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दुनिया की 384 कम्पनियों ने सवा लाख ‘कर्मचारी’ नहीं, ‘प्यादे’ निकाल फेंके हैं!

टीम डायरी

भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल क़लाम साहब कहा करते थे, “अपने काम से प्यार कीजिए, कम्पनी से नहीं। क्योंकि आपकी कम्पनी कब आपको प्यार करना बन्द कर दे, ये आप नहीं जान सकते।” क़लाम साहब की ये बात अभी पाँच अगस्त को आई एक ख़बर के कारण याद आ गई। इसमें बताया गया कि दुनिया की 384 जानी-मानी कम्पनियों ने इस साल जुलाई तक 1,24,517 कर्मचारियों को निकाल फेंका है। 

इस ख़बर में आगे कुछ कम्पनियों के नाम और निकाले गए उनके कर्मचारियों की संख्या भी बताई गई। जैसे- इन्टेल ने 15,000, यूकेजी ने 2,200, इनश्यूट ने 1,800, माइक्रोसॉफ्ट ने 1,000, अनअकैडमी ने 250, पॉकेट एफएम ने 200 (लेखक), आदि। इनमें से शिक्षा-तकनीक क्षेत्र की अनअकैडमी और ऑडियो प्लेटफॉर्म ‘पॉकेट एफएम’ तो उभरती हुई भारतीय कम्पनियों में गिनी जाती हैं। अलबत्ता, इससे क्या फ़र्क पड़ने वाला है। 

भले कोई न माने या कुछ भी दावे करे पर तथ्य और सत्य यही है कि लगभग सभी कम्पनियों के लिए उनके कर्मचारियों की हैसियत किसी ‘प्यादे’ से अधिक नहीं होती। इसीलिए वे जब चाहे उन्हें अपनी फ़ौज़ में भर्ती करती हैं। सामने से मोर्चे पर तैनात कर उन्हें ‘कारोबारी मुनाफ़े की जंग’ में मरने-खपने देती हैं। अपनी जंग जीतती हैं। पुरस्कृत होती हैं। वाहवाही लूटती हैं। और जब काम निकल जाता है तो ‘प्यादों’ को निकाल फेंकती हैं। 

यह निष्कर्ष निकाले जाने के भी प्रमाण हैं। अभी जुलाई महीने में ही ‘वर्ल्ड बेंचमार्किेग अलायंस’ नामक एक जानी-मानी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की रिपोर्ट आई थी। इसमें बताया गया था कि दुनियाभर की शीर्ष 2,000 कम्पनियों में से 90% ऐसी पाई गईं, जो अपने कर्मचारियों के मानवाधिकारों का ख़्याल नहीं रखतीं। इन कम्पनियों ने 9.5 करोड़ लोगों को सीधे नौकरी दे रखी है और वैश्विक अर्थव्यवस्था के 45% हिस्से को क़ब्ज़ा रखा है। 

यही नहीं, रिपोर्ट आगे बताती है कि 98% कम्पनियाँ महिला-पुरुष कर्मचारियों में भेद करती हैं। जबकि 96% कम्पनियाँ अपने कर्मचारियों को उनकी मेहनत के हिसाब से पूरी तनख़्वाह तक नहीं देतीं। इनमें से 71% कम्पनियाँ तो ऐसी भी हैं, जिन्हें अपने कर्मचारियों की सेहत की तक परवा नहीं होती। इसीलिए ऊपर लिखा गया कि कम्पनियाँ अपने ‘प्यादों’ को मोर्चे पर तैनात कर उन्हें ‘कारोबारी मुनाफ़े की जंग’ में मरने-खपने देती हैं।

हालाँकि, इस तरह की रिपोर्टों का भी कम्पनियों पर न तो पहले कभी कोई असर पड़ा है और न ही आगे पड़ने वाला है। इसका कारण? सीधा सा ये है कि कम्पनियों में काम करने वाले ‘प्यादों’ को ही लगातार ख़ुद के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है! ‘ग़ुलामी’ में उन्हें आनन्द आने लगता है। 

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