टीम डायरी
बीते चार-पाँच दिनों से मीडिया और सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर चीन की एक कहानी सुर्ख़ियों में है। ये ‘प्रेरक’ है और ‘रोचक-सोचक’ भी। ‘प्रेरक’ इसलिए है क्योंकि यह हर अभिभावक को एक दिशा दिखाती है कि उन्हें अपने बच्चों का पालन-पोषण वास्तव में कैसे करना चाहिए। जबकि ‘रोचक-सोचक’ इसलिए है कि जो-जो लोग भी मीडिया और सोशल मीडिया के मंचों पर यह कहानी साझा कर रहे हैं, उनमें से लगभग सभी (कुछ एकाध फ़ीसदी लोग अपवाद हों तो उन्हें छोड़कर) इसके ज़रिए दूसरों को उपदेश ही दे रहे हैं। जैसे गोस्वामी तुलसीदासजी रामचरित मानस में लिख गए हैं, ‘परउपदेश कुशल बहुतेरे, जो आचरहिं ते नर न घनेरे।’
बहरहाल, पहले इस कहानी के ‘प्रेरक तत्त्व’ पर ग़ौर करते हैँ। चीन के हुनान में एक 51 साल के अरबपति कारोबारी हैं। नाम है- झांग युदोंग। उनके बारे में अभी 25 मार्च को चीन के अख़बार ‘साउथ चाइना पोस्ट’ में ख़बर आई। इसमें बताया गया कि वे इस वक़्त चीनी मुद्रा में 60 करोड़ युआन की सम्पत्ति के मालिक हैं। भारतीय रुपए में उनकी सम्पत्ति 6 अरब 92 करोड़ के आस-पास हाेती है। ऐसा एनडीटीवी की वेबसाइट पर बताया गया, 26 मार्च को। हालाँकि युदाेंग ने सुर्ख़ियाँ इतनी सम्पत्ति का मालिक होने की वज़ह से नहीं बटोरीं। बल्कि इसलिए उनका नाम चर्चा में आया क्योंकि उन्होंने 20 साल तक अपने बेटे झांग ज़िलोंग को इस सम्पत्ति के बारे में कुछ भी नहीं बताया।
अब से क़रीब 24 बरस पहले युदोंग ने उसी साल अपना कारोबार शुरू किया, नई कम्पनी बनाई, जब उनका बेटा पैदा हुआ। धीरे-धीरे कारोबार बढ़ता गया। अरबों का हो गया। लेकिन युदोंग ने अपने बेटे को यह सब नहीं बताया। बल्कि वे एक साधारण घर में रहते रहे। बेहद साधारण सी जीवनशैली अपनाकर। बेटा भी सामान्य शिक्षण संस्थानों में पढ़ता रहा। आम युवाओं की तरह जीवन जीता रहा। हालाँकि उसे युदोंग ने यह ज़रूर बताया था कि उनका अपना कारोबार है। मगर साथ में यह भी जोड़ दिया था कि उनके ऊपर बहुत सारा कर्ज़ है। इसलिए माली हालत ख़राब है। इसी कारण वे लोग दूसरे अमीरों की तरह नहीं रह सकते। बेटे ने पिता की बात को सच माना।
लिहाज़ा, जब बेटे ने कॉलेज की डिग्री पूरी की तो उसने लगातार यह सोचना शुरू कर दिया कि कैसे वह कोई अच्छी नौकरी या काम-धंधा शुरू कर ले ताकि पिता के ऊपर से कर्ज़ का बोझ कम कर सके। अलबत्ता, उसी समय पिता ने बेटे को सच्चाई बता दी कि उसे चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं है। उन पर कोई कर्ज़ नहीं है। उन्होंने तो सिर्फ़ उसे अच्छी परवरिश देने के मक़सद से उससे झूठ बोला था। ताकि उस पर अमीरी का घमंड न चढ़े। साथ ही उन्होंने बेटे को निर्देश दिया कि वह पहले अपनी कम्पनी में आम कर्मचारियों की तरह काम का अनुभव हासिल करे। प्रशिक्षण ले। फिर अपना कारोबार सँभाले। ज़ाहिर है, अब भी बेटे ने बिना सवाल किए पिता की बात मानी।
इसके बाद अब आते हैं इस मामले के ‘रोचक-सोचक’ पहलू पर। ख़ुद को देशभर में ‘सबसे बड़ा’ कहने-मानने वाले एक अख़बार ने 29 मई को यही कहानी प्रकाशित की, पहले पन्ने पर। शीर्षक दिया, ‘परवरिश हो तो ऐसी’। जहाँ तक इस शीर्षक की बात है, तो इसमें कुछ ग़लत नहीं। वाक़ई परवरिश ऐसी ही होनी चाहिए। क्या रईस और क्या मध्यम वर्गीय। हर माता-पिता को अपने बच्चों में ऐसे संस्कार डालने चाहिए कि उनके पैर ज़मीन से लगे रहे हैं। मगर दिलचस्प सवाल है कि जिस अख़बार ने अपने पाठकों को यह उपदेश-सन्देश दिया, उसके मालिकान और सम्पादक वग़ैरा क्या ख़ुद ऐसा करते हैं? बिल्कुल नहीं। वे अपने बच्चों को सोने की थाली में अय्याशियाँ परोसकर देते हैं।
इन लोगों के बच्चे जब घुटने पर भी नहीं चलते, तभी उनके अगल-बगल इतने महँगे खिलौने होते हैं कि कई लोगों के पास उतनी कीमत के वाहन भी न होते होंगे। फिर जब वे पढ़ने जाते हैं, तो शहर के आलीशान स्कूल में उनका दाख़िला होता है। स्कूल की उम्र में ही महँगे मोबाइल फोन से लेकर दूसरे कई अत्याधुनिक उपकरण उनकी जेब में दिखते हैं। फिर कॉलेज पहुँचने तक शानदार लकदक गाड़ियाँ और तमाम ऐश-ओ-आराम उनकी गोद में होता है। रईसी का नशा उन पर सिर चढ़कर बोलता है। इस चक्कर में कई बार वे अपराध भी कर बैठते हैं। तब उनके माता-पिता उन्हें अपने रसूख के दम पर कानून के शिकंजे से बचा लाते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं।
इसके बाद जब इन रईसज़ादों के शादी-ब्याह ही बारी आती है तो वे पिता-चाचा, आदि कुर्सी के बगल में आ बैठते हैँ। शान से अपने उपक्रम के अनुभवी और योग्य पदाधिकारियों, कर्मचारियों को भी चुटकियाँ बजाकर, अँगुली दिखाकर डाँटते-डपटते हैं। क्योंकि उनके माता-पिता ने उनमें बचपन से ही अमीरी का दम्भ कूट-कूट कर भर दिया होता है। तो अब बताइए क्या ‘ऐसी हो ती परवरिश’? नहीं न? तो क्या ये बेहतर नहीं होता कि ये ‘उपदेशक’ लोग चीन के झांग युदोंग के बजाय ख़ुद अपने आचरण, अपनी परवरिश की मिसाल हमारे सामने पेश करते?
सोचिएगा?