सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 21/8/2021

मीर क़ासिम अंग्रेजों की कठपुतली बनने को तैयार नहीं हुआ। उसने कंपनी की व्यापारिक गतिविधियों में दख़लंदाज़ी शुरू कर दी। इसके कारण थे। मसलन- मुग़ल बादशाह के पुराने फ़रमान की आड़ लेकर अंग्रेज करमुक्त व्यापार को अपना अधिकार समझने लगे थे। जबकि उस फ़रमान में अंग्रेजों को सिर्फ़ बंदरग़ाहों पर संचालित व्यावसायिक गतिविधियों में करों से छूट दी गई थी। हिंदुस्तान की ज़मीन पर नहीं। लेकिन अंग्रेज उस फ़रमान का दुरुपयोग कर मोटा मुनाफ़ा कमा रहे थे। इससे राजकोष को नुकसान हो रहा था। मीर क़ासिम ने जब यह देखा तो उसने सभी व्यापारिक गतिविधियाँ करमुक्त कर दीं। इससे अंग्रेज भड़क गए। उन्होंने उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए सेना भेज दी। मीर क़ासिम ने अपने मित्र अवध के नवाब के साथ मिलकर 1764 में अंग्रेजों के ख़िलाफ़ बक्सर के मैदान में लड़ाई लड़ी। पर हार गया। 

हिंदुस्तान में इस लड़ाई से ही सही मायने में ब्रिटिश हुकूमत की नींव पड़ी। यह इरादतन किया गया युद्ध था। इसमें अंग्रेजों के ख़िलाफ़ सिर्फ़ बंगाल और अवध के नवाब ही नहीं थे। हिंदुस्तान का तत्कालीन मुग़ल बादशाह शाह आलम भी उनके विरुद्ध था। इसीलिए इसमें अंग्रेजों की जीत ज़्यादा मायने रखती थी। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में शक्तिशाली राजनीतिक ताक़त बन गई। इसी दौरान 1765 से 1767 तक दो साल के लिए रॉबर्ट क्लाइव भारत लौटे। इस समय वह बंगाल का प्रशासक रहे। उन्होंने हिंदुस्तान में ब्रिटिश शासन का पहला कानून लागू किया गया। इसके तहत अंग्रेजों ने दीवान का पद अपने हाथ में ले लिया। दीवान, यानि राजस्व के मामले देखने वाला राज्य का सबसे बड़ा अधिकारी। इस कानून को मुग़ल बादशाह से भी मंज़ूरी मिल गई क्योंकि बादशाह अब कंपनी का पेंशनर बन चुका था। इस तरह बंगाल का पूरा नागरिक प्रशासन अंग्रेजों के हाथों में आ गया।

उधर, यूरोप में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच 1763 में पेरिस की संधि हो गई। इसके तहत दोनों ने हैदराबाद के निज़ाम को दक्षिण का शासक मान लिया। वहीं अरकोट के नवाब मुहम्मद अली को कर्नाटक का। ये वही मुहम्मद अली था, जिसके कर्ज़ों के किस्से 18वीं सदी के आख़िर में चर्चित थे। मुहम्मद अली हैदराबाद और मैसूर को हड़पना चाहता था। लिहाज़ा निज़ाम और मैसूर के सुल्तान हैदर अली ने उसे रास्ते से हटाने का निर्णय ले लिया। निज़ाम वैसे भी मज़बूरी में अंग्रेजों का साथ दे रहा था। वहीं, हैदर अली के बेटे टीपू ने तो मद्रास में अंग्रेजों की नाक में दम कर रखी थी। इधर, मराठा भी पानीपत की लड़ाई में मिली पराजय भूलकर दक्षिण में फिर सक्रिय हो चुके थे। कुल हालात ऐसे थे कि किसी को पक्का पता नहीं था कि कौन किससे लड़ रहा है। कौन किसके साथ है। बहरहाल, इन्हीं हालात में वक़्त गुजरते हुए 1768 आ गया। उस साल मछलीपट्‌टनम की संधि के जरिए निज़ाम ने अंग्रेजों से मोलभाव कर अपना राज्य बचा लिया। हैदर अली भी अंग्रेजों से अपनी शर्तें मनवाने में सफल रहा। कंपनी ने बाहरी हमले के समय उसकी मदद का वादा भी किया। हालाँकि जब 1771 में मराठाओं ने मैसूर पर हमला किया तो अंग्रेज उसकी मदद नहीं कर सके। इससे हैदर और उसका बेटा टीपू अंग्रेजों से दुश्मनी ठान बैठा।

इसी बीच, 1769 में वॉरेन हेस्टिंग्स दूसरे नंबर के प्रशासकीय अधिकारी बनकर मद्रास आए। तीन साल बाद उन्हें गवर्नर बनाकर बंगाल भेज दिया गया। साथ ही निर्देश दिया गया कि वह अब बंगाल की शासन-व्यवस्था अपने हाथ में ले लें। अब तक बंगाल का औपचारिक शासक नवाब था। मगर हेस्टिंग्स ने निर्देशों के अनुसार काम किया। उन्होंने शासन-सूत्र अपने हाथ में लेते हुए प्रशासनिक ख़र्चों और नवाब को दिए जाने वाले राजस्व में कटौती कर दी। बंगाल के इलाहाबाद और कोड़ा जिले अवध के नवाब को बेच दिए। बंगाल की दीवानी के बदले अंग्रेजों की ओर से मुग़ल बादशाह को दी जाने वाली रकम भी रोक दी। 

इस सबके बावज़ूद 1772 तक कंपनी की वित्तीय स्थिति डाँवाडोल बनी रही। इतनी कि उसे ब्रिटेन की सरकार से 10 लाख पाउंड की आर्थिक सहायता माँगनी पड़ी। बदले में सरकार ने पहले कंपनी के वित्तीय प्रबंधन की पड़ताल करा ली। इसमें अनियमितता के नतीज़े चौंकाने वाले निकले। लिहाज़ा, 1773 में ब्रिटिश संसद ने रेग्युलेटिंग एक्ट (विनियमन कानून) पारित कर हिंदुस्तान में कंपनी के अधिकारों में कटौती कर दी। उसके संविधान को पुनर्परिभाषित किया। हिंदुस्तान में ब्रिटिश राजशाही की तरफ़ से गवर्नर-जनरल बिठा दिया। कंपनी के ऊपर संसद की सर्वोच्चता स्थापित कर दी। मुख्य न्यायाधीश और तीन न्यायाधीशों के साथ यहाँ सर्वोच्च न्यायालय बिठा दिया। कंपनी के निदेशकों के लिए अनिवार्य कर दिया कि वे हर पत्राचार की एक प्रति संसद को भेजें। छमाही आधार पर ख़र्चों का ब्यौरा भी संसद के सामने रखें। इसके बाद कंपनी के लिए संसद ने कर्ज़ मंज़ूर किया।

नई व्यवस्था में हेस्टिंग्स ही हिंदुस्तान के पहले गवर्नर-जनरल बने। वह बंगाल में पदस्थ थे। मद्रास और बम्बई के गवर्नर उनके अधीन थे। हेस्टिंग्स ने ऐसी व्यवस्था लागू की जो निर्धारित नीति और संगठन के मुताबिक थी। वह पहले ब्रिटिश प्रशासक थे, जिन्होंने माना कि भारत में अच्छा शासन देना भी कंपनी का काम है। हालाँकि हेस्टिंग्स का उनकी परिषद में ही बहुमत नहीं था। इसलिए उन्हें प्रशासन में सुधार लागू करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। परिषद में बहुमत पक्ष के एक सदस्य की मृत्यु होने तक यह स्थिति बनी रही। इसके बाद उनकी जगह हेस्टिंग्स ने अपने समर्थक की नियुक्ति कराई। तब यहाँ उनका बहुमत हुआ।

हेस्टिंग्स सैन्य चिंताओं से भी मुक्त नहीं थे। उनके दौर में कंपनी ने भारत के पश्चिमी छोर पर स्थित साल्सेट द्वीप पर कब्ज़ा कर लिया। कंपनी की इस हरक़त से मराठा चिढ़ गए। साल्सेट तब उनके अधिकार में था। दोनों पक्षों में लड़ाई की नौबत आ गई। अंग्रेजों ने मुक़ाबले के लिए पहले बम्बई से छोटी सेना मराठाओं की राजधानी पूना भेजी। लेकिन वह पराजित होकर लौटी। साथ में मराठाओं से मज़बूरन की गई संधि भी साथ लाई। मगर यह संधि हेस्टिंग्स ने ख़ारिज़ कर दी और एक शक्तिशाली सेना बम्बई भेजी। यह मराठाओं के अधिकार वाले इलाकों से होकर गुजरी। उसने अहमदाबाद और गुजरात पर कब्ज़ा कर लिया। लेकिन इस सेना के पूना पहुँचने से पहले ही मराठा सैनिक बीच रास्ते में उससे जा भिड़े। उसे लौटने पर मज़बूर कर दिया। हालाँकि इसी समय (1781 में) एक अन्य ब्रिटिश सेना ने ग्वालियर के मराठा शासक महादजी सिंधिया को हरा दिया। महादजी तब मराठाओं में सबसे शक्तिशाली थे। लिहाज़ा उनकी हार से मराठाओं को बड़ा धक्का लगा। परिणास्वरूप सिंधिया और पेशवा नाना फडणवीस को अंग्रेजों से 1782 में सालबाई की संधि करनी पड़ी।

(जारी…..)

अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(नोट : ‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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