गुणवान नारी सृष्टि में अग्रिम पद धारण करती है…

अनुज राज पाठक, दिल्ली से, 8/3/2022

आज ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ है। पूरा विश्व महिला सशक्तिकरण और महिलाओं के अधिकारों पर व्याख्यान दे रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में, मैं भी जब जैनदर्शन की इस श्रृंखला का यह भाग महिला-केन्द्रित होकर लिखने की इच्छा से बैठा, तो सोचने लगा कि भारतीय समाज कितना उदार रहा है। भारतीय समाज में प्रत्येक विचारधारा पुरुष के पक्ष में नहीं, अपितु शक्ति की आराधना में लीन दिखाई देती है। मुझे इस बात कर गर्व की अनुभूति हुई कि भारतीय समाज की श्रेष्ठता सम्भवत: इसी में है कि वह मानवीय है। यहाँ महिला को अशक्त माना ही नहीं गया, जो उसके सशक्तिकरण के लिए आन्दोलित होने की आवश्यकता दिखाई दे। 

जिस विचारधारा में अर्ध-नारीश्वर की संकल्पना विद्यमान हो। जिस समाज में शक्ति का महत्त्व पहले हो। जिस समाज में भगवान के नाम से पहले देवी (श्री) के नाम की आराधना होती हो। जिस समाज में किसी मत-प्रवर्तकों की श्रृंखला में स्त्री-तीर्थंकर विद्यमान हों। जिस समाज में धर्म-दिग्विजय पर निकला सन्यासी शास्त्रार्थ में निर्णायक स्त्री को बनाता हो। वह समाज किसी ‘महिला दिवस’ का अनुसरणकर्ता नहीं, अपितु शक्ति का अनुसरणकर्ता ही हो सकता है।

इसलिए आज ‘महिला दिवस’ के मौके पर जैन परम्परा में महिला शक्ति की चर्चा करना अपेक्षाकृत सरल प्रतीत होता है।  

जैन आचार्य लिखते हैं… 

पुण गुणसहिदाओ इच्छीओ अत्थि वित्थडजसाओ।
णरलोगदेवदाओ देवेहिं वि वंदणिज्जाओ।
तित्थयर चक्कधर वासुदेवबलदेवगणधरवराणं।
जणणीओ महिलाओ सुरणरवरेंहिं महियाओ।। (भगवती आराधना 995-997)। 

अर्थात्- जगत् में कोई-कोई स्त्रियाँ गुणातिशय से शोभायमान होने के कारण मुनियों के द्वारा भी स्तुति योग्य हुई हैं। उनका यश जगत् में फैला है, ऐसी स्त्रियाँ मनुष्य लोक में देवता के समान पूज्य हुई हैं। देव उनको नमस्कार करते हैं। तीर्थंकर, चक्रवर्ती, नारायण, बलभद्र और गणधरादिकों को प्रसवने वाली स्त्रियाँ देव और मनुष्यों में प्रधान व्यक्ति हैं। 

हालाँकि, यह भी कहना अनुचित नहीं कि जैन धर्म की दिगम्बर परम्परा मानती है कि महिलाओं को मोक्ष प्राप्त नहीं होता। लेकिन इसके वहाँ जैविक कारण गिनाए गए हैं। सामाजिक या धार्मिक कारण मोक्ष में बाधा नहीं हैं। इसीलिए महावीर स्वामी के समय से ही जैन धर्म में महिला साध्वियों की संख्या अधिक विद्यमान रही है। आज भी श्वेताम्बर परम्परा में साध्वियों की संख्या अधिक दिखती है।  

जैन आचार्य गर्व से कहते हैं… “नारी गुणवती धत्ते सृष्टि अग्रिमम् पदम्” अर्थात् गुणवान नारी सृष्टि में अग्रिम पद धारण करती है। 

तीर्थंकरों ने समवशरण में नारियों को दीक्षित कर आर्यिका बनाकर उच्च स्थान दिया है। भगवान ऋषभदेव ने राज्य-अवस्था में अक्षर और अंक विद्या पहले ब्राह्मी और सुन्दरी को प्रदान की। बाद में भरत और बाहुबली को। जैन धर्म में कन्या को ‘सचित्त मंगल’ कहा गया है। 

इस प्रकार जब भी भारतीय परम्परा के किसी भी विचार को उठाते हैं, वहाँ स्त्री के सन्दर्भ में केवल सुन्दर विचार ही नहीं मिलते, अपितु व्यवहार में भी, आचरण में भी उन्हें महापुरूषों ने अपनाया है। 

हालाँकि भारतीय समाज एक लम्बे कालखंड में अपनी विषम परिस्थितियों के कारण कुछ मतिभ्रम का शिकार हुआ। अपनी परम्पराओं से पृथक् हुआ। इस कारण आज बहुत से भेद, विभेद, मतभेद, दिखाई पड़ते हैं। अगर हम अपनी मानवीय विश्व में प्रथमा विश्ववारा, भारतीय संस्कृति का अनुसरण करें, तो समाज पुन: स्त्री-पुरुष भेद से ऊपर उठकर मानव के स्वरूप को पहचान अर्धनारीश्वर की संकल्पना की आराधना से युक्त होगा। 
—— 
(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 48वीं कड़ी है।) 
— 
डायरी के पाठक अब #अपनीडिजिटिलडायरी के टेलीग्राम चैनल से भी जुड़ सकते हैं। जहाँ डायरी से जुड़ अपडेट लगातार मिलते रहेंगे। #अपनीडिजिटिलडायरी के टेलीग्राम चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करना होगा। 
—- 
अनुज राज की ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ… 
47.चेतना लक्षणो जीव:, ऐसा क्यों कहा गया है? 
46. जानते हैं, जैन दर्शन में दिगम्बर रहने और वस्त्र धारण करने की परिस्थितियों के बारे में
45. अपरिग्रह : जो मिले, सब ईश्वर को समर्पित कर दो
44. महावीर स्वामी के बजट में मानव और ब्रह्मचर्य
43.सौ हाथों से कमाओ और हजार हाथों से बाँट दो
42. सत्यव्रत कैसा हो? यह बताते हुए जैन आचार्य कहते हैं…
41. भगवान महावीर मानव के अधोपतन का कारण क्या बताते हैं?
40. सम्यक् ज्ञान : …का रहीम हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात!
39. भगवान महावीर ने अपने उपदेशों में जिन तीन रत्नों की चर्चा की, वे कौन से हैं?
38. जाे जिनेन्द्र कहे गए, वे कौन लोग हैं और क्यों?
37. कब अहिंसा भी परपीड़न का कारण बनती है?
36. सोचिए कि जो हुआ, जो कहा, जो जाना, क्या वही अंतिम सत्य है
35: जो क्षमा करे वो महावीर, जो क्षमा सिखाए वो महावीर…
34 : बौद्ध अपनी ही ज़मीन से छिन्न होकर भिन्न क्यों है?
33 : मुक्ति का सबसे आसान रास्ता बुद्ध कौन सा बताते हैं?
32 : हमेशा सौम्य रहने वाले बुद्ध अन्तिम उपदेश में कठोर क्यों होते हैं? 
31 : बुद्ध तो मतभिन्नता का भी आदर करते थे, तो उनके अनुयायी मतभेद क्यों पैदा कर रहे हैं?
30 : “गए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास”
29 : कोई है ही नहीं ईश्वर, जिसे अपने पाप समर्पित कर हम मुक्त हो जाएँ!
28 : बुद्ध कुछ प्रश्नों पर मौन हो जाते हैं, मुस्कुरा उठते हैं, क्यों?
27 : महात्मा बुद्ध आत्मा को क्यों नकार देते हैं?
26 : कृष्ण और बुद्ध के बीच मौलिक अन्तर क्या हैं?
25 : बुद्ध की बताई ‘सम्यक समाधि’, ‘गुरुओं’ की तरह, अर्जुन के जैसी
24 : सम्यक स्मृति; कि हम मोक्ष के पथ पर बढ़ें, तालिबान नहीं, कृष्ण हो सकें
23 : सम्यक प्रयत्न; बोल्ट ने ओलम्पिक में 115 सेकेंड दौड़ने के लिए जो श्रम किया, वैसा! 
22 : सम्यक आजीविका : ऐसा कार्य, आय का ऐसा स्रोत जो ‘सद्’ हो, अच्छा हो 
21 : सम्यक कर्म : सही क्या, गलत क्या, इसका निर्णय कैसे हो? 
20 : सम्यक वचन : वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के स्तर का पता चलता है 
19 : सम्यक ज्ञान, हम जब समाज का हित सोचते हैं, स्वयं का हित स्वत: होने लगता है 
18 : बुद्ध बताते हैं, दु:ख से छुटकारा पाने का सही मार्ग क्या है 
17 : बुद्ध त्याग का तीसरे आर्य-सत्य के रूप में परिचय क्यों कराते हैं? 
16 : प्रश्न है, सदियाँ बीत जाने के बाद भी बुद्ध एक ही क्यों हुए भला? 
15 : धर्म-पालन की तृष्णा भी कैसे दु:ख का कारण बन सकती है? 
14 : “अपने प्रकाशक खुद बनो”, बुद्ध के इस कथन का अर्थ क्या है? 
13 : बुद्ध की दृष्टि में दु:ख क्या है और आर्यसत्य कौन से हैं? 
12 : वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध का पुनर्जन्म और धर्मचक्रप्रवर्तन 
11 : सिद्धार्थ के बुद्ध हो जाने की यात्रा की भूमिका कैसे तैयार हुई? 
10 :विवादित होने पर भी चार्वाक दर्शन लोकप्रिय क्यों रहा है? 
9 : दर्शन हमें परिवर्तन की राह दिखाता है, विश्वरथ से विश्वामित्र हो जाने की! 
8 : यह वैश्विक महामारी कोरोना हमें किस ‘दर्शन’ से साक्षात् करा रही है?  
7 : ज्ञान हमें दुःख से, भय से मुक्ति दिलाता है, जानें कैसे? 
6 : स्वयं को जानना है तो वेद को जानें, वे समस्त ज्ञान का स्रोत है 
5 : आचार्य चार्वाक के मत का दूसरा नाम ‘लोकायत’ क्यों पड़ा? 
4 : चार्वाक हमें भूत-भविष्य के बोझ से मुक्त करना चाहते हैं, पर क्या हम हो पाए हैं? 
3 : ‘चारु-वाक्’…औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए! 
2 : परम् ब्रह्म को जानने, प्राप्त करने का क्रम कैसे शुरू हुआ होगा? 
1 : भारतीय दर्शन की उत्पत्ति कैसे हुई होगी? 

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *