टीम डायरी, 4/7/2021
1. इसलिए माँ का स्थान सबसे ऊपर :
स्वामी विवेकानन्द जी से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया, “माँ की महिमा संसार में किस कारण से गाई जाती है?” स्वामी जी मुस्कराए। उस व्यक्ति से बोले, “पाँच सेर वजन का एक पत्थर ले आओ।” जब व्यक्ति पत्थर ले आया तो स्वामी जी ने उससे कहा, “अब इस पत्थर को किसी कपड़े में लपेटकर अपने पेट पर बाँध लो। चौबीस घंटे बाद मेरे पास आओ तो मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूँगा।” स्वामी जी के आदेशानुसार उस व्यक्ति ने पत्थर को अपने पेट पर बाँध लिया और चला गया। पत्थर बँधे हुए दिनभर वह अपना कम करता रहा। किन्तु हर क्षण उसे परेशानी और थकान महसूस हुई। शाम होते-होते पत्थर का बोझ सँभाले हुए चलना-फिरना उसके लिए असह्य हो उठा। वह थका-माँदा स्वामी जी के पास पहुँचा और बोला, “मैं इस पत्थर को अब और अधिक देर तक बाँधे नहीं रख सकूँगा। एक प्रश्न का उत्तर पाने के लिए मैं इतनी कड़ी सजा नहीं भुगत सकता।”
स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले, “पेट पर इस पत्थर का बोझ तुमसे कुछ घंटे भी नहीं उठाया गया। माँ अपने गर्भ में शिशु को पूरे नौ माह तक ढोती है। ग्रहस्थी का सारा काम करती है। संसार में माँ के सिवा कोई इतना धैर्यवान और सहनशील नहीं। इसलिए माँ से बढ़कर इस संसार में कोई और नहीं।”
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2. भय से भागना नहीं, उसका सामना करना :
एक बार बनारस में स्वामी जी दुर्गा जी के मन्दिर से निकल रहे थे। तभी वहाँ मौजूद बहुत सारे बन्दरों ने उन्हें घेर लिया। वे उनके नज़दीक आने लगे। डराने लगे। स्वामी जी भयभीत हो गए। ख़ुद को बचाने के लिए दौड़कर भागने लगे। पर बन्दर तो मानो पीछे ही पड़ गए और वे उन्हें दौड़ाने लगे। पास खड़ा एक वृद्ध संन्यासी ये सब देख रहा था। उसने स्वामी जी को रोका और बोला, “रुको। उनका सामना करो।” स्वामी जी तुरन्त पलटे और बन्दरों के तरफ बढ़ने लगे, “ऐसा करते ही सभी बन्दर भाग गए।”
इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर सीख मिली। कई सालों बाद उन्होंने एक सम्बोधन में कहा भी, “यदि तुम कभी किसी चीज़ से भयभीत हो, तो उससे भागो मत। पलटो और सामना करो।”
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3. अपने लक्ष्य पर दृष्टि रखना, दूसरों पर नहीं :
एक बार स्वामी विवेकानन्द के आश्रम में एक व्यक्ति आया। वह बहुत दुखी लग रहा था। आते ही वह स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा। बोला, “महाराज मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ। मैं अपने दैनिक जीवन में बहुत मेहनत करता हूँ। काफ़ी लगन से काम करता हूँ। फिर भी सफल नहीं हो पाया। भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है कि मैं पढ़ा लिखा और मेहनती होते हुए भी कभी कामयाब नहीं हो पाया हूँ।” स्वामी जी उस व्यक्ति की परेशानी को पल भर में ही समझ गए। उन दिनों स्वामी जी के पास एक छोटा सा पालतू कुत्ता था। उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, “तुम कुछ दूर जरा मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ। फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा।” आदमी ने बड़े आश्चर्य से स्वामी जी की ओर देखा और फिर कुत्ते को लेकर कुछ दूर निकल पड़ा। काफी देर तक अच्छी ख़ासी सैर करा कर वह वापस स्वामी जी के पास पहुँचा। स्वामी जी ने देखा कि उस व्यक्ति का चेहरा अब भी चमक रहा था। जबकि कुत्ता हाँफ रहा था। बहुत थका हुआ लग रहा था। स्वामी जी ने उस व्यक्ति से कहा, “ये कुत्ता इतना ज़्यादा कैसे थक गया। जबकि तुम तो अब भी बिना थके दिख रहे हो? तो व्यक्ति ने कहा, “मैं तो सीधा अपने रास्ते पर चल रहा था। लेकिन ये कुत्ता गली के सारे कुत्तों के पीछे भाग रहा था। लड़कर फिर वापस मेरे पास आ जाता था। हम दोनों ने एक समान रास्ता तय किया है। लेकिन फिर भी इस कुत्ते ने मेरे से कहीं ज्यादा दौड़ लगाई है। इसीलिए ये थक गया है।”
स्वामी जी ने मुस्कुरा कर कहा, “यही तुम्हारे सभी प्रश्नों का ज़वाब है। तुम्हारी मंज़िल तुम्हारे आस-पास ही है। लेकिन तुम उस पर दृष्टि रखने की बजाय दूसरे लोगों के पीछे भागते रहते हो। अपना श्रम नाहक जाया करते रहते हो। और अपने लक्ष्य से दूर रह जाते हो।”
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4. हम जैसा सोचते रहते हैं, वैसे ही हो जाते हैं :
एक बार स्वामी विवेकानन्द के पास एक आदमी आया। उसने पूछा, “प्रभु! भगवान ने हर इंसान को एक जैसा बनाया। फिर भी कुछ लोग अच्छे होते हैं, कुछ बुरे। कुछ सफल होते हैं, कुछ असफल। ऐसा क्यों ?” स्वामी जी ने नम्रतापूर्वक कहा, “मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ। ध्यान से सुनो। कहा जाता है कि ये धरती रत्नगर्भा है। यहाँ जन्म लेने के लिए देवी-देवता भी तरसते हैं। एक बार की बात है कि देवी-देवताओं की सभा चल रही थी कि इंसान इतना विकसित कैसे है? कैसे वह इतने बड़े-बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है? ऐसी कौन सी शक्ति है, जिसके दम पर इंसान असम्भव को सम्भव कर डालता है? सारे देवी-देवता अपने-अपने विचार रख रहे थे। कोई बोल रहा था कि समुद्र के नीचे कुछ ऐसा है, जो इंसान को आगे बढ़ने को प्रेरित करता है। कोई बोल रहा था कि पहाड़ों की चोटी पर कुछ है। अन्त में एक बुद्धिमान ने उत्तर दिया कि इंसान का दिमाग ही ऐसी चीज़ है, जो उसे हर कार्य करने की शक्ति देती है। मानव का दिमाग बहुत अद्भुत चीज़ है। जो इंसान इसकी शक्ति को पहचान लेता है, वह कुछ भी कर गुजरता है। उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। वहीं, जो लोग दिमाग की ताकत का प्रयोग नहीं करते, वे जीवन भर संघर्ष ही करते रह जाते हैं। हर इंसान की जय-पराजय उसके दिमाग के काम करने की क्षमता पर निर्भर है। ये दिमाग ही वह दैवीय शक्ति है, जो एक सफल और असफल इंसान में फर्क पैदा करती है। सारे देवी-देवता इस उत्तर से बड़े प्रसन्न हुए।”
इसके बाद स्वामी जी ने आगे कहा, “हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। ख़ुद को कमज़ोर मानेंगे तो कमज़ोर हो जाएँगे, सक्ष्म-शक्तिशाली मानेंगे, तो वैसे हो जाएँगे। यही कारण है कि कुछ लोग सफल होते हैं, कुछ असफल।”
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(स्वामी विवेकानन्द की चार जुलाई को पुण्यतिथि होती है। उनके जीवन की इन रोचक कहानियों से हम कुछ प्रेरणा ले सकें। अपने जीवन में इनका कुछ अंश उतार सकें। इसी उद्देश्य से #अपनीडिजिटलडायरी पर इन्हें दर्ज़ किया गया है। हालाँकि इन्हें पढ़ने, इनसे सीखने के लिए किसी दिन विशेष की आवश्यकता नहीं है।)