बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से
“पन्हालगढ़ स्वराज्य में आ गया। पन्हाला जैसा प्रचंड और बलाढ्य गढ़ मिलने से स्वराज्य की ताकत बढ़ गई। पन्हाला से सटकर एक और छोटा सा किला था पावनगढ़। यह गढ़ भी महाराज को मिल गया। पन्हाला की चहारदीवारी मजबूत थी। दरवाजे भव्य और बुर्ज बुलन्द थे। बाघ दरवाजा, तीन दरवाजा, चार दरवाजा, राजदिंड़ी के दरवाजे, ये सब मानो घड़ियाल के खुले हुए विकराल जबड़े ही थे। तीन दरवाजा सीसे का बनाया हुआ था। राजदिंड़ी भी किले का प्रवेश द्वार ही था, पर आकार में छोटा था।
इस तरह पन्हालगढ़ और बहुत बड़ा मुल्क शिवाजी राजे ने जीत लिया। इस खबर से बीजापुर दरबार बौखला उठा। बौखलाहट से ज्यादा घबड़ाहट हुई। प्रतापगढ़ की तलहटी से पराभूत, सर्वस्व लुटे हुए सरदार और सैनिक बुझे हुए मन से बीजापुर लौटे थे। मराठों की इस शक्तिशाली आक्रामक लहर को कहीं न कहीं रोकना तो था ही। सो बहुत बड़ी फौज के साथ रुस्तम-ए-जमा रणदुल्ला खान को जल्दी- जल्दी कोल्हापुर की तरफ भेजा गया। फाजल खान को भी इस मुहिम में शामिल किया गया। इस नए आक्रमण की खबर जासूसों ने पन्हालगढ़ पर महाराज को सुना दी। महाराज भी जवाबी हमले को तैयार हो गए। महाराज के साथ नेताजी पालकर, हिरोजी इंगले, गोदाजी जगताप, वाघोजी तुपे, भीमाजी वाघ, सिधोजी पवार, सिद्दी हिलाल, नाईकजी पाँढरे, नाईकजी खराटे, जाधवराव आदि सरदार थे। ये सभी महाराज के साथ पन्हालगढ़ से बाहर निकले।
कोल्हापुर की तरफ आ रहे रुस्तम-ए-जमा को जब पता चला कि मराठा फौज उससे लड़ने निकल पड़ी है, तो उसने भी हमले की तैयारी की। उसकी फौज में फाजल खान के साथ-साथ मलिक इतवार, फत्ते खान, सर्जेराव घाटगे, घोरपड़े, सादत खान, मुल्ला हय वगैरा सरदार थे। अघाड़ी पर खुद रुस्तम-ए-जमा था। रणवाद्यों का और गर्जनाओं का शोर हुआ और महाराज की फौज ने शाही सेना पर जोरदार हमला कर दिया। लड़ाई शुरू हो गई। फाजल खान से भिड़ गए नेताजी। फाजल पछाड़ खा गया। भाग खड़ा हुआ। सभी भागने लगे। शाही फौज की करारी हार हुई।
जयनिनाद से करवीर का आसमान गूँज उठा। मराठी फौज ने बादशाही फौज के दाँत फिर एक बार खट्टे कर दिए। बादशाही फौज का सारा सामान महाराज को मिला। दो हजार घोड़े और बारह हाथी भी हाथ आए। महाराज के लिए यह लड़ाई बहुत ही फायदेमन्द रही। जीत का यह शुभ दिन था दिनांक 28 दिसम्बर 1659।
हालाँकि कुछ वक्त बाद इधर, शाहस्ता खान ने पूणे शहर पर कब्जा कर लिया (दिनांक 9 मई 1660)। उसने लाल महाल के आस-पास डेरा डाला था। मुठा नदी के दक्षिण तट पर लाल महाल के चारों तरफ, दूर तक मुगल फौज के खेमे नजर आ रहे थे। खान की फौज इस परिसर की खेती-बाड़ी, देवी-देवताओं के मन्दिर, मठ, समाधि स्थान, मराठों के घर-बार, इब्बत-आबरू बर्बाद करने पर तुली हुई थी। उधर, राजगढ़ में जिजाऊ सहब के पास सेना थी, लेकिन अर्थाप्त। फिर भी ये मुट्ठीभर मराठे, मुगलों पर छापे मारकर उन्हें नाकों चने चबवा रहे थे। खान के पुणे आने से पहले गरोडे से सासवड तक के रास्ते में इस मराठा सेना न मुगलों को हैरान कर रखा था। महाराज की ये जीवट, चपल सैनिक मुगलों पर छिप-छिपकर हमला कर रहे थे। उन्हें परेशान कर रहे थे।
हालात की तल्खी से राजगढ़ पर जिजाऊ साहब बहुत बेचैन हो उठीं। दुश्मन ने चारों तरफ भट्ठी सुलगा रखी थी। इस वक्त महाराज भी पन्हाला किले में दुश्मन से घिरे हुए थे। सिद्दी जौहर की फौज ने वहाँ घेरा डाला हुआ था। दोनों तरफ ममता के कच्चे धागे खींच रहे थे। लेकिन स्वराज्य के लिए माँ-बेटे कठोर विरह सह रहे थे। जिजाऊ साहब का मातृ-हृदय शिवबा की खैरियत के लिए तड़प रहा था। उनका छटपटाता मन कह रहा था कि दुश्मन का घेरा तोड़ने के लिए किसी को पन्हाला मोर्चे पर भेजना चाहिए। लेकिन यह हो भी तो कैसे? जौहर का घेरा तोड़ना कठिन था। उसे तोड़ने का दम-खम रखने वाला एक भी शूर-वीर उस समय राजगढ़ पर नहीं था। आखिर यह उलझन कैसे सुलझे?
तब माँ का हृदय बेकाबू हो गया तो 60 साल की जिजाऊ साहब हथियारों से लैस हो खुद पन्हालगढ़ के मोर्चे पर निकलने को तैयार हो गईं। लेकिन ढलती उम्र और अपर्याप्त सेना लेकर माँ साहब लड़ाई पर कैसे जाएँगीं? राजगढ़ पर चिन्ता के बादल घिर आए। तभी मानो उनके हृदय की पुकार सुनकर नेताजी पालकर राजगढ़ आ पहुँचे। अचानक। साथ में सिद्दी हिलाल भी था। आऊसाहब खुद लड़ने जा रही हैं, यह सुनकर वह हिलाल के साथ आऊसाहब को सलाम करने आए। उन्हें देखते ही आऊसाहब फट पड़ी, ‘शरम नहीं आती तुम लोगों को? सिद्दी जौहर को खत्म कर शिवबा को छुड़ाने, अब मैं ही जाती हूँ।’ आखिर नेताजी और हिलाल दोनों मिलकर सिद्दी जौहर का घेरा तोड़ने निकल पड़े।
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।)
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ
20- शिवाजी महाराज : खान का कटा हुआ सिर देखकर आऊसाहब का कलेजा ठंडा हुआ
19- शिवाजी महाराज : लड़ाइयाँ ऐसे ही निष्ठावान् सरदारों, सिपाहियों के बलबूते पर जीती जाती हैं
18- शिवाजी महाराज : शिवाजी राजे ने जब अफजल खान के खून से होली खेली!
17- शिवाजी महाराज : शाही तख्त के सामने बीड़ा रखा था, दरबार चित्र की भाँति निस्तब्ध था
16- शिवाजी ‘महाराज’ : राजे को तलवार बहुत पसन्द आई, आगे इसी को उन्होंने नाम दिया ‘भवानी’
15- शिवाजी महाराज : कमजोर को कोई नहीं पूछता, सो उठो! शक्ति की उपासना करो
14- शिवाजी महाराज : बोलो “क्या चाहिए तुम्हें? तुम्हारा सुहाग या स्वराज्य?
13- शिवाजी ‘महाराज’ : “दगाबाज लोग दगा करने से पहले बहुत ज्यादा मुहब्बत जताते हैं”
12- शिवाजी ‘महाराज’ : सह्याद्रि के कन्धों पर बसे किले ललकार रहे थे, “उठो बगावत करो” और…
11- शिवाजी ‘महाराज’ : दुष्टों को सजा देने के लिए शिवाजी राजे अपनी सामर्थ्य बढ़ा रहे थे
10- शिवाजी ‘महाराज’ : आदिलशाही फौज ने पुणे को रौंद डाला था, पर अब भाग्य ने करवट ली थी
9- शिवाजी ‘महाराज’ : “करे खाने को मोहताज… कहे तुका, भगवन्! अब तो नींद से जागो”
8- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवबा ने सूरज, सूरज ने शिवबा को देखा…पता नहीं कौन चकाचौंध हुआ
7- शिवाजी ‘महाराज’ : रात के अंधियारे में शिवाजी का जन्म…. क्रान्ति हमेशा अँधेरे से अंकुरित होती है
6- शिवाजी ‘महाराज’ : मन की सनक और सुल्तान ने जिजाऊ साहब का मायका उजाड़ डाला
5- शिवाजी ‘महाराज’ : …जब एक हाथी के कारण रिश्तों में कभी न पटने वाली दरार आ गई
4- शिवाजी ‘महाराज’ : मराठाओं को ख्याल भी नहीं था कि उनकी बगावत से सल्तनतें ढह जाएँगी
3- शिवाजी ‘महाराज’ : महज पखवाड़े भर की लड़ाई और मराठों का सूरमा राजा, पठाणों का मातहत हुआ
2- शिवाजी ‘महाराज’ : आक्रान्ताओं से पहले….. दुग्धधवल चाँदनी में नहाती थी महाराष्ट्र की राज्यश्री!
1- शिवाजी ‘महाराज’ : किहाँ किहाँ का प्रथम मधुर स्वर….