Hindi

हो सके तो अपनी दिनचर्या में ज्यादा से ज्यादा हिन्दी का प्रयोग करें, ताकि….

ज़ीनत ज़ैदी, शाहदरा, दिल्ली से

हमारे द्वारा प्रयोग में लाने वाली भाषा न सिर्फ संचार का जरिया है बल्कि वह हमारी पहचान भी है। हमारा जन्म भारत जैसे महान देश में हुआ। यहाँ प्रत्येक भाषा को समान महत्त्व और इज्जत दी जाती है। वैसे तो हमारे पास 122 से ज्यादा भारतीय देसी भाषाएँ और 21 आधुनिक भारतीय भाषाएँ हैं। इनमें हिन्दी, उर्दू ,गुजराती, तमिल आदि शमिल है। लेकिन इतनी भाषाएँ होने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण यह है कि हम दूसरे की बात को सही तरीके से समझ और जान पाएँ।

ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 200 साल भारत पर राज किया। और उसके आने के बाद भारतीयों ने अपनी भाषा को कमतर मानकर अंग्रेजी का प्रयोग ज्यादा करना शुरू कर दिया। उसे ज्यादा सम्मानित समझा। इस अंग्रेजियत के नतीजे में अब हमारे घरों में वेस्टर्न भाषा ही नहीं, कपड़े, तौर-तरीके आदि भी नजर आ ही जाया करते हैं। फ़िर चाहे हमारी संस्कृति से ताल्लुक रखने वाली चीजें हमारे घरों में मौजूद हों या न हों।

जबकि सही ये है कि हिन्दी और संस्कृत जैसी भाषाएँ हमारी मातृभाषा और प्राचीन भाषाएँ हैं। इसके तहत हमें अपने देश की संस्कृति को जिन्दा रखने के लिए आमतौर पर उसका इस्तेमाल करना चाहिए। पर ऐसा होता नहीं। इसमें कुछ झूठ नहीं कि भारत के 43% लोग ही आज हिन्दी जनते हैं। ऐसे में, हम हिन्दुस्तानियों का हिन्दी छोड़कर अंग्रेजी का प्रयोग करना, हमारे अपने लिए एक प्रश्न चिन्ह है। सवाल है कि क्या कोई कमी रह गई थी हमारे देश की भाषा में, जो हमें इसे छोड़ बाहरी देश की भाषा को अपना पड़ा?

आखिर क्यों कर हमें हिन्दी बोलने में शर्म महसूस होती है? हिन्दी को भूलकर अगर भारत की बाकी और भाषाऔ को देखा जाए तो उन्हें बोलने में कोई भी हर्ज नहीं। लेकिन क्या आपस में बातचीत करने के लिए हमें उस की भाषा जरूरत होनी चाहिए जो हमारे देश की है ही नहीं?

अजीब बात है कि हमारे यहाँ थोड़ी सी गलत अंग्रेजी बोलना भी इज्जत की धज्जियाँ उड़ाने के समान माना जाता है। आपका मजाक बनेगा, यह भी निश्चित है। लेकिन हम अपनी मातृभाषा के बारे में जानकारी रखें या नहीं, उसमें कुछ गलत भी बोल जाएँ, तब भी किसी को कोई परेशानी नहीं।

इन सब बातों से मेरा मकसद किसी भाषा के खिलाफ होना या उसका अपमान करना नहीं। लेकिन हाँ, यह कहने में मैं गर्व महसूस करती हूँ कि मेरी मातृभाषा हिन्दी है। मैं इसे बाहरी देशों की भाषा के मुकाबले में 100 गुना ज्यादा महत्त्व देती हूँ। हम सब को चाहिए की हिन्दी को और अन्य भारतीय भाषाओं को उनका खोया हुआ स्थान और मान वापस दिलाएँ, जो कहीं ठहर सा गया है। हो सके तो अपनी दिनचर्या में ज्यादा से ज्यादा हिन्दी का प्रयोग करें। ताकि हिन्दी की अहमियत हमारे समाज में बनी रहे। और हिन्द देश की संस्कृति आबाद रहे।

जय हिन्द।
——
(ज़ीनत #अपनीडिजिटलडायरी के सजग पाठक और नियमित लेखकों में से एक हैं। दिल्ली के आरपीवीवी, सूरजमलविहार स्कूल में 10वीं कक्षा में पढ़ती हैं। लेकिन इतनी कम उम्र में भी अपने लेखों के जरिए गम्भीर मसले उठाती हैं। उन्होंने यह आर्टिकल सीधे #अपनीडिजिटलडायरी के ‘अपनी डायरी लिखिए’ सेक्शन पर पोस्ट किया है।)
——-
ज़ीनत के पिछले लेख
6- खुद को पहचानिए, ताकि आप खुद ही खुद से महरूम न रह जाएँ
5- अनाज की बरबादी : मैं अपने सवाल का जवाब तलाशते-तलाशते रुआसी हो उठती हूँ
4- लड़कियों को भी खुले आसमान में उड़ने का हक है, हम उनसे ये हक नहीं छीन सकते
3- उड़ान भरने का वक्त आ गया है, अब हमें निकलना होगा समाज की हथकड़ियाँ तोड़कर
2- दूसरे का साथ देने से ही कर्म हमारा साथ देंगे
1- सुनें उन बच्चों को, जो शान्त होते जाते हैं… कहें उनसे, कि हम हैं तुम्हारे साथ

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *