हें बिना किसी अफ़सोस के छोड़ दें। वे कहते थे, “मुझे जितना गर्व अपने किए हुए काम पर है, उतना ही उन कामों पर है जो मैं नहीं करता।”
दूसरा सूत्र : पाने की भूख, सीखने की छटपटाहट
इस सूत्र को उन्होंने अंग्रेजी में कहा था, ‘स्टे हंगरी, स्टे फूलिश’। इस कथन का शाब्दिक अनुवाद तो ठीक नहीं होगा, अलबत्ता भावात्मक अर्थ ये है कि हमारे अन्दर “कुछ पाने की भूख होनी चाहिए और लगातार कुछ न कुछ सीखने की छटपटाहट भी।’ वे मानते थे कि हमें किसी भी सीमा पर सन्तुष्ट होकर नहीं बैठना है, बल्कि अपने प्रयास और परिणामों की सीमा को लगातार आगे की ओर धकेलते रहना है।
तीसरा सूत्र : अपनी बात को रोचकता से लोगों तक पहुँचाना
स्टीव जॉब्स अपनी बात को लोगों तक रोचक तरीके़ से पहुँचाते थे। यहाँ तक कि कोई नया उत्पाद बाज़ार में उतारना हो, तब भी वे उसे सीधे-सादे तकनीकी तरीक़े के बजाय क़िस्से-कहानी की सूरत में लोगों के सामने पेश किया करते थे। इससे लोगों की उस उत्पाद में उतनी ही दिलचस्पी जागृत होती थी और जितनी कि स्टीव जॉब्स की सुनाई कहानी में। इसी कारण उन्हें ‘मास्टर ऑफ मैसेज’ भी कहा जाता था।
चौथा सूत्र : लोगों के सपनों के साथ अपनी बात, अपना उत्पाद जोड़ना
व्यावसायिक भाषा में इसे ‘सपने दिखाना’ या ‘सपने बेचना’ कहते हैं। लेकिन अगर व्यावसायिक सोच से दूर होकर इसे समझें तो हम लोगों के सपनों के साथ अपनी बात, अपना उत्पाद, अपने कार्य को जोड़कर ज़्यादा सफल हो सकते हैं। उदाहरण के लिए याद कीजिए हिन्दुस्तान की मोबाइल क्रान्ति। वैसे तो हिन्दुस्तान में मोबाइल की शुरुआत 1995 में तत्कालीन केन्द्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम के कार्यकाल में ही हो गई थी। लेकिन अगले पाँच-छह साल तक आम आदमी के लिए मोबाइल रखना, एक सपना ही रहा। लेकिन फिर 2001 में आई धीरूभाई अम्बानी की ‘आरकॉम’। उसने आम आदमी के मोबाइल के सपने के साथ अपना उत्पाद (501 रुपए में सिम के साथ रिलायंस का मोबाइल) जोड़ दिया। नारा दिया, ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में’ और देखते-देखते मोबाइल की सूरत में पूरी दुनिया करोड़ों लोगों की मुट्ठी में आ गई।
पाँचवाँ सूत्र : रचनात्मकता तब आती है, जब हम चीजों से जुड़ते हैं
स्टीव जॉब्स का मानना था कि असली “रचनात्मकता तब आती है, जब हम चीजों से जुड़ते हैं।” यानि अगर हम संगीत से जुड़ जाएँ तो उसे अपने साज़ पर उतार सकते हैं। प्रकृति से जुड़ जाएँ तो उसे अपने चित्र-पटल (कैनवास) पर बिखेर सकते हैं। या ऐसे ही और चीजों को भी समझ सकते हैं। लिहाज़ा, स्टीव जॉब्स चीजों के साथ जुड़ने के लिए ध्यान, साधना का सहारा लेते थे। और इस ध्यान, साधना के लिए उन्हें हिन्दुस्तान से बेहतर कोई जगह नहीं लगी। सो, जब-तब वे अपने मुल्क़ अमेरिका को छोड़कर हिन्दुस्तान का दौरा कर लिया करते थे। यहाँ आध्यात्म से सम्पर्क बढ़ाते, लोगों से रू-ब-रू होते। इस तरह, अपनी रचनात्मकता का दायरा भी बढ़ाते जाते।
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