“हम बताते हैं”… एक अघोषित नकारात्मक वाक्य में छुपी सकारात्मकता

प्रशांत शर्मा, दिल्ली से, 26/4/2021

बात तो पुरानी है, लेकिन आजकल फिर से यही वाक्य सुनने को मिल रहा है तो याद आ गई। और मैं डायरी के पन्ने पर उतारने बैठ गया। 

दरअसल, बात उन दिनों की है, जब मैं पार्ट टाइम नौकरी ढूँढ़ रहा था। जहाँ भी जाता, बात होती और सामने से जवाब मिलता, “We will let you know. (हम बताते हैं)” इस तरह, धीरे-धीरे यह वाक्य कुछ दिनों के लिए ज़िन्दगी का हिस्सा बन गया। 

यह वाक्य सुनते ही मन में इसकी प्रतिक्रिया चलने लगती। ठीक वैसे ही, जैसे किसी प्रयोगशाला में दो रसायनों को मिलाने पर चलने लगती है। सामने से यह वाक्य आता और मन में प्रतिक्रियास्वरूप वाक्य चलने लगता, “यहाँ भी नहीं हुआ।” जबकि इस पूरे वाक्य में “ना” कहीं भी नहीं है।

लेकिन परिणाम ही ऐसे आते थे कि इसकी परिणति “ना” में हो। उसके बाद तो इस वाक्य में मानो “ना” का प्रतिध्वनि समा गई। बावजूद इसके, मन के किसी कोने में “हाँ” का भी एक स्थायी स्थान होता था। वहाँ से दबी-सी आवाज़ आती थी, “क्या पता, हो ही जाए… हाँ हो सकता है।” 

मन में यही सब चलता रहता था कि एक दिन गाँधी जी की लिखी बात याद आ गई कि “व्यक्ति अपने विचारों से निर्मित प्राणी है। वह जो सोचता है, वही बन जाता है”।  अब सोचने का तरीका बदल गया। 

उस एक वाक्य में सकारात्मकता की भी उतनी ही सम्भावना थी, जितनी कि नकारात्मकता की। मन में ठाना कि बस नकारात्मक नहीं सोचना है। नकारात्मकता आने ही नहीं देनी है। “We will let you know” सुनकर प्रत्युत्तर में मुँह से “थैंक यू सो मच” ही निकलता था।

लेकिन इस बार मन में इरादा पहले से पक्का था। मस्तिष्क में सकारात्मक लहर थी। एक-दो जगह फोन करके पूछा भी, लेकिन जवाब नकारात्मक मिला। एकबारगी तो लगा कि हिम्मत टूट रही है। लेकिन अगले पल दूसरे साक्षात्कारों की तैयारी में लग गया। 

इरादा तो पक्का था ही। मन में यह तय भी कर लिया था आज बस “वहाँ के वहीं” फैसला करके आना है। आर या पार। तमाम औपचारिकताएँ पूरी हुईं। जवाब में फिर वही वाक्य सुनने को मिला, “We will let you know!” प्रत्युत्तर में कुछ सूझा ही नहीं और मुँह से निकला “प्रॉमिस?”

ज़ाहिर है, सामने वाले को जवाब में ऐसे किसी सवाल की उम्मीद नहीं रही होगी। दो सेकेंड की चुप्पी के बाद हल्की-सी मुस्कराहट से जबाव मिला, “We will let you know, definitely!”

हालाँकि जबाव वही था, पर मन इस बार नकारात्मक नहीं हुआ। और दो दिन बाद मुझे वह नौकरी मिल भी गई।

तर्क यह है कि जहाँ ”ना” की सिर्फ़ आशंका हो वहाँ ”हाँ” भी उतनी ही मात्रा में निहित होता है। फ़र्क है तो सिर्फ़ हमारे सोचने के तरीके का। 

आजकल अस्पतालों में बिस्तर और ऑक्सीजन सिलेंडर की ऐसी माँग है कि जहाँ कहीं पता करो, लोग साफ़ मना कर देते हैं। ऐसे में एक अस्पताल में बिस्तर के सिलसिले में किसी से बात हुई तो सामने से जवाब मिला, “बस कुछ देर रुकिए! हम आपको बताते हैं।” बिस्तर मिलना, न मिलना तो बाद की बात है, पर सकारात्मकता ज़रूर मिल गई। 

—————-

(प्रशांत मूलतः नीमराना, राजस्थान के रहने वाले हैं। इन दिनों दिल्ली में रहते हैं और एक निजी बैंक में काम करते हैं। प्रशांत कविताएँ भी लिखते हैं। उन्होंने डायरी का यह पन्ना वॉट्सऐप के ज़रिए #अपनीडिजिटलडायरी को भेजा है।)
 

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Apni Digital Diary

Share
Published by
Apni Digital Diary

Recent Posts

गाँव की दूसरी चिठ्ठी : रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ…!!

मेरे प्यारे बाशिन्दे, मैं तुम्हें यह पत्र लिखते हुए थोड़ा सा भी खुश नहीं हो… Read More

1 day ago

ट्रम्प की दोस्ती का अनुभव क्या मोदीजी को नई सोच की ओर प्रेरित करेगा?

पाकिस्तान के ख़िलाफ़ चलाए गए भारत के ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ का नाटकीय ढंग से पटाक्षेप हो… Read More

2 days ago

ईमानदारी से व्यापार नहीं किया जा सकता, इस बात में कितनी सच्चाई है?

अगर आप ईमानदार हैं, तो आप कुछ बेच नहीं सकते। क़रीब 20 साल पहले जब मैं… Read More

3 days ago

जो हम हैं, वही बने रहें, उसे ही पसन्द करने लगें… दुनिया के फ़रेब से ख़ुद बाहर आ जाएँगे!

कल रात मोबाइल स्क्रॉल करते हुए मुझे Garden Spells का एक वाक्यांश मिला, you are… Read More

4 days ago

‘एशेज़ क्रिकेट श्रृंखला’ और ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ की कहानियाँ बड़े दिलचस्प तौर से जुड़ी हैं!

यह 1970 के दशक की बात है। इंग्लैण्ड और ऑस्ट्रेलिया के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई… Read More

5 days ago

‘ग़ैरमुस्लिमों के लिए अन्यायपूर्ण वक़्फ़’ में कानूनी संशोधन कितना सुधार लाएगा?

भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव उतार पर है। इसके बाद आशंका है कि वक़्फ़ संशोधन अधिनियम… Read More

5 days ago