Bhopal Taal, upper lake of Bhopal

मध्य प्रदेश पर ‘राज करने वालों’ ने राजधानी भोपाल के राजा का तालाब चुरा लिया!

नीलेश द्विवेदी, भोपाल, मध्य प्रदेश

अद्भुत क़िस्म के लोग होते हैं ‘राज करने वाले’ भी। ये दवा देने का दिखावा करते हैं और दर्द दिया करते हैं। उदाहरण के लिए इस वक़्त मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का एक अहम मसला है। यहाँ भोपाल में, शहर की पहचान उसकी झीलों से हुआ करती है। उन झीलों में बहुत सारी तो पहले ही ग़ायब हो गईं। शहरीकरण ने उन्हें शहर वालों से ही छीन लिया। अब ले-देकर दो-चार झीलें ही बची हैं। उनमें भी शहर की शान कहलाती है ‘बड़ी झील’। उसे ‘बड़ा ताल’, ‘बड़ा तालाब’ ‘भोजताल’ और अंग्रेजी में ‘अपर लेक’ भी कहते हैं। इसकी शान में एक क़सीदा (शायरी का एक रूप, जिसमें किसी की प्रशंसा होती है) अक़्सर पढ़ा जाता है, ‘ताल है भोपाल ताल बाकी सब तलैया।’ 

वैसे, बड़े तालाब के नामों में ‘भोजताल’ ख़ास ग़ौर करने लायक है। इसलिए क्योंकि यह तालाब परमार वंश के शासक राजा भोज ने 11वीं सदी में बनवाया था, ऐसा इतिहास में दर्ज़ है। उन्हीं ने भोपाल शहर भी बसाया, जिसे पहले ‘भोजपाल’ कहा जाता था। तो इस लिहाज़ से भोपाल शहर और भोजताल ‘यहाँ के राजा’ भाेज का हुआ। मज़ेदार है कि मध्य प्रदेश पर लोकशाही के ज़रिए ‘राज करने वाले’ भी यह बात मानते हैं। अपने सियासी फ़ायदे के लिए सही, राजा भोज के नाम पर, उनके सम्मान में कभी-कभी कुछ करते भी रहते हैं। मसलन- राजा भोज के शासनकाल के जब 1,000 साल पूरे हो गए, तो मार्च-2011 भोजताल के एक किनारे पर उनकी 32 फीट ऊँची प्रतिमा लगवा दी। 

अलबत्ता, ये ‘राज करने वाले’ वास्तव में राजा भोज और उनके भोजताल की कितनी क़द्र करते हैं, यह बात उन्हीं के आचरण के दूसरे पहलू से ज़्यादा साफ़ ज़ाहिर होती है। अभी शुक्रवार, 28 मार्च को ही एक स्थानीय अख़बार में उपग्रह से ली गईं भोजताल की तस्वीरें प्रकाशित हुईं हैं। इन तस्वीरों के माध्यम से बताया गया है कि 1995 से 2025 के बीच 30 सालों में भोजताल का 25 प्रतिशत हिस्सा चोरी कर लिया गया है। यानि तालाब के इतने बड़े हिस्से को समेटकर उस पर क़ब्ज़ा कर लिया गया है। और ये चोरी करने, क़ब्ज़ा करने वाले लोग हैं कौन? वही ‘राज करने वाले’, जो एक तरफ़ तो उनकी मूर्ति लगवाकर जय-जयकार करते हैं, दूसरी ओर उन्हीं का तालाब चुरा लेते हैं। 

अख़बार ने विशेषज्ञों के हवाले से बताया है कि 1995 में भोजताल का दायरा 39.8 वर्ग किलोमीटर हुआ करता था। यह 2025 में घटकर 29.6 वर्ग किलोमीटर रह गया है। तालाब सबसे ज़्यादा भोपाल से सीहोर के रास्ते में नीलबड़-रातीबड़ क़स्बों की तरफ़ से ग़ायब हुआ। वहाँ नेताओं, अफ़सरों ने बड़े-बड़े फार्म हाउस, वग़ैरा बनवा रखे हैं। बताया जाता है कि भोपाल नगर निगम की सीमा के भीतर ही 1,300 से अधिक अवैध निर्माण हैं। ज़्यादातर इन्हीं ‘राज करने वालों’ के। इन पर कोई कार्रवाई ता दूर, किसी की निग़ाह तक नहीं जाती। जाए भी कैसे? निग़हबान ही जब चोरी कर रहे हैं, तो कोई निग़ाह उठाकर कर भी क्या लेगा? सो, अब भोजताल से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी सुनें…

कहते हैं, एक बार राजा भोज को कोई गम्भीर चर्म रोग हो गया था। काफ़ी इलाज़ कराया गया, लेकिन ठीक नहीं हुआ। तब एक वैद्य ने उन्हें बताया कि 9 नदियों के पानी का समायोजन कर के एक तालाब बनवाएँ। उसमें नहाने से रोग ठीक हो जाएगा। राजा के एक मंत्री ने यह ज़िम्मेदारी उठाई और इस तरह भोजताल बना। इसी तरह, एक किंवदन्ति यह भी है कि राजा भोज ने दुश्मनों से भोपाल की सुरक्षा करने के मक़सद से भोजताल का निर्माण कराया था। इसमें कुछ बरसाती नदियों का पानी लाने का प्रबन्ध किया था, ताकि हमेशा तालाब में पानी की उपलब्धता बनी रहे। यह दुश्मन से शहर को बचाता रहे, पानी की आपूर्ति भी होती रहे। अलबत्ता, आज हजार साल बाद स्थिति क्या है?

स्थिति यह है कि जो भोजताल शहर को पानी की आपूर्ति करता है, उसे ख़ुद पानी के लाले पड़ रहे हैँ। कारण कि जिस तरह ‘राज करने वालों’ ने तालाब चोरी किया, उसी तरह उसे पानी देने वाली नदियाँ भी चुरा लीं। एक नहीं बल्कि चार-चार नदियाँ ग़ायब होने की कग़ार पर आ गईं हैं। यही नहीं, जिस भोजताल ने राजा की बीमारी ठीक की, वह ख़ुद बीमार हो चुका है। और जो भोजताल दुश्मन से शहर की सुरक्षा करता था, वह ख़ुद अपने दुश्मनों के निशाने पर है। आज न तो भोजताल की बीमारी (अतिक्रमण की) दूर करने वाला कोई दूर-दूर तक दिखता है और न दुश्मनों से उसकी रक्षा करने वाला। इसलिए क्योंकि दवा देने का काम जिनके जिम्मे है, वही लाेग दर्द दिए जा रहे हैं।

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