अनुज राज पाठक, दिल्ली से, 3/5/2022
हमने पिछली कड़ी में देखा था कि कैसे एक वस्तु को अलग-अलग दृष्टि से देखने वाला व्यक्ति अलग व्याख्या करता है। प्रत्येक समग्रता से वस्तु का न परिचय जान पाता है और न अन्य को बता पाता है। हालाँकि हम सोच सकते हैं कि वे व्यक्ति तो नेत्रहीन थे, इसलिए सम्पूर्ण वस्तु को एक साथ न देखने के कारण अलग अलग व्याख्या कर रहे थे। एक दृष्टियुक्त व्यक्ति तो पूरी वस्तु को एक साथ जान कर पूरी व्याख्या कर सकता है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है?
एक कहानी है…, “एक स्टेशन पर एक भिखारी कटोरे में पेन्सिल लेकर बैठा हुआ था। लोग वहाँ से गुजरते लेकिन उसे नजरंदाज़ कर आगे बढ़ जाते। लेकिन एक युवा व्यापारी वहाँ से गुजरा और वह कटोरे में कुछ सिक्के डालकर आगे बढ़ गया। पर उस युवक के दिमाग में उथल-पुथल चलती रही। इसीलिए ट्रेन चलने से पहले ही वह युवा व्यापारी दौड़कर वापस आता है और कटोरे से एक पेन्सिल उठाकर बोला-एक पेन्सिल अवश्य लूँगा। आखिर तुम भी व्यापारी हो और मैं भी।- युवा ऐसा कहकर वापस चला जाता है। समय बीतता गया वह व्यापारी एक शाम किसी पार्टी में सम्मिलित होता है। वह भिखारी भी उस पार्टी में उपस्थित था, जो स्वयं एक व्यापारी बन चुका था। उसने युवक को देखते ही पहचान लिया। और युवक से पुरानी घटना का जिक्र किया। भिखारी कहता है– आप को शायद मालूम नहीं आपने मेरे लिए उस दिन क्या किया। आपके उस नज़रिए का परिणाम है कि आज मैं भिखारी से व्यापारी बन गया हूँ। आपने दया करने की जगह मेरा आत्मसम्मान जगा दिया और मुझे कुछ करने के लिए प्रेरित कर दिया।”
इस कहानी का क्या तात्पर्य है। यही कि हम अपने जीवन में भी अक्सर एकांगी दृष्टि रखते हैं और व्यक्ति के प्रति, वस्तु के प्रति सापेक्ष नजरिए से व्यवहार और विचार करते हैं। समग्रता से नहीं। युवा व्यापारी ने भिखारी के प्रति जागरूकता से व्यवहार किया। उसका परिणाम सामने था।
इस बारे में जैन आचार्यों का मत इस पर इस प्रकार है, “वस्तु अनन्त गुणों से युक्त है। उसके विविध स्वरूप हैं और शब्द की सामर्थ्य सीमित है। इसलिए किसी भी वस्तु की व्याख्या अनन्त प्रकार से हो सकती है। अत: किसी एक सत्य को अन्तिम या सम्पूर्ण सत्य मान लिया जाए, यह अनुचित है।” इसलिए जैन स्वामी माानते हैं कि वस्तु अनन्तधर्मात्मक, अनेकान्तात्मक है। प्रत्येक वस्तु के कण-कण को एक साथ नहीं बताया जा सकता। वस्तु सर्वधर्मात्मक नहीं है अर्थात् चेतन में अचेतन के गुण नहीं है, अचेतन में चेतन के गुण नहीं हैं। कुछ सामान्य गुण दोनों में पाए जा सकते हैं।
इसी बात को बताने के लिए जैन आचार्यों ने ‘स्याद्वाद’ की स्थापना की। सामान्यत: व्यक्ति स्यात् का अर्थ ‘शायद’ से समझ लेता है। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। स्यात् का अर्थ है ‘कथंचित्’ यानि किसी अपेक्षा से, किसी दृष्टि से। तात्पर्य यह कि जो विरोधी भाव का निराकरण न करता हुआ अपेक्षा से विशेष पक्ष का प्रतिपादन करता है। एक व्यक्ति किसी का पिता है, किसी का पति है, किसी का भाई है, किसी का पुत्र है। इन सम्बन्धों को एक साथ निभाते हुए वह किसी एक सम्बन्ध में नहीं है और न ही वह व्यक्ति अलग-अलग सम्बन्धों को अलग-अलग व्यक्ति के तौर पर निभाता है। एक ही व्यक्ति अलग-अलग गुणों, धर्मों को धारण करता है। यही ‘स्याद्वाद’ है।
जैन आचार्य ध्यान दिलाते हैं कि जो दिख रहा हो वास्तव में उतना ही सच नहीं होता। व्यक्ति वस्तु के अनन्त गुण धर्म होते हैं, जिन्हें हम समझ या जान नहीं पाते। क्योंकि हमारा ज्ञान सीमित है। इस सीमित ज्ञान के कारण हमारा व्यवहार सत्य न होकर भी सत्य का आभास कराता रहता है। हम सत्य के भ्रम में रहते हैं। अत: चीजें अपेक्षा से सत्य हो सकती हैं और असत्य भी हो सकती हैं। लेकिन किसी एक पक्ष को सत्य मानकर उस पर अड़े रहना अनुचित है। और कहीं न कहीं वह अड़े रहना हिंसा भी है। जैन आचार्य अपने ‘स्याद्वाद’ और अनेकान्तवाद के माध्यम से अहिंसा के सर्वोच्च शिखर पर आरूढ़ हो जाते हैं। जहाँ शारीरिक से भी आगे मानसिक वाचिक हिंसा के लिए भी स्थान नहीं बचता। किसी को असत्य साबित कर कष्ट ही नहीं देना। “आप का पक्ष अपेक्षा से सही हो सकता है”, यह कथन अपने अहंकार को त्यागकर स्नेहभाव से युक्त हृदय ही कह सकता है। यही सहृदयता ‘स्याद्वाद’ की सार्थकता है।
—–
(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 55वीं कड़ी है।)
अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More
देश में दो दिन के भीतर दो अनोख़े घटनाक्रम हुए। ऐसे, जो देशभर में पहले… Read More
सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More
मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More
इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More
आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More