राजश्री सेलूकर, महाराष्ट्र से, 10/7/2022
महाराष्ट्र के पंढरपुर में भगवान विट्ठल के नाम से विष्णुजी का अवतार विराजित है। उनके दर्शनों के लिए पूरे महाराष्ट्र से पैदल यात्रा करते हुए भक्त-गण आषाढ़ी एकादशी के दिन पंढरपुर पहुँचते हैं। उनकी इस यात्रा को ‘दिंडी यात्रा’ के नाम से जाना जाता है। यह यात्रा हो चुकी। एकादशी का दिन भी बीत गया। लेकिन ‘विट्ठल हरि’ की भक्ति का भाव बना हुआ है। हमेशा बना रहने वाला है। क्योंकि यह ऐसा भाव नहीं, जाे दिन बीतने साथ बीत जाता हो।
इस भाव की एक झलक यहाँ ऑडियो की शक्ल में दिए गए भजन में मिलती है। मूल रूप से यह भजन सुरेश वाडकरजी ने गाया है। शब्द रचना संत नामदेवजी की है। इस अभंग में नामदेवजी कहते हैं, ‘विट्ठल चराचर में है। भगवान विट्ठल का नाम लेने से मनुष्य, संसार के मोह-माया से मुक्त हो जाता है। इसलिए जब भी हम नाम लें तो भगवान के ही नाम का उच्चारण करें।’ अंत में नामदेवजी कहते हैं, ‘नाम लेते हुए भगवान के शरण जाओ और संसार से तरकर मुक्त हो जाओ।’
#अपनीडिजिटलडायरी के लिए, ख़ास तौर पर यह भजन महाराष्ट्र से ताल्लुक़ रखने वालीं राजश्री सेलूकर ने गाया है। राजश्री भगवान विट्ठल की भक्त हैं और उनके सुरों में उनकी भक्ति की शक्ति दिखती भी है। भजन ‘राग मालकौंस’ में निबद्ध है। बोल मराठी में हैं। ऐसे में, सम्भव है कि सुनते वक़्त शब्दों से समझ का तारतम्य न बन पाए। लेकिन उसमें निहित भाव से अभिभूत हुए बिना कोई भी सुनने वाला रह नहीं सकेगा। यह यक़ीन के साथ कहा जा सकता है। भरोसा न हो ख़ुद सुनकर देखा जा सकता है यह भजन।
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nice song
Khup sunder taiii
"विठ्ठल नामाचा रे टाहो" अप्रतिम...👌👌👌
Atyadbhutam getham rajasri bhagini...👌🙏👏