उन्होंने सीबीआई के साथ गैस पीड़तों को भी बकरा बनाया

विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 6/1/2022

भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में गैस पीड़ितों पर प्रायोगिक दवाओं के परीक्षण के खुलासे के बाद नया विवाद खड़ा हो गया है। गैस पीड़ितों ने मरीजों पर दवाओं के हुए प्रयोग की शिकायत सुप्रीम कोर्ट में करने का निर्णय लिया है।…यहां डॉक्टरों ने करीब एक हजार गैस पीड़ितों पर उन्हें बिना बताए वर्ष 2005-2008 की अवधि में दवाओं का परीक्षण किया है। दवाओं का प्रायोगिक परीक्षण मुख्य रूप से हृदय, श्वांस, पेट समेत कुछ अन्य रोगों के उपचार के संबंध में किया गया।… गैस पीड़ितों के शरीर पर प्रायोगिक दवाओं का क्या प्रभाव पड़ा, डॉक्टरों ने इसका अध्ययन भी नहीं किया। …उधर बीएमएचआरसी के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. एसके त्रिवेदी ने बताया कि प्रायोगिक दवाओं का परीक्षण गैस पीड़ित और सामान्य, दोनों श्रेणी के मरीजों पर किया गया। विभागीय अधिकारियों से इसकी अनुमति ली गई थी।…

मामला जिस तरह लगातार तूल पकड़ता जा रहा है, दिल्ली और भोपाल दोनों ही सरकारों के स्तर पर हलचल तेज होती जा रही है। सब अपनी-अपनी खाल बचाने की जुगत में ज्यादा दिखाई दे रहे हैं। मंत्री समूह को प्रधानमंत्री की डेडलाइन मिल चुकी है। अब तक प्रणब मुखर्जी एंडरसन को भगाने की तोहमत अर्जुनसिंह के सिर मढ़ते दिखाई दिए, अब यह मंत्री समूह ठीकरा फोड़ने के लिए सीबीआई का सिर ढूंढ रहा है।  

इधर भोपाल में विधि विशेषज्ञों की समिति इस नतीजे पर पहुंच चुकी है कि केस फिर से खुलना चाहिए। यहां मामले में अलग ही तरह की दिलचस्पी नजर आ रही है। प्रदेश में सरकार भाजपा की है, जिसका 1984 में हादसे से लेकर केस को कमजोर करने के बाद के अहम पड़ावों पर सीधा कोई लेना देना नहीं है, सिवाय इसके कि एक मजबूत विपक्षी पार्टी होने के बावजूद वह निष्क्रिय बनी रही और जब भी सत्ता में आई इस जंजाल में पड़ने की उसे तब इतनी ही मुस्तैदी से नहीं सूझी। अब उसकी कोशिश कांग्रेस की तत्कालीन प्रदेश और केंद्र सरकार व मौजूदा केंद्र सरकार को ही इस पूरे मामले में तबियत से लपेटने की है।

देश और प्रदेश की राजधानियों में जारी यह दिलचस्प गहमागहमी शह और मात के खेल की ज्यादा दिखाई दे रही है। इस बीच देश भर के 69 सांसदों ने कहा है कि केस को फिर से खोलना ही चाहिए। …

केंद्रीय मंत्रियों के समूह की पहली बैठक में सीबीआई के निदेशक अश्विनी कुमार और उनके मातहत अफसरों को बुलाया गया। सीबीआई अधिकारियों को मंत्री समूह के समक्ष कठिन प्रश्नों का जवाब देना पड़ सकता है। गृहमंत्री पी चिदंबरम की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के समूह को प्रधानमंत्री के समक्ष दस दिनों के अंदर रिपोर्ट पेश करनी है। बैठक संबंधी सभी सदस्यों को भेजी गई सूचना में कहा गया है, ‘आवश्यकता पड़ने पर 19 तारीख यानी शनिवार को भी बैठक बुलाई जा सकती है।’ प्रदेश सरकार की ओर से गैस राहत मंत्री बाबूलाल गौर इस बैठक में शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि वे केस को रीओपन करने और पीड़ितों का मुआवजा बढ़ाने की मांग करेंगे।

सूत्रों का कहना है कि इस भयावह हादसे की जांच में सीबीआई द्वारा बरती गई लापरवाही तथा मुख्य आरोपियों का नाम मात्र की सजा पाना मंत्रियों के समूह के समक्ष मुख्य मुद्दा होगा। सीबीआई को बताना होगा कि 22 वर्षों तक चली जांच में उसके अफसर ढिलाई क्यों बरतते रहे तथा चार्जशीट में दाखिल 340 गवाहों में से एजेंसी ने सिर्फ 178 गवाहों से हो पूछताछ क्यों की? क्या इस लापरवाही के पीछे किसी को बचाने की मंशा थी। अगर नहीं थी तो गवाहों की इतनी बड़ी फेहरिश्त खड़ी करने के बावजूद सीबीआई ने उनसे पूछताछ करना मुनासिब क्यों नहीं समझा।

सीबीआई अधिकारियों को मंत्री समूह को यह भी स्पष्ट करना होगा कि गैस त्रासदी की जांच निष्पक्ष थी तथा एजेंसी के जांच अधिकारियों ने किसी अपराधी विशेष (वारेन एंडरसन) को बचाने के लिए कोई पक्षपात या भेदभाव नहीं किया। पूछताछ का सबसे अहम मुद्दा होगा यूनियन कार्बाइड के कर्ताधर्ता वारेन एंडरसन का देश से बच निकलना। यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि तत्कालीन मध्य प्रदेश सरकार ने गैस रिसाव के चौथे दिन ही यानि 6 दिसंबर 1984 को सीबीआई को जांच की जिम्मेदारी सौंप दी थी। एंडरसन 7 दिसंबर को भोपाल था। प्रश्न उठता है कि सीबीआई ने एंडरसन का पासपोर्ट क्यों नहीं जब्त किया तथा महज 2000 अमेरिकी डॉलर के निजी मुचलके पर एंडरसन को देश छोड़ने क्यों दिया? कायदे से सीबीआई को एंडरसन को गिरफ्तार करना था, लेकिन एजेंसी के तत्कालीन अधिकारियों ने ऐसा नहीं किया।

एंडरसन के अमेरिका वापस चले जाने के बाद सीबीआई ने उनके प्रत्यर्पण के लिए घोर उदासीनता दर्शाई, जबकि भोपाल की विशेष सीबीआई अदालत ने एंडरसन को 1988 में ही भगोड़ा घोषित कर दिया था। उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि सीबीआई ने एंडरसन के प्रत्यर्पण के लिए दो बार प्रयास किया था, लेकिन प्रयास इतने हल्के थे कि अमेरिकी सरकार ने उन्हें सिरे से खारिज कर दिया था। इसके पीछे सीबीआई द्वारा यूनियन कार्बाइड इंडिया द्वारा नाम बदलकर यूनियन कार्बाइड एशिया करना बताया गया था। सीबीआई ने तर्क दिया था चूंकि दोषी कंपनी ने अपना नाम तथा पता बदल लिया है। ऐसे में यूनियन कार्बाइड के खिलाफ कार्रवाई नहीं बनती।
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 
17. इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह! 
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया!

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