विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 5/5/2022
भोपाल में अब मुआवजे की चर्चा ही ज्यादा है। यही सवाल हवाओं में तैर रहे हैं ‘कितनों को कितना मिलेगा, कितना मिल चुका है, किसका कटेगा?”… हैरत की बात है कि आम पीड़ितों की दिलचस्पी इस सच्चाई को उजागर करने में उतनी नहीं दिखती कि हादसे के पहले और बाद की साजिशों का पर्दाफाश हो, साजिशें रचकर अपने उल्लू सीधे करने वाले नेता अफसर और जजों को भी उनके किए की सजा मिले। सजा न सही, उन्हें जवाबदेह तो ठहराया जाए। इससे कहीं ज्यादा दिलचस्पी मुआवजे की ताजा परोस में है।
गैस राहत मंत्री बाबूलाल गौर दिल्ली से लौट आए हैं।… उन्होंने साफ किया है कि गैस हादसे के 90 प्रतिशत से अधिक ऐसे पीड़ित इस बार मुआवजे से वंचित रहेंगे, जिन्हें पिछली बार मिल चुका हो। इस बार मुआवजा सिर्फ 42,208 लोगों को मिलेगा, जबकि पिछली बार इस दायरे में 5,58,245 गैस पीड़ित शामिल थे। मंत्री समूह की बैठक में भाग लेकर लौटे गौर ने कहा है कि यह नाइंसाफी है। उन्होंने कहा कि जिन पांच लाख से अधिक मामलों में मुआवजा नहीं दिया जा रहा है उसका कोई कारण बैठक में नहीं बताया गया।… मंत्री समूह की बैठक में हुए निर्णय के मुताबिक प्रभावितों को 700 करोड़ रुपए की राशि बांटी जाएगी। इसके लिए चार श्रेणियां बनाई गई हैं। मृत्यु से जुड़े मामलों में प्रति व्यक्ति के मान से परिजनों को दस लाख रुपए, स्थाई विकलांगता होने पर पांच लाख, अस्थाई विकलांगता के लिए तीन लाख और अस्थाई विकलांगता से घटी क्षमता से जुड़े मामलों में एक लाख रुपए का मुआवजा मिलेगा। चारों श्रेणियों में पूर्व में मिल चुके मुआवजे की राशि को काट कर ही भुगतान किया जाएगा।…
केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाले 1,392 करोड़ रुपए के पैकेज में 700 करोड़ रुपए मुआवजे के लिए हैं। शेष राशि का इस्तेमाल गैस पीड़ितों के पुनर्वास और उपचार से जुड़ी योजनाओं में होगा। राज्य सरकार की ओर से केंद्र को सौंपे गए 982.75 करोड़ रुपए के एक्शन प्लान में से अभी 610 करोड़ रुपए की स्वीकृति मिलनी है। गौर कहते हैं कि इसमें से 500 करोड़ रुपए संचित राशि के फंड और 100 करोड़ रुपए से अधिक की रकम गैस स्मारक के निर्माण के लिए हैं। उन्होंने कहा कि पिछले 11 साल से केंद्र से हमें कोई धनराशि नहीं मिली है। इसीलिए हमने 500 करोड़ रुपए की राशि मांगी है। इस राशि और इसके ब्याज से हम गैस पीड़ितों के कल्याण से जुड़ी योजनाएं संचालित करेंगे।…
गौर ने वॉरेन एंडरसन की रिहाई को लेकर आरोपों के दायरे में आए तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की। हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को उन्होंने जरूर कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि 1989 में केंद्र सरकार ने गैस पीड़ितों के हितों के संरक्षक के रूप में यूनियन कार्बाइड से 719 करोड़ रुपए का समझौता किया था। इसके बावजूद सरकार पीड़ितों के हित में कुछ विशेष नहीं कर पाई। बल्कि समझौते के एवज में उसने जो शर्तें मानी वह अपमानजनक और प्रभावितों के हितों पर कुठाराघात करने वाली थीं।
…. खबर है कि केंद्र सरकार गैस त्रासदी के पीड़ितों को बढ़े हुए मुआवजे की रकम यूनियन कार्बाइड (यूसीसी) और डाऊ केमिकल्स से क्सूलने की सोच रही हैं। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जा सकती है। कानून विशेषज्ञों का कहना है कि यूसीसी के साथ 47 करोड़ डॉलर का समझौता तय करने वाले सुप्रीम कोर्ट के 1989 के फैसले में मुआवजा बढ़ाने की गुंजाइश है।
तब यूसीसी के वकील फली नरीमन ने 42.6 करोड़ डॉलर के मुआवजे की पेशकश की थी। लेकिन तत्कालीन अटॉर्नी जनरल ने 50 करोड़ डॉलर मांगे। इस पर शीर्ष कोर्ट ने 47 करोड़ डॉलर के मुआवजे पर मुहर लगा दी। इसके बाद कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘इस मामले में किसी अहम सामग्री या बाध्यकारी परिस्थितियां सामने आने पर कोर्ट अपने कर्तव्य का पालन करते हुए समीक्षा के अधिकार का पालन करेगी। अन्य सभी संगठनों के समान यह कोर्ट भी मानवीय भूल कर सकती है।”
फैसले और 1991 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे सही ठहराने के बाद से अब तक 15 हजार अधिक गैस पीड़ितों की मौत हो चुकी है। एक वरिष्ठ वकील ने कहा, ‘बदले हुए हालात के बारे में सभी आंकड़े पुनर्विचार याचिका में रखे जाएंगे। पुराने फैसले में समीक्षा की गुंजाइश को देखते हुए हमें सकारात्मक नतीजों की उम्मीद है।’
…यूनियन कार्बाइड का अधिग्रहण करने वाली डाऊ केमिकल ने दावा किया है कि भारत सरकार ने 1984 की औद्योगिक दुर्घटना के मामले में यूसीसी और उसकी सहायक भारतीय कंपनी को एक समझौते के तहत मुआवजे के दायित्व से पूरी तरह मुक्त कर दिया था। कंपनी के प्रवक्ता स्काट व्हीलर ने कहा कि 1989 में भारत सरकार ने पीड़ित लोगों की ओर से कार्रवाई करते हुए संसद के कानून के तहत 47 करोड़ का निपटान समझौता किया था और यूसीसी तथा यूनियन कार्बाइड इंडिया को गैस हादसे के लिए मुआवजे के दायित्व से मुक्त कर दिया था।
डाऊ केमिकल ने कहा है कि यूनियन कार्बाइड के भोपाल का स्वामित्व उसके हाथ में नहीं था और न ही कभी उसे यह इकाई विरासत में मिली थी। व्हीलर ने कहा कि जब डाऊ ने यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन का अधिग्रहण किया था, उससे बहुत पहले यूसीसी ने भारत में कारोबार बंद कर दिया था और अपनी हिस्सेदारी यूनियन कार्बाइड इंडिया लि. को चुकी थी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यूसीसी एक अलग कंपनी है जिसका अलग निदेशक मंडल और अलग खाते तथा अपने कर्मचारी है। उन्होंने यह भी कहा कि भोपाल कारखाने का परिचालन करने वाली यूनियन कार्बाइड इंडिया आज भी चलती हुई कंपनी है और इसका नाम इसका नाम बदल कर एवर रेडी इंडस्ट्रीज इंडिया कर दिया गया है। डाऊ का उससे कभी कोई संपर्क नहीं रहा है।
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ
36. कचरे का क्या….. अब तक पड़ा हुआ है
35. जल्दी करो भई, मंत्रियों को वर्ल्ड कप फुटबॉल देखने जाना है!
34. अब हर चूक दुरुस्त करेंगे…पर हुजूर अब तक हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे थे?
33. और ये हैं जिनकी वजह से केस कमजोर होता गया…
32. उन्होंने आकाओं के इशारों पर काम में जुटना अपनी बेहतरी के लिए ‘विधिसम्मत’ समझा
31. जानिए…एंडरसरन की रिहाई में तब के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की क्या भूमिका थी?
30. पढ़िए…एंडरसरन की रिहाई के लिए कौन, किसके दबाव में था?
29. यह अमेरिका में कुछ खास लोगों के लिए भी बड़ी खबर थी
28. सरकारें हादसे की बदबूदार बिछात पर गंदी गोटियां ही चलती नज़र आ रही हैं!
27. केंद्र ने सीबीआई को अपने अधिकारी अमेरिका या हांगकांग भेजने की अनुमति नहीं दी
26.एंडरसन सात दिसंबर को क्या भोपाल के लोगों की मदद के लिए आया था?
25.भोपाल गैस त्रासदी के समय बड़े पदों पर रहे कुछ अफसरों के साक्षात्कार…
24. वह तरबूज चबाते हुए कह रहे थे- सात दिसंबर और भोपाल को भूल जाइए
23. गैस हादसा भोपाल के इतिहास में अकेली त्रासदी नहीं है
22. ये जनता के धन पर पलने वाले घृणित परजीवी..
21. कुंवर साहब उस रोज बंगले से निकले, 10 जनपथ गए और फिर चुप हो रहे!
20. आप क्या सोचते हैं? क्या नाइंसाफियां सिर्फ हादसे के वक्त ही हुई?
19. सिफारिशें मानने में क्या है, मान लेते हैं…
18. उन्होंने सीबीआई के साथ गैस पीड़तों को भी बकरा बनाया
17. इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह!
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया!