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इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?

विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 5/1/2022

एक बार फिर पुरानी फाइलों में से कुछ चौंकाने वाले खुलासे हुए।…गैस त्रासदी के मूल दस्तावेजों से छेड़छाड़ की गई है। ऐसा मुजरिमों को बचाने के लिए और मामूली सजा दिलाने के लिए किया गया। दस्तावेजों से जाहिर है कि 3 दिसंबर 1984 को दर्ज हादसे की एफआईआर और पांच दिसंबर को कोर्ट के रिमांड आर्डर में भारी हेराफेरी की गई है। इन दस्तावेजों को हमने कानून के विशेषज्ञों, नेशनल लॉ इंस्टिट्यूट के सदस्यों और प्रदेश सरकार की विधि विशेषज्ञों की समिति के सदस्य शांतिलाल लोढ़ा से भी तस्दीक कराया। 

कोर्ट की केस डायरी से खुलासा होता है कि पुलिस ने एंडरसन सहित अन्य आरोपियों की रिमांड धारा 304 के तहत मांगी थी। गैरइरादतन हत्या की इस सख्त धारा में दस साल तक की कैद हो सकती है। इसके विपरीत एफआईआर में कमजोर धारा 304 ए का उल्लेख बताया गया है। इसके तहत सिर्फ दो साल तक की ही सजा हो सकती है। विधि विशेषज्ञ बताते हैं कि कोर्ट का रिमांड ऑर्डर एफआईआर आधार पर ही होता है।… 

अब सवाल यह उठता है कि क्या मूल एफआईआर सख्त धारा-304 की थी? या रिमांड ऑर्डर में भूल के चलते इसका जिक्र हो गया? वॉरेन एंडरसन की रिहाई के लिए तैयार मुचलका इसकी एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकता है। धारा-304ए एंडरसन की तुरंत रिहाई पर तुले अफसरों के लिए सुविधाजनक थी। क्योंकि इसमें पुलिस उसे मुचलके पर छोड़ सकती थी। फिर मुचलके में सख्त धारा क्यों लगाई गई? हकीकत तो यह है कि गैरइरादतन हत्या के मामले में मुचलका लिया ही नहीं जा सकता, क्योंकि इसके लिए कोर्ट जाना पड़ता। 

क्या मूल एफआईआर 304 ए के बजाए गैरइरादतन हत्या की धारा 304 में लिखी गई थी, जिसमें 10 साल तक की सजा का प्रावधान है। क्या मूल एफआईआर को बदल दिया गया? या फिर मूल एफआईआर में दर्ज एकमात्र धारा 304 को ही दो साल की सजा वाली धारा 304ए में बदल दिया गया? 

एक बार मान लिया जाए कि एफआईआर तो 304ए में दर्ज हुई थी। और जब पुलिस ने खोजबीन में पाया कि मामला तो गैरइरादतन हत्या का है तो इसमें अन्य गंभीर धाराएं भी जोड़ दी। लेकिन यदि ऐसा होता तो यह केस डायरी में लिखा होता और रिमांड आर्डर में भी। लेकिन यह कहीं भी नहीं लिखा गया कि इतनी गंभीर अपराध की धाराएं क्यों जोड़ी गईं और कब? अगर मामला कमजोर किए जाने प्रयास था तो एंडरसन को कमजोर धारा के बजाए गैरइरादतन हत्या के मामले में क्यों गिरफ्तार किया गया? एक बार फिर मानवीय भूल? तो फिर गैरजमानती अपराध के मामले में उसे निजी मुचलके पर कैसे छोड़ दिया गया? जबकि उसके साथ गिरफ्तार केशुब महिन्द्रा और विजय गोखले को आठ दिन तक हिरासत में रहने के बाद कोर्ट से जमानत लेनी पड़ी। 

भोपाल स्थित लॉ इंस्टीट्यूट में कानून के जानकार आश्चर्य करते हैं। कि गैस पीड़ितों के ढेरों हमदर्द, इतने पुलिस अधिकारी, इतने काबिल वकीलों और विद्वान न्यायाधीश इतनी देर कमजोरियों को 25 साल तक क्यों नजरअंदाज करते रहे? पूर्व जिला न्यायाधीश रेणु शर्मा कहती हैं कि यदि यह सिद्ध हो जाए कि एएफआईआर बदली गई तो जिम्मेदार व्यक्ति के खिलाफ धारा 204 के तहत आपराधिक मामला बनता है। जांच में यदि मालूम चलता है कि ऐसा उच्च अधिकारियों के कहने पर किया गया तो उनके खिलाफ भी आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए। 

विधि विशेषज्ञों की समिति के सदस्य शांतिलाल लोढ़ा मानते हैं कि दस्तावेजों में हेराफेरी की गई हैं। उनका कहना है कि टाइपराइटर पर लिखी गई मूल एफआईआर तो गैरइरादतन हत्या की ही थी लेकिन बाद में इसमें हाथ से ए जोड़कर धारा 304ए का मामला बना दिया गया।… 

…जिस शहर पर मौत कहर बन कर टूटी हो उसी शहर में सत्ता के अलंबरदारों और अफसरशाही ने ऐसा आपराधिक षड़यंत्र रचा जिसने गैस पीड़ितों से न्याय छीन लिया। यह टिप्पणी प्रदेश सरकार की ओर से गठित विधि विशेषज्ञों की कमेटी के एक सदस्य की है। कमेटी के सदस्य न्यायमूर्ति शांतिलाल लोढ़ा ने कमेटी के चेयरमैन और देश के एडीशनल सॉलिसीटर जनरल विवेक तनखा को अपनी राय के साथ पांच पेज की एक रिपोर्ट सौंपी है। इसमें चौंकाने वाले खुलासों के साथ कई तल्ख टिप्पणियां भी की गई हैं।…

…प्रतिवेदन में यह भी कहा गया है कि अगर इस मामले में भारत सरकार अमेरिका के समक्ष एंडरसन के प्रत्यर्पण का मसला समुचित रूप में प्रस्तुत करती तो निश्चित रूप से सकारात्मक परिणाम सामने आते।

लोढा ने सिफारिश की है कि मप्र सरकार एक तथ्य निवारण समिति गठित जो इस मामले में पक्षपातपूर्ण कार्रवाई करने वाले व्यक्तियों की जवाबदेही तय करते हुए उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई का रास्ता खोले।…  

…प्रदेश सरकार ने हादसे के फौरन बाद सही इलाज में अड़ंगे डालने के घिनौने प्रयास किए। फिलहाल एक खबर सरकारी तंत्र के इसी दर्दनाक पहलू पर है। …यूनियन कार्बाइड से रिसी जहरीली गैस ‘मिथाइल आइसोसाइनाइड’ (मिक) का प्रभाव कम करने की कारगर दवा ‘एंटीडोट’ (सोडियम थायो सल्फेट) इंजेक्शन गैस पीड़ितों को एक बार लगाने के बाद दोबारा नहीं लगाया गया।

गैस पीड़ित संगठनों ने तत्कालीन अर्जुन सिंह सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने यूका की मदद करने के लिए एंटीडोट के इस्तेमाल पर रोक लगाई। इस कारण गैस पीड़ित अब भी मिक के घातक प्रभाव से उबर नहीं सके हैं। संगठनों के मुताबिक आईसीएमआर के डॉ. एस श्रीरामाचारी ने अपनी शोध रिपोर्ट में गैस पीड़ितों को एंटीडोट इंजेक्शन देने की सिफारिश की थी। …कैंची छोला रोड और रेलवे कॉलोनी के 10 हजार से ज्यादा गैस पीड़ितों को यह इंजेक्शन लगाया गया। इससे उनके स्वास्थ्य में सुधार हुआ था। लेकिन गैस पीड़ितों को इंजेक्शन का डोज दोबारा नहीं दिए जाने का खमियाजा गैस पीड़ित आज भी भुगत रहे हैं।

गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति की साधना कार्णिक ने बताया कि एंटीडोट से पीड़ितों के शरीर से गैस का दुष्प्रभाव कम हो रहा था। उनके मुताबिक राज्य सरकार ने यूका से रिसी गैस में जहर होने के सबूत को समाप्त कराने के लिए इस पर रोक लगाई। यह इंजेक्शन संस्था द्वारा संचालित जन स्वास्थ्य केंद्र पर कई लोगों को लगाया गया था, बाद में तत्कालीन राज्य सरकार ने स्वास्थ्य केंद्र पर छापामार कार्रवाई कर मरीजों को लगाने के लिए रखे गए इंजेक्शन जब्त किए और सरकारी अस्पतालों में ‘सोडियम थायो सल्फेट’ के इंजेक्शन को गैस पीड़ितों को लगाना प्रतिबंधित कर दिया।

जैसे सिनेमा के परदे पर पत्थर दिल सामंत की शक्ल में प्राण सीढ़ियों से उतर रहे हों। हाथ में हंटर सामने चंद बेबस और कमजोर किसान थर-थर कांपते। कुपोषित सी काया। फिर प्राण की कड़क आवाज- ‘इन्हें जिंदा रहने की क्या जरूरत है?’ प्राण की जगह जीवन होते तो भी कमाल करते। दांत पीसते हुए जब यह संवाद अदा करेंगे तो लगेगा कि गरीब की जान ही ले लेंगे। जीवन अब हमारे बीच नहीं हैं। उनकी अदा का जलवा देखिए गैस हादसे की कम्लीट स्टोरी में उनके लिए भी रोल निकल आया। कम्बख्त कॉमेडियन मिल रहे हैं या विलेन। हीरो तो इस कहानी में कोई दिख ही नहीं रहा।… 
( जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह! 
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया!

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