South Africa

टेस्ट क्रिकेट चैम्पियन दक्षिण अफ्रीका : सफलता उसी को मिलती है, जो प्रतीक्षा कर सकता है

टीम डायरी

दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम ने शनिवार, 14 जून को इतिहास रच दिया। उसने पाँच दिनी मैचों की विश्व चैम्पियनशिप (2023-25) के फाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलियाई टीम को पाँच विकेट से हराकर ख़िताब अपने नाम कर लिया। इंग्लैण्ड के लॉर्ड्स क्रिकेट मैदान पर यह मुक़ाबला हुआ, जो चौथे दिन ही ख़त्म हो गया। जीत के लिए दक्षिण अफ्रीका को 282 रन बनाने थे, जो उसने बिना किसी परेशानी के बनाकर 27 सालों बाद कोई बड़ी ख़िताबी जीत हासिल की। इससे पहले अफ्रीकी टीम ने 1998 में चैम्पियन्स ट्रॉफी का फाइनल मुक़ाबला जीता था।

अलबत्ता, क्रिकेट के तीन अलग-अलग प्रारूपों (टी-20, वनडे और टेस्ट) की विश्व कप जैसी प्रतियोगिता दक्षिण अफ्रीका ने अब से पहले कभी नहीं जीती थी। बल्कि आलम यह होता था कि दक्षिण अफ्रीकी टीम ऐसी तमाम प्रतियोगिताओं में बढ़िया खेल दिखाती। इसके बलबूते कभी सेमीफाइनल तो कभी फाइनल तक भी पहुँचती, लेकिन वहाँ हार जाती। इस चक्कर में उसे ‘चोकर’ तक कहा जाने लगा था। ‘चोकर’ शब्द के दो मतलब होते हैं। हिन्दी भाषा में ‘चोकर’ उसे कहते हैं, जो आटा छानने के बाद मोटा-मोटा सा बारीक़ दाना छलनी में बच जाता है। जबकि अंग्रेजी में ‘चोकर’ उसे कहते हैं, जो महत्त्वपूर्ण मौक़ों पर ‘चोक’ हो जाता है, अवरुद्ध या विफल हो जाता है।

‘चोकर’ शब्द का चाहे हिन्दी अर्थ लें या अंग्रेजी वाला, दक्षिण अफ्रीका पर अब तक यह लफ़्ज़ पूरी तरह सटीक बैठता था। सम्भवत: इसीलिए जब चौथी पारी में ऑस्ट्रेलिया ने उसे ख़िताब के लिए 282 रन बनाने की चुनौती दी, तो अधिकांश जानकारों ने आशंकाएँ जताईं। कहा जाने लगा कि शायद यह टीम इतने स्कोर तक पहुँच नहीं पाएगी। पहली पारी में तो पूरी टीम महज़ 138 रन पर पवेलियन लौट भी गई थी। आशंकाएँ इसलिए भी अधिक जताई जा रहीँ थीं। लेकिन एडेन मार्करम (136 रन) और कप्तान तेम्बा बवूमा (66 रन) आशंकाएँ निर्मूल कर दीं। आख़िर, दक्षिण अफ्रीका ने ‘चोकर’ का धब्बा हटाते हुए अपने माथे पर लिख ही लिया, ‘टेस्ट क्रिकेट का विश्व चैम्पियन’

दक्षिण अफ्रीका की इस उपलब्धि से दो-तीन सबक उभरकर सामने आए, जो ज़िन्दगी में हर जगह काम आ सकते हैं। इनमें पहला- सफलता उसी को मिलती है, जो पूरे धैर्य के साथ निरन्तर प्रयास करते हुए उसकी प्रतीक्षा कर सकता है। दक्षिण अफ्रीका ने यही किया और सफलता उसकी हुई। दूसरा- नेतृत्त्व करने वाले नायक के सामने पीछे हटने का कोई विकल्प नहीं होता। दक्षिण अफ्रीकी कप्तान तेम्बा बवूमा जब दूसरी पारी में बल्लेबाज़ी करने उतरे तो शुरू में ही उनके पैर की मॉसपेशियों में खिंचाव आ गया। उन्हें चलने में भी तक़लीफ़ होने लगी, लेकिन उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा। उन्होंने न सिर्फ़ अर्धशतक बनाया, बल्कि टीम को जीत के क़रीब भी ले गए। बवूमा जब तीसरे विकेट के रूप में आउट हुए, तब उनकी टीम को जीत के लिए सिर्फ़ 65 रन चाहिए थे। तीसरा सबक- अहम मौक़ों पर छोटी सी ग़लती भी बहुत बड़ी हो जाती है, भारी पड़ जाती है। दक्षिण अफ्रीका की दूसरी पारी में उसके सलामी बल्लेबाज़ एडेन मार्करम का कैच शुरुआत में ही ऑस्ट्रेलिया ने टपका दिया। नतीज़ा? वही मार्करम मिले हुए इस अवसर को भुनाकर अपनी टीम को जीत की दहलीज पर ले गए और इतने महत्त्वपूर्ण मुक़ाबले में मैच जिताऊ पारी खेलकर ख़ुद भी दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट के इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए। 

है न ‘रोचक-सोचक’ और ‘प्रेरक’ ‘सूचना’?

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