टीम डायरी
अमेरिका के न्यू यॉर्क की क्वीन्स काउन्टी (कस्बा) में पैदा हुईं एक तैराक हैं। उम्र 96 साल। नाम है, जूडी यंग। और वे इस उम्र में सिर्फ़ नाम की ‘यंग’ नहीं है। सच में जवान हैं। उन्होंने अभी पिछले साल यानी 2022 में ही तैराकी की मास्टर्स स्विमिंग लीग में स्वर्ण पदक जीता है। अपनी उम्र की प्रतिस्पर्धाओं में ऐसे कई पदक उनके खाते में हैं। कुछ और लाने की तैयारी है। हालाँकि उनसे जुड़ी ख़ास बात यही नहीं है।
जूडी यंग की कहानी में अहम बात ये है कि उन्होंने 60 साल की उम्र में यह लक्ष्य बनाया था कि उन्हें 100 साल तक जीना है। इसके बाद उन्होंने उस लक्ष्य तक पहुँचने की सहायक गतिविधि के तौर पर तैराकी वग़ैरा को चुना। यानी उनका प्राथमिक लक्ष्य उम्र के तीन अंकों के आँकड़े तक पहुँचना रहा। इसमें अभी 96 साल की उम्र तक तो वे पहुँच ही चुकी हैं। और अभी जिस अन्दाज़ में उनका जीवन चल रहा है, उसे देख-समझकर सहज भरोसा किया जा सकता है कि वे अपने लक्ष्य से आगे भी निकल सकती हैं। आसानी से।
अलबत्ता, इसमें भी सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें उनके लक्ष्य तक पहुँचने में सिर्फ़ तैराकी या अन्य शारीरिक गतिविधियाँ ही सहायक नहीं बनी हैं। बल्कि इसमें सबसे बड़ी मदद मिली है उनकी सामाजिक सक्रियता से। पारिवारिक रिश्ते-नातों से। दोस्ती-यारी से। संगीत से। साहित्य से। मतलब उन तमाम चीजों से जिन्हें आधुनिकता की और कथित तरक्की की आपाधापी अक्सर पीछे बहुत धकेल देती है।
ख़ुद जूडी यंग ने ख़बरनवीसों को बताया है, “मैं कोई खास खान-पान वग़ैरा नहीं अपनाती। विशेष क़सरत वग़ैरा भी नहीं। खूब पैदल चलती हूँ। तैराकी करती हूँ। और इस सबसे अलग दोपहर या फिर रात का भोजन अपने किसी दोस्त के साथ ही करती हूँ। नए दोस्त बनाती हूँ। उनके साथ वक़्त बिताती हूँ। उन दोस्तों से मुझे ऊर्जा मिलती है। किताबें, ख़ास तौर पर उपन्यासें पढ़ती हूँ। उनके बहुत से क़िरदारों काे याद रखने के लिए दिमाग़ पर जोर पड़ता है। इससे दिमाग़ चुस्त रहता है। संगीत सुनती हूँ। उससे सुकून मिलता है। बस, इतना ही।”
मतलब जूडी यंग के इस एक उदाहरण से समझने लायक ‘रोचक-सोचक’ मसला यूँ हुआ कि जिन चीज़ों को हम पीछे धकेल दिया करते हैं न अक्सर। वही हमारे जीवन की प्राणवायु होती हैं। संगीत, साहित्य, परिवार, दोस्त। इन्हें पकड़कर रखिएगा। अगर किसी वजह से ये छूट गईं हैं तो इन्हें फिर अपनी जीवनचर्या में वापस लाने की कोशिश कीजिएगा। उम्र लम्बी हो न हो, बड़ी ज़रूर हो जाएगी।
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