नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश
भारतीय गणतंत्र के 75 साल पूरे होने के अवसर पर देश के सामने दो विरोधाभासी तस्वीरें उभरकर आईं। पहली- 76वें गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान दिल्ली में ‘कर्त्तव्य पथ’ पर ‘भारतीय शान’ की। दूसरी- देश से हजारों-हजार मील दूर अमेरिका में ‘अधिकार पथ’ पर ‘भारतीय शर्म’ की। बताते हैं कैसे?
पहले बात ‘कर्त्तव्य पथ पर भारतीय शान’ की क्योंकि सही मायने में यही हमारे देश की पूँजी है। यही हमारी ताक़त है। यही देश का गौरव है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कर्त्तव्य पथ के इस गौरव-गान की कुछ झलकियाँ सोशल मीडिया के माध्यम से साझा की हैं। नीचे वे तस्वीरें दी गई हैं। वीडियो भी है। देख सकते हैं। और यक़ीन कीजिए, इन झलकियों को देख लेने मात्र से हर भारतीय गर्व को गर्व की अनुभूति ज़रूर होगी।
It was truly a memorable morning at Kartavya Path. Here are more glimpses… pic.twitter.com/TjqIv90A5W
— Narendra Modi (@narendramodi) January 26, 2025
संक्षेप में थोड़ा ज़िक्र उसका, जो कर्त्तव्य पथ आज 26 जनवरी को हुआ। भारतीय सेना का एक दल है ‘डेयर डेविल्स’। यह दल हर साल रॉयल एनफील्ड मोटरसाइकिलों पर शानदार करतब दिखाता है। इस दल की सदस्य कैप्टन डिम्पल सिंह भाटी ने इस बार विश्व रिकॉर्ड बनाया है। उन्होंने चलती मोटरसाइकिलों पर 12 फीट ऊँची सीढ़ी पर खड़े होकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सलामी दी। वह ऐसा करने वाली पहली महिला अधिकारी हैं।
तीनों सेनाओं की संयुक्त झाँकी पहली बार परेड में शामिल हुई। इसमें स्वदेशी अर्जुन टैंक, तेजस लड़ाकू विमान और हल्के उन्नत लड़ाकू हेलीकॉप्टर के मॉडल थे। यह झाँकी बता रही थी कि देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए तीनों सेनाएँ एकजुटता से तैयार हैं। कम दूरी में लक्ष्य भेदने वाली अर्ध-बैलिस्टिक मिसाइल ‘प्रलय’ और सैन्य निगरानी तंत्र ‘संजय’ भी पहली बार परेड में प्रदर्शित किया गया। यही नहीं, पहली बार पूरे कर्त्तव्य पथ पर एक साथ 5,000 कलाकारों ने अपनी-अपनी कला का प्रदर्शन किया। ताकि हर दर्शक को इसकी झलक मिल सके।
Highlights from Kartavya Path, on this special Republic Day! pic.twitter.com/iDkvzMPlUP
— Narendra Modi (@narendramodi) January 26, 2025
इसके अलावा भी ‘कर्त्तव्य पथ पर भारतीय शान’ बढ़ाने के लिए बहुत कुछ था। जैसे- पिता-पुत्र की सैन्य जोड़ी का एक दुर्लभ संयोग। गणतंत्र दिवस की इस बार हुई परेड का नेतृत्त्व लेफ्टिनेंट जनरल भवनीश कुमार कर रहे थे। उन्होंने परेड कमांडर के रूप में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सलामी दी। जबकि उन्हीं के पीछे भारतीय सेना की 61वीं घुड़सवार टुकड़ी का नेतृत्त्व उनके पुत्र लेफ्टिनेंट अहान कुमार कर रहे थे। भारतीय सेना की घुड़सवार टुकड़ी दुनिया में इक़लौती है, जो अब भी सक्रिय रूप से सैन्य सेवाएँ दे रही है।
Glimpses from the Republic Day Celebrations 2025…
— Narendra Modi (@narendramodi) January 26, 2025
A vibrant display of India’s unity in diversity. The magnificent parade showcased cultural heritage and military prowess. The vibrant tableaux represented the rich traditions of our states. pic.twitter.com/JaIN6xsqCJ
अलबत्ता, इसी अवसर पर अमेरिका में ‘अधिकार पथ’ पर ‘भारतीय शर्म’ की झलकियाँ भी सामने आईं। ख़बर है कि वहाँ ग़ैरक़ानूनी रूप से रह रहे भारतवंशियों में इस वक़्त अधपके बच्चे पैदा करने की होड़ लगी है। क्यों? ताकि उन्हें अमेरिकी कहलाने का क़ानूनी अधिकार मिल जाए और वे हमेशा के लिए वहाँ रह सकें। दरअस्ल ये वे लोग हैं जिन्हें ख़ुद को ‘भारतीय’ मानने या कहने में शायद शर्म आती है। इसलिए वे विश्व के सबसे शक्तिशाली और समृद्ध देश अमेरिका में वहीं के नागरिक बनकर बस जाने का इरादा लिए वहाँ पहुँचे हैं।
ऐसे लोगों को उम्मीद थी कि भले उनके वीज़ा की अवधि समाप्त हो जाए, भले अमेरिकी नागरिकता सम्बन्धी ‘ग्रीन कार्ड’ भी उन्हें न मिले, लेकिन वे फिर भी अमेरिकी नागरिकता हासिल कर लेंगे। कैसे? अपने नवजात बच्चे के जरिए। उनके लिए 1868 का अमेरिकी कानून उम्मीद का आधार बना था। उसमें प्रावधान है कि अमेरिका में जन्म लेने बच्चे पैदा होते ही अमेरिकी नागरिक होंगे। भले उनके माता-पिता में से किसी के पास अमेरिकी नागरिकता न हो। पर अभी 20 जनवरी को राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रम्प ने उनकी उम्मीदों को तोड़ दिया।
ट्रम्प ने पद सँभालने के पहले ही दिन एक कार्यकारी आदेश जारी किया। इसके माध्यम से उन्होंने 1868 के नागरिकता क़ानून को बदल दिया। अब नई व्यवस्था के तहत ऐसे किसी भी अप्रवासी दम्पति के बच्चों को पैदा होते ही अमेरिका की नागरिकता नहीं मिलेगी, जिनके पति या पत्नी में से कोई एक पहले से अमेरिकी नागरिक न हों। राष्ट्रपति का यह आदेश 20 फरवरी से प्रभावी होने वाला है। यानि, 20 फरवरी के बाद ऐसे सभी दंपतियों और उनके बच्चों के सामने अमेरिका छोड़कर अपने देश लौटने के अलावा कोई और विकल्प न होगा।
इसीलिए जिन दंपतियों के बच्चे होने वाले हैं, वे ऑपरेशन के जरिए 20 फरवरी से पहले समयपूर्व प्रसव कराने के लिए भाग-दौड़ कर रहे हैं। इनमें से कई तो सात महीने का बच्चा भी गर्भ से निकलवा लेने की तैयारी कर रहे हैं। डॉक्टर उन्हें समझा रहे हैं कि अपरिपक्व बच्चों का इस तरह जन्म कराने से माँ या बच्चे की जान को ख़तरा हो सकता है। जान नहीं भी जाए तो बच्चे के शरीर में कोई कमी रह सकती है। लेकिन चिकित्सकों का मशवरा भी मानने को कोई तैयार नहीं है। ख़बर है कि 20 जनवरी को ट्रम्प द्वारा आदेश जारी किए जाने के बाद से हर डॉक्टर के पास रोज 10-15 तक दंपति ‘अधपके बच्चों का प्रसव’ कराने सम्बन्धी पूछताछ को आ रहे हैं।
अब यहाँ दो और रोचक तथ्य हैं। पहला कि अमेरिका के 22 राज्य ट्रम्प के आदेश के ख़िलाफ़ हैं। वहाँ की अदालतों में याचिकाएँ दायर हो चुकी हैं। अदालत ने राष्ट्रपति के आदेश पर रोक लगा दी है। याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो गई है। दूसरी बात- भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि अमेरिका से निकाले जाने वाले भारतीयों को अपनाने के लिए देश तैयार है। फिर भी भारत के कुछ लोग हैं, जो अमेरिकी होने के लिए इस क़दर मर रहे हैं कि वे माँओं और बच्चों की जान तक दाँव पर लगाने को तैयार हैं। उन्हें ‘भारतीय गणतंत्र का कलंक’ न कहें तो क्या कहें?