अनुज राज पाठक
सुख। हम अपने जीवन में सब कुछ इस सुख को पाने के लिए करते हैं। अन्तत: सुख ही नहीं मिलता। तो फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि हम सुख के लिए कुछ करते ही न हों? अब प्रश्न है कि फिर समस्त प्रयास किसके लिए हैं? आइए देखते हैं किसके लिए प्रयास है। एक सेठ जी को एक बार यह जानने की चिन्ता हुई कि मेरी सम्पत्ति कितनी है? इसका उपभोग और कितने दिन किया जा सकता है? सो, तत्काल उन्होंने अपने अकाउंटेंट को बुलवा भेजा और उससे जानना चाहा। बदले में लेखाधिकारी ने कुछ समय माँगा। कुछ दिनों बाद लेखाधिकारी सेठ जी को बताता है कि यह सम्पत्ति आपकी अगली आठ पीढ़ियों तक के लिए पर्याप्त है। फिर क्या था सेठ जी चिन्ता में डूब गए। घर वाले चिन्ता का कारण पूछते तो सेठ जी कुछ न बताते। धीरे-धीरे सेठ जी बीमार रहने लगे। उनका कामधाम में भी मन नहीं लगता। उनकी पत्नी ने कारण पूछा तो भी सेठ जी ने कुछ नहीं बताया। तब पत्नी ने सेठ जी को सत्संग में भाग लेने की प्रेरणा दी। सेठ जी को यह विचार अच्छा लगा और शहर से दूर एक महात्मा के पास सत्संग के लिए जाने लगे। कुछ दिनों बाद सेठ जी ने अपने मन की पीड़ा साधु को बताई। महात्मा ने कहा, “इसका तो बहुत आसान सा समाधान है। सेठ जी नगर से अन्तिम छोर पर एक बुढ़िया रहती है। वह एकदम कंगाल है। अगर उसको आप ने आधा किलो आटा दान दे दिया तो आपके सभी उत्तर मिल जाएँगे।” सेठ जी यह उपाय बढ़ा आसान लगा। सेठ जी अपने सेवक के साथ कुंटलभर आटा लेकर बुढ़िया के पास पहुँचे और बोले, “माता जी आप के लिए कुंटलभर आटा लाया हूँ। आप इसे स्वीकार कर लीजिए।” जवाब में बूढ़ी मां ने कहा, “बेटा मेरे पास आटा है। क्या करूँगी इसे लेकर। मुझे इसकी ज़रूरत नहीं है।” तब सेठ जी फिर कहते हैं, “माता आधा किलो ही लेलो।” बूढ़ी माँ फिर कहती है, “बेटा आज खाने के लिए है। मुझे अतिरिक्त की ज़रूरत नहीं। इसलिए इसका क्या करूँगी।” इसके बाद भी सेठ ली आग्रह किया, “माँ इसे कल के लिए रख लो।” इस पर भी बूढ़ी माँ का वैसा ही ज़वाब, “बेटा कल की चिन्ता आज क्यों करूँ? जैसे, हमेशा प्रबन्ध हो जाता है, वैसे ही कल भी हो जाएगा।” सेठ जी को समझ आ गया कि उनकी चिन्ता का कारण क्या है और उसका समाधान क्या है। सेठ जी, दरअसल, सुख नहीं तृष्णा के लोभ में थे। तृष्णा गई, सुख मिला। इसी को मोक्ष का मार्ग बताया है। “सम्यक दर्शन ज्ञान चरित्राणि मोक्षमार्ग:”(तत्वसूत्र 1/1) सम्यक दर्शन ज्ञान और चरित्र मोक्ष के मार्ग हैं। मोक्ष का मार्ग सुख का मार्ग है। सुख तो बड़ी सहज चीज है। सुख के लिए तो बस त्याग करना पड़ता है। चीजों को छोड़ देना ही सुख है। निर्लिप्त होना ही सुख है। जैसे ही तृष्णा से छूटे मोक्ष के अधिकारी बन गए। इसी निर्लिप्पता को पाकर हम कर्म पुद्गलों से मुक्त हो जाते हैं। आचार्य उमा स्वामी कहते हैं, “बधहेत्वभावनिर्जराभ्या कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्ष: (तत्त्ववार्तिक 1/1/37) अर्थात् निर्जरा द्वारा समस्त कर्मों का आत्मा से अत्यंतिक क्षय होना या अलग होना मोक्ष है। यह मोक्ष सुख स्वरूप है। आत्मा कर्म के क्लेश से मुक्त हो परम सुख रूप मोक्ष को हासिल करता है। मोक्ष हासिल करने वाला व्यक्ति जिन हो जाता है। सुख स्वरूप हो जाता है।
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(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 53वीं कड़ी है।)
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