Gas Tragedy

कचरे का क्या….. अब तक पड़ा हुआ है

विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 28/4/2022

गैस त्रासदी की 25वीं बरसी पर सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि यूका कारखाने के जहरीले रसायन जमीन में रिसकर पानी को बुरी तरह प्रदूषित कर रहे हैं। कार्बाइड परिसर में पड़े जहरीले रासायनिक कचरे के निपटारे के लिए केंद्र ने आर्थिक मदद की बात कही है, लेकिन इसकी राह आसान नहीं है। गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले संगठनों का कहना है कि देश में इस तरह के कचरे को नष्ट करने की सुविधा नहीं है। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कचरे का निपटारा पीथमपुर में करने के लिए कवायद चल रही है लेकिन वहां भी औद्योगिक संगठन इसके विरोध में खड़े हैं।…

सरकारी रिपोर्ट में कार्बाइड परिसर में कुल 390 मीट्रिक टन रासायनिक कचरा होने की बात सामने आई थी। इसके निपटारे का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। 28 जनवरी 2010 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद माना जा रहा था कि पीथमपुर की प्रस्तावित अपशिष्ट निष्पादन सुविधा में कचरा नष्ट करने का रास्ता साफ हो गया। इसके बाद प्रक्रिया में तेजी आई और रामको इनवायरो इंजीनियरिंग लिमिटेड (जिसे औद्योगिक कचरा निष्पादन की अनुमति दो गई) ने महीनेभर पहले इनसिनरेटर का ट्रायल शुरू कर दिया जो अगस्त तक चलेगा। इस बीच विरोध के स्वर भी तेज हो गए हैं। धार की विधायक नीना वर्मा भी इसके विरोध में हैं। इधर, रामको इनवायरो इंजीनियरिंग लिमिटेड के अमित चौधरी ने कहा यूका का कचरा कब से नष्ट किया जाएगा, इसकी जानकारी नहीं है।

गैस पीड़ित संगठनों की मांग है कि कचरा राज्य सरकार नहीं, डाऊ केमिकल ही उठाए। भोपाल इंफॉरमेंशन एक्शन एड के सतीनाथ षड़ंगी ने कहा कि मंत्रियों के समूह ने यूनियन कार्बाइड में पड़े कचरे के निष्पादन के लिए राज्य सरकार को 300 करोड़ रुपए देने की घोषणा की, यह बहुत कम है। वैज्ञानिकों ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है कि देश में कोई भी संयंत्र नहीं है जो इस कचरे का निष्पादन करने की क्षमता रखता हो। यूरोपियन यूनियन ने कचरे की जांच के लिए 10 लाख यूरो देने की बात की है। केंद्र सरकार को इस प्रस्ताव को मान लेना चाहिए।

उधर, इंदौर में पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष डॉ. गौतम कोठारी का कहना है हम किसी भी कीमत पर यहां यूका का कचरा नहीं आने देंगे। तारापुर गांव में जहां प्लांट स्थित है, उससे आबादी लगी हुई है। जबकि 500 मीटर की परिधि में कोई नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा एक्सपर्ट कमेटी ने गुजरात के अंकलेश्वर की साइट को यूनियन कार्बाइड के कचरे के निष्पादन के लिए उचित माना था, लेकिन राज्य सरकार सुप्रीम में अपना पक्ष सही ढंग से नहीं रख पाई।…
कचरे से संबंधित मामला जून 2004 में हाईकोर्ट पहुंचा था। हाईकोर्ट गुजरात के अंकलेश्वर में कचरा नष्ट करने का आदेश दिया था, तब वहाँ इसकी सुविधा थी। गुजरात सरकार ने पहले हामी भर दी थी पर बाद में विरोध होने लगा तो फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट में अभी भी यह मामला विचाराधीन है। जहरीली गैस कांड संघर्ष समिति मोर्चा के संयोजक आलोक प्रताप सिंह का कहना है कि पीथमपुर में कचरे का निपटारा संभव है।….

भोपाल के गुनहगार अब देश भर की निगाह में हैं। गैस पीड़ितों का दर्द सिर्फ भोपाल का नहीं रहा। भले ही 25 साल गुजर गए हो, लेकिन इंसाफ के लिए अब भी लोगों में कसक है। भोपाल से बाहर संवेदनशील नागरिकों को हैरत है कि इतनी देर लगी और फिर भी लोग चुप रहे। हर जगह हजारों लोगों ने प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखे हैं।
राजस्थान में अब तक 15 सांसदों ने पत्र लिखे। आम जन और विभिन्न सामाजिक संगठनों की ओर से सुप्रीम कोर्ट और सांसदों को 50,603 पत्र लिखे जा चुके हैं। जयपुर के सेंट्रल पार्क में बरसात के बावजूद लोगों ने पोस्टकार्ड लिखे। इनमें विधायक व रिटायर्ड अफसर भी शामिल थे। पाली में पांच मीटर लंबा पत्र सुप्रीम कोर्ट भेजा गया। मध्यप्रदेश में जनता के साथ ही जनप्रतिनिधि भी लगातार जुड़े। जागरूक नागरिकों ने अब तक 60,232 से अधिक पत्र लिखकर अपनी भावनाएं व्यक्त की हैं। इनके अलावा इस सांसदों व करीब तीन दर्जन से अधिक विधायकों, विभिन्न पार्टियों के पदाधिकारियों व स्वैच्छिक संगठनों के सदस्यों ने भी दोषियों को सजा दिलाने की मांग पत्रों में की है।

गुजरात में एक सप्ताह से अहमदाबाद, वड़ोदरा, राजकोट, भावनगर, जूनागढ़, सूरत सहित विभिन्न शहरों के लोगों ने एक लाख से अधिक एसएमएस और करीब 43,000 पोस्टकार्ड सांसदों को भेजे। 23 सांसदों प्रधानमंत्री को पत्र लिखे। शहरी ही नहीं ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी आगे आए। सड़कों पर नाराज लोगों ने एंडरसन के पुतले फूंके। पंजाब में सांसदों ने प्रधानमंत्री को पत्र भेजे। लोगों की ओर से भी 16,000 पत्र भेजे गए। विभिन्न शहरों में गैस पीड़ितों के हक में प्रदर्शन भी हुए। कई जगह रैलियां निकलीं। संवेदनशील पाठकों ने निजी स्तर पर भोपाल के पीड़ितों को मदद के बारे में लगातार पूछताछ की। छत्तीसगढ़ में सात सांसदों ने जिम्मेदारी निभाई हैं। इनमें से छह सांसदों ने प्रधानमंत्री से संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की। आम नागरिकों की ओर से 6,827 पोस्टकार्ड भेजे गए हैं। सबका सुर एक है-केस फिर से खोला जाए और असल गुनहगारों को सजा मिले।

हरियाणा में भजनलाल को छोड़कर बाकी नौ कांग्रेस के सांसद हैं। सिर्फ भजनलाल ने ही प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। करीब 5,500 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट और सांसदों को पोस्टकार्ड लिखे। सामाजिक सेवी संगठनों ने भी सक्रिय भूमिका निभाई। चंडीगढ़ में शहर के प्रमुख स्थानों पर हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। डेढ़ हजार लोगों ने हस्ताक्षर किए। करीब 2,500 लोगों ने पोस्टकार्ड लिखे। जनप्रतिनिधियों ने भी भोपाल के मामले को पूरे देश का मुद्दा माना और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर न्याय के हक में आगे आने का आग्रह किया। हिमाचल प्रदेश में सभी 12 जिलों में अभियान चलाया गया। नागरिकों ने लगभग 7,500 हजार पोस्टकार्ड भेजे। अकेले शिमला शहर से ही 3,500 पोस्टकार्ड गए। ऐतिहासिक रिज मैदान से सैलानियों ने भी पोस्टकार्ड लिखे। दो सांसदों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इंसाफ मांगा।
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ  
35. जल्दी करो भई, मंत्रियों को वर्ल्ड कप फुटबॉल देखने जाना है! 
34. अब हर चूक दुरुस्त करेंगे…पर हुजूर अब तक हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे थे? 
33. और ये हैं जिनकी वजह से केस कमजोर होता गया… 
32. उन्होंने आकाओं के इशारों पर काम में जुटना अपनी बेहतरी के लिए ‘विधिसम्मत’ समझा
31. जानिए…एंडरसरन की रिहाई में तब के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की क्या भूमिका थी?
30. पढ़िए…एंडरसरन की रिहाई के लिए कौन, किसके दबाव में था?
29. यह अमेरिका में कुछ खास लोगों के लिए भी बड़ी खबर थी
28. सरकारें हादसे की बदबूदार बिछात पर गंदी गोटियां ही चलती नज़र आ रही हैं!
27. केंद्र ने सीबीआई को अपने अधिकारी अमेरिका या हांगकांग भेजने की अनुमति नहीं दी
26.एंडरसन सात दिसंबर को क्या भोपाल के लोगों की मदद के लिए आया था?
25.भोपाल गैस त्रासदी के समय बड़े पदों पर रहे कुछ अफसरों के साक्षात्कार… 
24. वह तरबूज चबाते हुए कह रहे थे- सात दिसंबर और भोपाल को भूल जाइए
23. गैस हादसा भोपाल के इतिहास में अकेली त्रासदी नहीं है
22. ये जनता के धन पर पलने वाले घृणित परजीवी..
21. कुंवर साहब उस रोज बंगले से निकले, 10 जनपथ गए और फिर चुप हो रहे!
20. आप क्या सोचते हैं? क्या नाइंसाफियां सिर्फ हादसे के वक्त ही हुई?
19. सिफारिशें मानने में क्या है, मान लेते हैं…
18. उन्होंने सीबीआई के साथ गैस पीड़तों को भी बकरा बनाया
17. इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह! 
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया! 

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