तो जी के क्या करेंगे… इसीलिए हम आत्महत्या रोकने वाली ‘टूलकिट’ बना रहे हैं!

डॉक्टर विनय अग्रवाल, दिल्ली

तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान, शौक़त, रुतबा पैसा, इज़्ज़त, सब है। इनमें से कोई भी चीज़ उन्हें ऐसा घातक क़दम उठाने से रोक नहीं पाती। क्यों? आख़िर कमी कहाँ रह जाती है? दरअस्ल, कमी रह जाती है, इस ऊँचाई पर भी एक अच्छे दोस्त की। अच्छे संवाद की कमी रह जाती है।

ऊँचे से ऊँचे मुक़ाम पर भी एक अच्छे राज़दार की, एक ऐसे दोस्त की कमी रह जाती है, जिसके साथ चाँदी-सोने के कप में नहीं बल्कि छोटी सी टपरी पर बैठकर मिट़्टी के कुल्हड़ में चाय पी जा सके। बेतुकी बातों पर हँसा जा सके। जिससे दिल की बात कहकर हल्का हुआ जा सके। तनाव भुलाया जा सके। एक दोस्त, एक यार, एक राज़दार, एक हमप्याला, जो कहे कि तू सब छोड़, चल चाय पीते हैं। वह, जो कहे कि मैं हूँ न तेरे साथ। आख़िर में बस, यही मायने रखता है। सारी दुनिया की धन-दौलत एक तरफ़, सारा तनाव एक तरफ़, और ऐसा दोस्त एक तरफ़। 

अब ऐसे दोस्तों, राज़दारों की कमी होती जा रही है। यहाँ तक कि रिश्तों में भी संवादहीनता बढ़ रही है। दूरियाँ बढ़ रही हैं। इसी कारण  लोग परेशान हैं। तनाव में हैं। अवसाद में चले जाते हैं। यहाँ तक कि आत्महत्या तक कर लेते हैं। बहुत पहले एक फिल्म आई थी ‘शाहजहाँ’। उसका गीत है। केएल सहगल साहब ने गाया है। बहुत लोकप्रिय हुआ था, “जब दिल ही टूट गया, हम जी के क्या करेंगे।” आजकल लगता है, जैसे हर किसी का यही हाल है।

हम रोज अपने क्लीनिक पर, मानसिक समस्याओं से जूझते लोगों से मिलते हैं। ऐसे लोग, जो तकलीफ में हैं और जिनका परिवार शायद उतना साथ नहीं दे पाता है, जितनी उन्हें उम्मीद होती है। तब उन्हें वह दोस्त याद आता है, जो उनके संग बैठकर बात कर सके, समय बिता सके। वह न मिले तो डॉक्टर याद आता है, जो किसी तरह थोड़ी राहत पहुँचा दे। और अगर वहाँ भी राहत न मिले तो फिर वह इंजेक्शन याद आता है, जो रोज़ की तक़लीफ़ से हमेशा के लिए आज़ाद कर दे। वे कहने लगते हैं, “डॉक्टर साहब वह इंजेक्शन लगा दो। बहुत हो गया। अब जाना चाहते हैं।”   

कुल मिलाकर समझने की बात ये कि अगर रोज़-रोज़ के तनाव से मुक़ाबला करने में कोई हमें सक्षम बना सकता है, तो वह है हमारा अपना दोस्त। उसके साथ की एक कप गर्म चाय, जो कहीं भी बैठकर पी जा सके। दोस्त के साथ उस एक कप चाय का महत्त्व बहुत ज़्यादा है। यही समझाने के लिए हम यहाँ इस कार्यक्रम के लिए इकट्‌ठे हुए हैं। इसे ‘पुष्पांजलि मेडिकल सेंटर’, ‘राही’, ‘स्थिर’ और #अपनीडिजिटलडायरी के साथ हमने आयोजित किया है। भारतीय चिकिस्ता संघ (आईएमए) की पूर्वी दिल्ली शाखा ने भी इस कार्यक्रम के लिए हमारा सहयोग किया है।

आइए, बात करते हैं। बात करते हैं कि आत्महत्या करने वालों की संख्या लगातार बढ़ क्यों हो रही है? ऐसे मामलों को कैसे रोका जा सकता है? रोकथाम के लिए हम में से कौन कैसे अपना योगदान दे सकता है? इस सबके बारे में बात करते हैं। इसी के लिए आज ‘आत्महत्या रोकथाम दिवस’ के अवसर पर हम यहाँ इकट्‌ठे हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनआरसीबी) के अनुसार, भारत में सालभर में लगभग दो लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं। लगभग 15 हजार तो छात्र ही हर साल आत्महत्या कर लेते हैं। कोटा जैसों शहरों में बच्चों की आत्महत्याओं के मामले देखे जा सकते हैं। ये आँकड़े साल-दर-साल बढ़ ही रहे हैं। बड़ी संख्या में तो ऐसे मामलों का पता भी नहीं चलता क्योंकि वे कहीं दर्ज़ नहीं होते। आँकड़ों में ऐसे मामलों के कारण तीन बताए जाते हैं। एक- शिक्षा से जुड़ी समस्याएँ व बेरोज़ग़ारी, दो- रिश्तों में तनाव या परिवार से जुड़े अन्य कारण, और तीन- आर्थिक चुनौतियाँ। लेकिन हमें लगता है कि सबसे ऊपर एक कारण है, व्यक्ति का एकाकीपन। आज हम आभासी (वर्चुअल) दोस्तों के बीच भी अकेले हैं।

इसीलिए हमने लक्ष्य रखा है कि हम अपने इस तरह के कार्यक्रम को दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक सीमित नहीं रखेंगे। हमें पूरे देश में इसको प्रसारित करना है। ताकि आत्महत्या के मामलों की रोकथाम के लिए हम अपनी ओर से अपना योगदान दे सकें। लोगों को तनाव-अवसाद से निज़ात दिला सकेँ। उनकी भ्रान्तियों को दूर कर सकें। उन्हें दुविधा से मुक़्त कर सकें। हम इस सबके लिए एक व्यवहारिक ‘टूलकिट’ भी बना रहे हैं। इसे हम जल्द ही सबके सामने पेश करेंगे। इस टूलकिट के इस्तेमाल से व्यक्ति आत्महत्या जैसे घातक विचारों से मुक्ति पा सकता है।  

इस ‘टूलकिट’ को बनाने में हमें आप जैसे सभी लोगों के विचारों की, सुझावों की भी ज़रूरत होगी। इसीलिए हम उम्मीद करते हैं कि आज की इस चर्चा के दौरान आप सभी लोग खुलकर हिस्सा लेंगे। अपने विचार व्यक्त करेंगे। अपने अनुभव बताएँगे। अपने सुझाव देंगे। इस तरह हम एक सार्थक लक्ष्य की ओर मज़बूती से क़दम बढ़ा सकेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि हम मिलकर आत्महत्या के मामलों को पूरी तरह चाहें रोक न सकें, पर कम अवश्य कर पाएँगे। इन्हीं शब्दों के साथ आप सभी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। कार्यक्रम में आने के लिए आप सभी का धन्यवाद। 

—– 

(डॉक्टर विनय अग्रवाल दिल्ली में रहते हैं। भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में क्रॉसले रेमेडीज़ लिमिटेड के निदेशक हैं। यह कम्पनी दिल्ली में ‘पुष्पांजलि मेडिकल सेंटर’ का संचालन करती है। दिल्ली में ही, ‘आत्महत्या रोकथाम दिवस’ पर डॉक्टर विनय ने #अपनीडिजिटलडायरी और अन्य सहभागियों के साथ मिलकर एक कार्यक्रम किया था। यह लेख उसी अवसर पर दिए गए उनके उद्बोबधन का अंश है।)

सोशल मीडिया पर शेयर करें
From Visitor

Share
Published by
From Visitor

Recent Posts

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!

बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More

10 hours ago

नमो-भारत : स्पेन से आई ट्रेन हिन्दुस्तान में ‘गुम हो गई, या उसने यहाँ सूरत बदल’ ली?

एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More

1 day ago

मतदान से पहले सावधान, ‘मुफ़्तख़ोर सियासत’ हिमाचल, पंजाब को संकट में डाल चुकी है!

देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More

2 days ago

हिन्दी दिवस :  छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, बड़ा सा सन्देश…, सुनिए!

छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More

5 days ago

ओलिम्पिक बनाम पैरालिम्पिक : सर्वांग, विकलांग, दिव्यांग और रील, राजनीति का ‘खेल’!

शीर्षक को विचित्र मत समझिए। इसे चित्र की तरह देखिए। पूरी कहानी परत-दर-परत समझ में… Read More

5 days ago

देखिए, समझिए और बचिए, भारत में 44% तक ऑपरेशन ग़ैरज़रूरी होते हैं!

भारत में लगभग 44% तक ऑपरेशन ग़ैरज़रूरी होते हैं। इनमें दिल के बीमारियों से लेकर… Read More

6 days ago