दुष्कर्म रोकने के लिए दुष्कर्मियों और उनके सहयोगियों का सामाजिक बहिष्कार प्रभावी कदम हो सकता है।
टीम डायरी
पहले कुछ चन्द मिसालें देखिए। ताज़ातरीन हैं, लेकिन अपने तरीक़े की कोई इक़लौती नहीं हैं। ऐसी मिसालें लगातार सुर्ख़ियों में आती रहती हैं। ग़ौर कीजिए…
अभी 20 सितम्बर की रात की घटना है। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी की बेटी अपने साथ कुछ मनचलों द्वारा की गई अभद्रता की शिक़ायत दर्ज़ कराने ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के भरतपुर थाने में गई। मगर थाने में शिक़ायत दर्ज़ करने के बज़ाय पुलिसवालों ने उस लड़की का ही यौन उत्पीड़न कर दिया। ऐसा आरोप ख़ुद उस लड़की ने कैमरे के सामने रोते हुए लगाया। इसके बाद ओडिशा सरकार ने थाने के प्रभारी निरीक्षक सहित पाँच पुलिसकर्मियों को निलम्बित कर दिया है। मामले की जाँच जारी है।
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज-अस्पताल में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ। फिर उसकी हत्या कर दी गई। इस मामले की जाँच के दौरान अभी 26 सितम्बर को ही ख़ुलासा हुआ कि इस जधन्य अपराध को छिपाने के लिए कोलकाता पुलिस ने मामले के सबूतों के साथ छेड़छाड़ की। रिकॉर्ड बदले। ताकि मामले को दूसरा मोड़ दिया जा सके। और शुरुआती तौर पर सामने आए आरोपी- संजय रॉय को बचाया जा सके। क्यों? क्योंकि संजय पुलिस विभाग का सहयोगी भी है।
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में एक दलित लड़की के अपहरण और दुष्कर्म के मामले में पुलिस ने पहले तो पीड़ित की शिक़ायत दर्ज़ नहीं की। जब शिक़ायत दर्ज़ की भी तो उस पीड़ित लड़की पर दबाव डालकर उसकी भाषा बदलवा दी। यही नहीं, पीड़ित लड़की को 10 घंटे तक थाने में बिठाकर रखा। और बाद में उसके तथा आरोपी के बीच समझौता करा दिया। वह भी एक लाख रुपए की रिश्वत लेकर। हालाँकि मामला सामने आने के बाद ग़ैरज़िम्मेदार पुलिसवालों पर ज़रूरी कार्रवाई भी की जा चुकी है।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 24 सितम्बर को पाँच साल की एक बच्ची लापता हो गई। उसे पुलिस का बड़ा भारी अमला पूरे लवाज़मे के साथ तीन दिन तक ढूँढता रहा। पर कोई पता नहीं चला। फिर 27 सितम्बर को जब बच्ची मिली भी तो सड़ चुके शव के रूप में। अपने घर से चन्द क़दम की दूरी पर पड़ोसी के घर में पानी की टंकी के भीतर। जबकि पुलिस इस घर की भी तीन बार तलाशी ले चुकी थी। बच्ची के साथ बेहोशी की हालत में वीभत्स दुष्कर्म किया गया था। फिर उसकी हत्या की गई थी।
हालाँकि अब मध्य प्रदेश सरकार की ओर से बताया गया है कि इस मामले में ग़िरफ़्तार आरोपी और उसका सहयोग करने वाली उसकी माँ और बहन पर तेजी से विशेष अदालत में मुक़दमा चलाया जाएगा। अलबत्ता, अदालतें भी क्या ही करेंगी, उसकी भी मिसालें देखिए।
इसी साल जून महीने में दिल्ली की एक अदालत ने दुष्कर्म के आरोपी को सहज भाव से ज़मानत दे दी। जबकि आरोपी ने पीड़ित लड़की के घर जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया था। इसके लिए उसने पहले लड़की से दोस्ती और प्रेम का फ़रेब किया था। पर अदालत ने इस फ़रेब को सही मानकर आरोपी को छोड़ दिया।
इसी तरह सितम्बर महीने के शुरू में मुम्बई की एक अदालत ने भी दुष्कर्म के आरोपी को ज़मानत दे दी। इसके लिए आधार क्या बताया? यह कि आरोपी और पीड़ित लड़की आपसी सहमति से हुए लिखित समझौते के आधार पर 11 महीने से साथ रह रहे थे। इसीलिए यह मानने में हर्ज़ है कि लड़की से ज़बर्दस्ती हुई होगी।
तिस पर, भारतीय अदालतों की सुनवाई प्रक्रिया में लेटलतीफ़ी तो जगज़ाहिर है ही। किसी स्तर की कोई अदालत जल्दी से मामला निपटाकर आरोपियों को सज़ा दे भी दे, तब भी ऊपर की अदालतें हैं। वे अपना समय लेती ही हैं। ऐसे करते-करते वर्षों गुज़र जाते हैं, लेकिन पीड़ित की पीड़ा दूर नहीं होती।
अब ऐसे में, दुष्कर्म जैसे किसी अपराध के अपराधियों के मन में डर हो भी तो किस बात का? और दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध रुकें भी तो कैसे? पुलिस और अदालतों के भरोसे तो रुकने से रहे!
मध्य प्रदेश के मुरैना और असम के बोरभेटी गाँव से इन सवालों का ज़वाब उभरकर आया है। बताया जाता है कि मुरैना में आठ साल की बच्ची से दुष्कर्म के एक आरोपी और उसके परिवार को समाज से बहिष्कृत किया गया है। यही नहीं, पीड़ित बच्ची और उसके परिवार को सुरक्षा तथा आर्थिक सहायता का इंतिज़ाम भी समाज के स्तर पर किया गया है। ठीक इसी तरह अगस्त के महीने में, असम के बोरभेटी गाँव में भी नाबालिग से दुष्कर्म के एक आरोपी का सार्वजनिक बहिष्कार किया गया था। उस आरोपी ने पुलिस की हिरासत से भाग कर तालाब में कूदकर जान दे दी थी। मगर उसके समाज ने तय किया कि उसके अन्तिम संस्कार में कोई भी शामिल नहीं होगा।
यक़ीन मानिए, दुष्कर्म जैसे अपराधों पर लगाम लगाने के लिए, दुष्कर्मियों के मन में भय पैदा करने के लिए अब ऐसे ही कुछ क़दम प्रभावशील हो सकते हैं।
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