Shista Khan

शिवाजी महाराज : जब शाइस्ता खान की उँगलियाँ कटीं, पर जान बची और लाखों पाए

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

महाराज ने प्रतापगढ़ पर भवानीदेवी की प्राण-प्रतिष्ठा की (जुलाई 1661)। इधर, बरसात का मौसम होने से पहले ही मुगलों ने देहरीगढ़ को घेर लिया। लेकिन कावजी कोंढालकर ने उनके 400 सैनिकों को मौत के घाट उतारकर दुश्मन के हौसले पस्त कर दिए। इसके साथ ही नेताजी भी मुगलों के मुल्क में तहलका मचा रहे थे। और अब महाराज ने छापा मारकर पेन के मिर्या पहाड़ पर नामदार खान को गहरी मात दी। (सन् 1662 जनवरी प्रारम्भ) अब महाराज ने मंसूबा किया पुणे में डेरा जमाए बैठे मुगल सरदार शाहस्ता खान पर छापा मारकर उसे ठिकाने लगाने का। पूरी तैयारी की गई। छापामारी का मूहूर्त तय हुआ चैत्र शुक्ल अष्टमी की उत्तरात्र (दिनांक 6 अप्रैल 1663)।

छापामारी के लिए पुणे के लाल महाल में घुसते समय महाराज अपने साथ 400 चुनिन्दा मावलों को ले जाने वाले थे। कोयाजी बांदल, चाँदजी जेथे, बाबाजी और चिमनाजी देशपांडे आदि बलिष्ठ साहसी जवान उनमें शामिल थे। सब पुणे की तरफ चल पड़े। आधी रात का समय पूरी छावनी नींद के अमल में लस्त-पस्त थी। लेकिन प्रवेश द्वार पर मुगली पहरेदार ने रोक लिया। जवाब-तलब किया। चिमनाजी ने गप मारी, “हम छावनी के ही लोग हैं। रात की गश्त के लिए बाहर गए थे। वहीं से लौट रहे हैं।” मुगल पहरेदारों को उनका यकीन आया। रोज गश्त के लिए लोग आते-जाते रहते थे और इस छावनी में मराठा लोग थे भी बहुत। सो, छावनी के मराठों के बहाने से ये सब भी अन्दर घुस गए।

बाद में लाल महाल के पिछवाड़े से दरवाजे की चौखट के पत्थर उखाड़कर ये भीतर घुसे। इससे पहरेदारों को आहट हो गई। वे चौकन्ना होकर इन पर टूट पर पड़े। कुहराम मच गया। मारकाट शुरू हुई। शाहस्ता खान जल्दी-जल्दी नीचे उतरा। वहीं पर ढेर होता, अगर उसका बेटा अबुल फत्तेखान बीच में न आता। बेटे के बीच में आने से खान बच गया। पर उसका बेटा अल्लाह को प्यारा हुआ। खान तेज़ी से महल में और भीतर की तरफ भागा। उसके पीछे भागे खुद महाराज। महल की स्त्रियाँ डरी तो बहुत थीं, फिर भी उन्होंने होशियारी से दीए बुझा डाले। घुप अँधेरे में महाराज ने अन्दाज से खान पर वार किया। यह वार खान के दाएँ हाथ पर आया। उसकी तीन उँगलियाँ कट गई। महाराज समझे कि खान का सफाया हो गया है। तुरन्त वापिस मुड़े। खान घबराकर चीख उठा ‘दगा। बचाओ। गनीम!’

हो-हल्ला बढ़ता ही गया। मराठों ने भी शोर में अपनी आवाज मिलाई। शोर-शराबा सुन मुगली फौज महल के भीतर घुसी। लेकिन भीड़ में शामिल हो शिवाजी के लोग नौ-दो ग्यारह हो गए। शिवाजी के अचानक हमले से शाइस्ता खान की जान पर बन आई थी। लेकिन सिर्फ तीन उंगलियाँ गँवाकर ही संकट टल गया। शाइस्ता खान ने राहत की साँस ली। पर उसे क्या मालूम कि और संकट उसकी राह तक रहा है! शाहस्ता खान पर साहसी हमला कर महाराज सिंहगढ़ भागे। लाख फौज के घेरे में, पक्की पथरीली हवेली में, चौको पहरों में सुरक्षित। मुगली फौज की इज्जत-आबरू मराठों के एक छापे से मिट्टी में मिल गई। इसकी खबर औरंगजेब को कश्मीर जाते वक्त राह में मिली (दिनांक 8 मई 1663)) आगबबूला हो गया वह। तुरन्त शाहस्ता खान का तबादला ढाका कर दिया गया।

बीच में महाराज ने राजापुर में पकड़े हुए अंगरेजों को कैद से रिहा किया (दिनांक 2 फरवरी 1663) अंगरेजों को कड़ा दंड मिला था। सजा के दिनों में ही हेनरी और उसके एक अफसर की मौत हो गई थी। सो, महाराज ने बाकी बचे अंगरेजों पर रहम किया था। इसी समय महाराज ने सूरत पर हमला करने का निश्चय किया (सन् 1663 दिसम्बर का प्रारम्भ)। बहिर्जी नाईक सूरत की ब्यौरेवार जानकारी से आया था। वहाँ बहुत बड़ी उगाही मिलने की संभावना थी। यह देख महाराज सूरत की मुहिम पर निकले (दिनांक. 31 दिसम्बर 1663)। वह त्र्यंबकेश्वर आए। शंकरजी के दर्शन कर जव्हार मार्ग से महाराज सूरत के पास उधना गाँव में आए (दिनांक, 5 जनवरी, मंगलवार 1664)।

शिवाजी के आने की खबर से सूरत में घबड़ाहट पैदा हुई। सूरत का मुगल सुबेदार था इनायत खान। उसने पाँच हजार के स्थान पर सिर्फ एक हजार फौज रखी थी। बाकी फौज का खर्चा वह खुद खा लेता था। खान को खयाल तक नहीं था कि शिवाजी राजे कभी सूरत आएँगे। और जब उनके आने की ही उसे खबर मिल गई तब भी उसने शहर की रक्षा का कोई प्रबन्ध नहीं किया। महाराज ने अपना वकील इनायत खान के पास भेजा। खारिज की रकम की माँग की। वचन दिया कि खारिज देने पर वह शहर को हानि नहीं पहुँचाएँगे। पर खान ने कोई जवाब नहीं दिया। वकील लौट आया।
बुधवार की सुबह महाराज सूरत आने वाले थे। उसी समय खान ने अपना वकील महाराज के पास भेजा। 

वकील के जरिए खान ने शरारत भरा सन्देश भेजा था। कराल काल के साथ भी कोई ठट्टा करता है? यह तो बारूद के ढेर की आग लगाने जैसा, मूर्खतापूर्ण खेल था। खान ने कहला भेजा था, “आप दंड चाहते हैं? तो बोलिए कौन-सा दंड दूँ आपको?” सन्देश सुनकर महाराज बौखला उठे। वकील को ही गिरफ्तार कर लिया उन्होंने। फिर उन्होंने फौरन सूरत पर धावा बोल दिया। शाहस्ता खान ने तीन साल तक स्वराज्य का बहुत भारी नुकसान किया था। उसी को पाटने के लिए महाराज ने औरंगजेब के कब्जे वाली सूरत पर चढ़ाई की थी। सूरत की खूबसूरती को वह फिर भी मिटाना नहीं चाहते थे। लेकिन यह समझने की अक्ल औरंगजेब के अधिकारियों को हो तब न!
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ 
27- शिवाजी महाराज : “उखाड़ दो टाल इनके और बन्द करो इन्हें किले में!”
26- शिवाजी महाराज : कौन था जो ‘सिर सलामत तो पगड़ी पचास’ कहते हुए भागा था?
25- शिवाजी महाराज : शिवाजी ‘महाराज’ : एक ‘इस्लामाबाद’ महाराष्ट्र में भी, जानते हैं कहाँ?
24- शिवाजी महाराज : अपने बलिदान से एक दर्रे को पावन कर गए बाजीप्रभु देशपांडे
23- शिवाजी महाराज :.. और सिद्दी जौहर का घेरा तोड़ शिवाजी विशालगढ़ की तरफ निकल भागे
22- शिवाजी महाराज : शिवाजी ने सिद्दी जौहर से ‘बिना शर्त शरणागति’ क्यों माँगी?
21- शिवाजी महाराज : जब 60 साल की जिजाऊ साहब खुद मोर्चे पर निकलने काे तैयार हो गईं
20-  शिवाजी महाराज : खान का कटा हुआ सिर देखकर आऊसाहब का कलेजा ठंडा हुआ
19- शिवाजी महाराज : लड़ाइयाँ ऐसे ही निष्ठावान् सरदारों, सिपाहियों के बलबूते पर जीती जाती हैं
18- शिवाजी महाराज : शिवाजी राजे ने जब अफजल खान के खून से होली खेली!
17- शिवाजी महाराज : शाही तख्त के सामने बीड़ा रखा था, दरबार चित्र की भाँति निस्तब्ध था
16- शिवाजी ‘महाराज’ : राजे को तलवार बहुत पसन्द आई, आगे इसी को उन्होंने नाम दिया ‘भवानी’
15- शिवाजी महाराज : कमजोर को कोई नहीं पूछता, सो उठो! शक्ति की उपासना करो
14- शिवाजी महाराज : बोलो “क्या चाहिए तुम्हें? तुम्हारा सुहाग या स्वराज्य?
13- शिवाजी ‘महाराज’ : “दगाबाज लोग दगा करने से पहले बहुत ज्यादा मुहब्बत जताते हैं”
12- शिवाजी ‘महाराज’ : सह्याद्रि के कन्धों पर बसे किले ललकार रहे थे, “उठो बगावत करो” और…
11- शिवाजी ‘महाराज’ : दुष्टों को सजा देने के लिए शिवाजी राजे अपनी सामर्थ्य बढ़ा रहे थे
10- शिवाजी ‘महाराज’ : आदिलशाही फौज ने पुणे को रौंद डाला था, पर अब भाग्य ने करवट ली थी
9- शिवाजी ‘महाराज’ : “करे खाने को मोहताज… कहे तुका, भगवन्! अब तो नींद से जागो”
8- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवबा ने सूरज, सूरज ने शिवबा को देखा…पता नहीं कौन चकाचौंध हुआ

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