पानी की कहानी, पानी की ज़ुबानी : मैं जल… मैं कल… मुझे सुनिए… मैं घायल!

देवांशी वशिष्ठ, दिल्ली से, 17/1/2021

मैं, जल, आपका प्राण। मेरी एक घूँट में ही जन्नत का आराम मिलता है। जब आप मुझे पीते हैं तो पानी हो जाता हूँ। जब सूर्य को चढ़ाते हैं, तो जल। मैं पंचमहाभूतों में से एक हूँ, जिनसे सृष्टि की रचना हुई है। मेरे बिना सब सून है। इसीलिए रहीम कह गए हैं…
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।
मैं वारि हूँ, तोय हूँ, अम्बु हूँ, सलिल हूँ, नीर भी हूँ, पय भी हूँ। बादल और कमल मुझसे बनते हैं। मेरे नामों के अन्त में ’द’ लगा तो मैं बादल बन जाता हूँ और ’ज’ लगा तो कमल बनकर खिल जाता हूँ। जैसे- नीरद, अम्बुद, तोयद, वारिद, जलद, पयोद। ये सब बादल के पर्याय हैं। वहीं, नीरज, अंबुज, जलज, ये सब कमल के नाम हैं। विज्ञान में मुझे H2O कहा गया है।
पहले मुझे आप कूपों और नलकूपों से निकालते थे। अब मैं नलों के ज़रिए सीधे आपके घरों तक पहुँचता हूँ। मैं स्थिर तालाबों में हूँ, धरती का संगीत रचती बूँदों में हूँ, विशाल समुद्रों में हूँ और कलकल बहती नदियों में हूँ। जब आप मुझे नदियों में बहता देखते हैं, तो विचलित मन भी शीतल हो जाता है। न मेरा कोई रंग है, न रूप। इसीलिए वो गीत भी है, ‘पानी रे पानी तेरा रंग कैसा, जिसमें मिला दो लागे उस जैसा…।’ मैं जब बरसात बनकर आता हूँ तो किसानों के लिए अमृत के समान होता हूँ।
मुझसे ही आपके सारे दैनिक काम पूरे होते हैं। लेकिन आप मेरी परवाह नहीं करते। आपकी बहुत छोटी-छोटी-सी बातें हैं, जो मुझे बड़ी तकलीफ़ पहुँचाती हैं। जैसे- जब माँ अपने बच्चे को दूध पिलाती है, तो डाँट-डपटकर पूरा गिलास पिला देती है। लेकिन जब गिलास में मैं होता हूँ तो फेंक दिया जाता हूँ। क्यों? क्या मेरा कोई मोल नहीं? ठीक है कि पृथ्वी के 71% हिस्से पर मैं ही मैं हूँ, पर आप यह मत भूलिए  कि उसमें से सिर्फ़ एक प्रतिशत ही ऐसा है, जिसे आप लोग उपयोग में ले सकते हैं। और वो एक प्रतिशत आपको कूपों-नदियों में मिलता है। लेकिन आप तो मुझे वहाँ भी नहीं रहने दे रहे हैं। कूप सूख ही चुके हैं। नदियों के किनारे बड़ी-बड़ी इमारतें, उद्योग खड़े कर उनका सारा कचरा नदियों में ही डालकर मुझे प्रदूषित किया जा रहा है। इसमें रासायनिक कचरा भी होता है, जो मेरे लिए तो हानिकारक है ही, मुझमें रहने वाले जीवों के लिए भी जानलेवा है। आप समुद्र तट पर आते हो, मेरे पास बैठते हो, मुझमें डुबकी लगाते हो। मैं आपको आनन्द देता हूँ और आप मुझे कचरा देते हो। मुझे इससे बड़ी तकलीफ़ होती है। जब मेरी तकलीफ़ बढ़ जाती है तो वही तकलीफ़ बाढ़ या अकाल का आकार ले लेती है और फिर तबाही आती है।
तबाही कोई नहीं चाहता। मैं भी नहीं, आप भी नहीं। इसे रोकना है, तो मुझे बचाना होगा। मेरा संरक्षण करना होगा। संरक्षण के कई उपाय हैं और वो आप जानते भी हैं। बस लापरवाही छोड़िए। मैं आपसे प्रेम करता हूँ। आप भी मुझसे प्रेम कीजिए। आगर आपको अपना भविष्य बचाना है, तो मुझे बचाना होगा। आपको समझना होगा कि मैं जल, सिर्फ जल नहीं, आपका कल हूँ और आज घायल हूँ… मुझे सुनिए।
——-
(देवांशी 8वीं में पढ़ती हैं। दिल्ली के द्वारका में सचदेवा ग्लोबल स्कूल की छात्रा हैं। कला में विशेष रुचि है। बाल पत्रिकाओं के ज़रिए पढ़ने की आदत लगी। अब खाली समय में कहानियाँ और उपन्यास पढ़ती हैं। उन्होंने ये लेख व्हाट्स एप सन्देश के जरिए #अपनीडिजिटलडायरी को भेजा है। )

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Apni Digital Diary

Share
Published by
Apni Digital Diary

Recent Posts

सरल नैसर्गिक जीवन मतलब अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी!

मानव एक समग्र घटक है। विकास क्रम में हम आज जिस पायदान पर हैं, उसमें… Read More

3 days ago

कुछ और सोचिए नेताजी, भाषा-क्षेत्र-जाति की सियासत 21वीं सदी में चलेगी नहीं!

देश की राजनीति में इन दिनों काफ़ी-कुछ दिलचस्प चल रहा है। जागरूक नागरिकों के लिए… Read More

4 days ago

सवाल है कि 21वीं सदी में भारत को भारतीय मूल्यों के साथ कौन लेकर जाएगा?

विश्व-व्यवस्था एक अमूर्त संकल्पना है और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले घटनाक्रम ठोस जमीनी वास्तविकता… Read More

5 days ago

महिला दिवस : ये ‘दिवस’ मनाने की परम्परा क्यों अविकसित मानसिकता की परिचायक है?

अपनी जड़ों से कटा समाज असंगत और अविकसित होता है। भारतीय समाज इसी तरह का… Read More

1 week ago

रिमोट, मोबाइल, सब हमारे हाथ में…, ख़राब कन्टेन्ट पर ख़ुद प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगाते?

अभी गुरुवार, 6 मार्च को जाने-माने अभिनेता पंकज कपूर भोपाल आए। यहाँ शुक्रवार, 7 मार्च… Read More

1 week ago