टीम डायरी
मीडिया और मनोरंजन उद्योग में नामी व इज़्ज़तदार शख़्सियत हैं जनाब सैयद मोहम्मद इरफ़ान। रेडियो और टेलीविज़न से इनका पुराना नाता है। फिल्मी दुनिया पर ख़ासी पकड़ रखते हैं। इनका एक शो ख़ूब मशहूर है, ‘गुफ़्तगू विद इरफ़ान”। इसमें वे बड़े इत्मिनान से कला, साहित्य, संगीत, फिल्म, वग़ैरा से जुड़ी शख़्सियतों के इंटरव्यूज़ लिया करते हैं। राज्यसभा टीवी (अब संसद टीवी) पर क़रीब 10 साल तक यह शो चला। अब ‘ज़श्न-ए-रेख़्ता’ के ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आया करता है। ऐसा ख़ुद इरफ़ान साहब से जुड़ी वेबसाइट से पता चलता है।
इरफ़ान साहब ट्विटर पर भी सक्रिय हैं। ‘इरफ़ानियत’ के नाम से उनका ट्विटर अकाउंट है। इसमें वे बड़े दिलचस्प और काम के वीडियो वग़ैरा साझा किया करते हैं। ऐसे जो आसानी से हर कहीं नहीं मिलते। लेकिन ऐसे भी जिन्हें हर कहीं होना ज़रूर चाहिए। मिसाल के तौर पर मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह का ये वीडियो जो नीचे दिया गया है। इरफ़ान साहब ने इसे इसी जुलाई महीने की 18 तारीख़ को अपने ट्विटर अकाउंट पर साझा किया था। ग़ौर से देखिएगा और उस मर्म को समझने की कोशिश कीजिएगा, जो ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी देता है।
کوئی یہ کیسے بتائے کی وہ تنہا کیوں ہے؟
Yehi Duniya Hai To Phir, Aisi Ye Duniya Kyun Hai ?
यही होता है तो आख़िर, यही होता क्यों है ?#JagjitSingh #KaifiAzmi #Arth pic.twitter.com/b7b9H20U9M— Irfan (@irfaniyat) July 17, 2023
नहीं समझे हों तो थोड़ा हम समझाने की कोशिश कर लेते हैं। वीडियो ज़ाहिर तौर पर जगजीत सिंह की मशहूरियत के शुरुआती दिनों का लगता है। मारुति-800 कार है उनके पास। लेकिन शायद पुरानी ख़रीदी है। कई बार क़ोशिश करने के बाद चालू नहीं होती। तब ख़ुद ही अकेले उसे धक्का लगाकर कुछ दूर ले जाते हैं। और फिर कार चल पड़ती है। यह सभी देख सकते हैं। पृष्ठभूमि में जगजीत साहब की ही ग़ज़ल चल रही है, “कोई ये कैसे बताए कि वो तन्हा क्यूँ है…..” फिर आगे, “यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यूँ है….. यही होता है तो आख़िर यही होता क्यूँ है?”
अब इस देखे-सुने से भी आगे ज़िन्दगी का वह फ़लसफ़ा, जो न दिखाई देता है, न सुनाई। पर है इसमें और सबके समझने लायक भी। यूँ कि संघर्ष हर किसी का अपना अलहदा होता है। इस दौर में अक्सर ही हमारी गाड़ी बन्द पड़ जाया करती है। तमाम क़ोशिश के बावज़ूद चालू नहीं होती। कोई धक्का लगाने को आगे नहीं आता। ख़ुद ही धक्का लगाना पड़ता है। अकेले। जिसने ये हौसला कर लिया, इस दौर को पार कर लिया, उसकी गाड़ी चल पड़ती है। या यूँ कहें कि उसी की गाड़ी चलती है आगे। बाकी सब, जो संघर्ष के दौर में उलझ जाते हैं, अपनी गाड़ी को अकेले धक्का लगाने का हौसला नहीं कर पाते, वे अटके रह जाते हैं। उलझे रह जाते हैं। पीछे….., बहुत पीछे कहीं।
“यही दुनिया है….. यही होता है।” और ये सवाल कि “ऐसी ये दुनिया क्यूँ है… आख़िर यही होता क्यूँ है?”, सालों-साल पहले भी बिना ज़वाब के था और आगे भी ऐसा ही रहने वाला है।