दो शहर, दो बरस, दो पुस्तक पंक्तियाँ, एक कवि और एक ही तारीख

विकास, दिल्ली से 17/7/2021

आज फेसबुक की याद गली से गुज़रा तो यादें मिलीं। उसने कमाल की चीज़ याद दिलाई। दो साल के अंतराल की। एक 2018 और दूसरी 2020 की। और इसी अंतराल में छिपा है एक सुखद संयोग। संयोग, दो अलग-अलग बरसों में, दो अलग-अलग शहरों में रहते हुए, दो अलग-अलग पुस्तक पंक्तियों को, दो अलग-अलग सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स से एक ही तारीख को, एक ही लेखक को पढ़ने का। अपने प्रिय कवि गीत चतुर्वेदी को पढ़ने का। और संयोग ही है कि 2021 में इसी तारीख को मैं फिर गीत की दो अलग-अलग पुस्तकों को अपने साथ लिए चल रहा हूँ। बिंज पर गीत ‘उस पार’ बैठे हैं और इधर झोले में ‘अधूरी चीज़ों का देवता’ है। ऐसा बहुत कम होता है कि इतने सारे संयोग इस तरह बनते हों। और संयोगों के प्रति मानव स्वभावतः आकर्षित होता ही है। इसीलिए इस संयोग को मैं यहाँ डायरी में दर्ज कर रहा हूँ, ताकि जब-जब इस अनूठे संयोग को याद करूँ, तब-तब मन हर्षित हो उठे।

2018 में गीत जी का ट्वीट मैंने रिट्वीट किया था। पंक्तियाँ थीं:

बहुत सारे नाम मेरे भीतर दफ़न हैं, उन्हें अपनी ज़बान पर नहीं आने देता।

मैं नामों का कब्रिस्तान हूँ।

जबकि एक तुम्हारा नाम है, जो तैरता रहता है सतह पर

जलपाखी की तरह,

कभी-कभी मेरी देह के जल पर चोंच मारता है।

 

कोई कमेंट में बताए कि ये पंक्तियाँ किस किताब में हैं।

2020 में उनकी फेसबुक पोस्ट थी, उनकी किताब ‘न्यूनतम मैं’ से, जिसे मैंने शेयर किया थाः

कोई तुम्हें सुन लेता है

तो इसमें तुम्हारे बोलने का गौरव नहीं,

सुन लेने की उसकी इच्छा का है। 

और आज 2021 में मेरी हथेली पर अपने प्रिय कवि की नई किताब है, उसी से कुछ पंक्तियाँ :

प्यार एक करंट है, छूने से पास होता है- एक से दूसरे शरीर में, एक से दूसरी आत्मा में बहता है।  

कोई ज़रूरी नहीं कि हम अपनी ही ग़लतियों से मारे जाएँ, जीवन में कई बार हम दूसरों की ग़लतियों की सज़ा भुगतते हैं।

मौत आए, तो कम से कम सजने-सँवरने, अच्छे कपड़े पहनने और अलविदा का आख़िरी चुम्बन दर्ज करने की मोहलत ज़रूर दे। 

ये पंक्तियाँ गीत के पहले उपन्यास ‘उस पार’ से ही हैं।

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(विकास दिल्ली में निजी कम्पनी में काम करते हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में शामिल हैं। )

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