वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध का पुनर्जन्म और धर्मचक्रप्रवर्तन

अनुज राज पाठक, दिल्ली से, 25/5/2021

वन में वैशाख पूर्णिमा को जन्मा राजकुमार फिर वन की तरफ चल दिया। पुनः जन्म लेने हेतु। वह राजगृह के घने वनों में भटकता रहा। पहाड़ियों की गुफ़ाओं में ध्यान, तप और अध्ययन करते हुए समय व्यतीत किया। कुछ समय आलार कालाम सन्यासी के पास रहे। उसके बाद उद्रक नामक सन्यासी से हिन्दू धर्म दर्शन की शिक्षा प्राप्त की। उद्रक ने सांख्य दर्शन के अनुसार शिक्षा प्रदान की थी। लेकिन इससे सिद्धार्थ को मानसिक शान्ति नहीं मिली हृदय को सन्तोष न मिला।

लिहाज़ा फिर तपस्या से ज्ञान की प्राप्ति हेतु सात वर्षों तक उर्बला के वनों में घोर तप किया। लेकिन अपने पाँच साथियों के साथ सात वर्षों के कठोर तप से भी समाधान नहीं मिला। तप करते-करते दुर्बलता के कारण मूर्छित होकर गिर पड़े। उन्हें समझ आया तप से भी ज्ञान नहीं प्राप्त होगा और अपना यह मत साथियों के सामने रखा तो उनके साथी उन्हें वहीं छोड़ बनारस के पास ऋषिपत्तन चले गए।

इधर गौतम को ज्ञान की तीव्र भूख थी। इस ज्ञान के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व त्याग दिया तो बिना ज्ञान कैसे रहा जा सकता था। सिद्धार्थ अकेले ही विशाल पीपल वृक्ष के नीचे बैठ विचारमग्न रहने लगे। सुजाता नामक कृषक कन्या उन्हें सन्यासी समझ भोजन दे जाती थी। एक लम्बे समय तक चिन्तन करते रहे। और एक दिन आँखों के आगे प्रकाश प्रस्फुटित हुआ।

अपने जन्म के दिन अर्थात् वैशाख पूर्णिमा को विशाल वट के नीचे सिद्धार्थ का पुनर्जन्म हुआ। उन्हें सत्य की प्राप्ति हुई और बोध हुआ। इस दिन से सिद्धार्थ से बुद्ध हुए। वह सत्य ऐसा था जिसे न विद्या से और न तप से सीखा जा सकता था। वह सत्य  ‘आर्य सत्य’ के रूप में सामने आया। बुद्ध को चार आर्य सत्यों का बोध हुआ। कहते हैं, बोध होने के बाद बुद्ध उसी बोधि वृक्ष के नीचे एक सप्ताह तक बैठकर विमुक्ति के सुख का आनन्द लेते रहे। 

फिर विचार उठा इन आर्य सत्यों का उपदेश सबसे पहले किसे दिया जाए। अतः बुद्ध अपने उन साथियों को उपदेश देने का निश्चय करते हैं जो उन्हें छोड़कर चले गए थे। ऋषिपत्तन पहुँचकर बुद्ध ने उन पाँचों भिक्षुओं को उपदेश देना प्रारम्भ किया। इस प्रथम उपदेश को ‘धर्मचक्रप्रवर्तन’ कहा जाता है।

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(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 12वीं कड़ी है।)

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अनुज राज की ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की पिछली कड़ियां ये रहीं….

11वीं कड़ी : सिद्धार्थ के बुद्ध हो जाने की यात्रा की भूमिका कैसे तैयार हुई?

10वीं कड़ी :विवादित होने पर भी चार्वाक दर्शन लोकप्रिय क्यों रहा है?

नौवीं कड़ी : दर्शन हमें परिवर्तन की राह दिखाता है, विश्वरथ से विश्वामित्र हो जाने की!

आठवीं कड़ी : यह वैश्विक महामारी कोरोना हमें किस ‘दर्शन’ से साक्षात् करा रही है? 

सातवीं कड़ी : ज्ञान हमें दुःख से, भय से मुक्ति दिलाता है, जानें कैसे?

छठी कड़ी : स्वयं को जानना है तो वेद को जानें, वे समस्त ज्ञान का स्रोत है

पांचवीं कड़ी : आचार्य चार्वाक के मत का दूसरा नाम ‘लोकायत’ क्यों पड़ा?

चौथी कड़ी : चार्वाक हमें भूत-भविष्य के बोझ से मुक्त करना चाहते हैं, पर क्या हम हो पाए हैं?

तीसरी कड़ी : ‘चारु-वाक्’…औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए!

दूसरी कड़ी : परम् ब्रह्म को जानने, प्राप्त करने का क्रम कैसे शुरू हुआ होगा?

पहली कड़ी :भारतीय दर्शन की उत्पत्ति कैसे हुई होगी?

 

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