शिवाजी महाराज : जब शिवाजी ने अपनी आऊसाहब को स्वर्ण से तौल दिया

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

कोंकण के कुडाल में खवास खान डेरा डाले बैठा था। वह बाजी घोरपड़े का इंतजार कर रहा था। इतने में दलबल सहित महाराज ही वहाँ पहुँच गए। रात का समय। खान ने ऐन कोने में डेरा डाला हुआ था। चाहते तो महाराज उसे चूहे-बिल्ली की तरह मार सकते थे। लेकिन उन्होंने दूत के जरिए खान को सन्देश भेजा, “अब मेरे मुल्क से बोरिया-बिस्तर समेट कर आप चलते बनिए।” लेकिन खान ने महाराज के सन्देश को दुत्कार दिया। फिर तो महाराज ने रात के अन्धेरे में खान की छावनी पर तीर, गुलेल और बन्दूक की गोलियों को धुआँधार बौछार शुरू कर दी।

महाराज के विरोध में एकोजी राजे भोसले लड़ने लगे। पिता की मौत के बाद दो भाईयों की मुलाकात हो रही थी। लेकिन जंग के मैदान में, दुश्मन के नाते। सावन्तवाडी के भोसले भी खान की तरफ से लड़ रहे थे। खान के सरदार सिद्दी सखर, शाह हजरत और शेख मीरान लड़ाई के दौरान काम आए। सावन्तवाडी के भोसले, एकोजी राजे और खुद खवास खान मैदान छोड़कर भाग गए। महाराज की जोरदार जीत हुई (अक्टूबर आखिर सन् 1664)।

उसी दम महाराज ने कोंडाणा किला भी जीत लिया। इस मुहिम में इब्राहिम खान ने बहुत बहादुरी दिखाई थी। इस पर महाराज ने उसे एक हजार घुड़सवारों की सरदारी इनाम में दी। इसके बाद महाराज मालवन आए। यहाँ बीच समन्दर में, किनारे से आधे कोस की दूरी पर कुरटे नाम का एक द्वीप था। महाराज ने इस द्वीप का मुआयना किया। वहाँ एक बहुत बड़ा किला बाँधने का निश्चय किया। कोंकण के लोग बहुत मेहनती, सीधे-सादे, प्रामाणिक और बुद्धिमान थे। शूर, जीवट और निष्ठावान् थे। लेकिन सिद्दी, फिरंगी और शाही अधिकारियों को उनके गुणों से क्या लेना था? पर स्वराज्य में राजे ने उनकी पीठ पर ममता से हाथ फेरा तो ठूँठ हुए कोंकनी आम बौरा गए। कोंकण की भोली बालाएँ दरिया में घूमते मल्लाहों के साथ खुशी-खुशी घर बसाने लगीं। नाचने लगीं, गाने लगीं। पके हुए आमों की सुगन्ध से हवा महकने लगी। और अब तो महाराज मालवन द्वीप पर किला बाँधने वाले थे। मानों दरिया सेहरा बाँधने चला था।

कुरटे द्वीप पर बाराती इकठ्ठा हुए। महाराज ने सुमुहूर्त पर भूमिपूजा की। समुद्रपूजा की। दादंभट उपाध्ये और जानभट अभ्यंकर ने संकल्प का उच्चारण किया। मंत्र पढ़े। दरिया की सगाई हो गई (दिनांक 25 नवम्बर 1664)। सागर की सगाई के लिए स्वराज्य के सेवक, महाराज के संगी-साथी आए हुए थे। हर्षोल्लास से वेदमंत्रों के साथ सगाई हुई। उस द्वीप के इर्द-गिर्द सागर खुशी-खुशी लहरा रहा था। द्वीप पर नया जलदुर्ग जो बननेवाला था। महाराज ने मालवन में जलदुर्ग बाँधने का काम शुरू किया। दुर्ग का नाम तय हुआ ‘सिन्धुदुर्ग। इसके बाद महाराज राजगढ़ आए।

लगभग इसी समय दिल्ली से समाचार मिला कि शाहस्ता खान की दुर्दशा, जसवन्त सिंह की करारी हार और सूरत को दुर्गति की खबरों के कारण औरंगजेब शिवाजी राजे से चिढ़ा हुआ है। उसने मिर्जा राजा जयसिंह को हुक्म दिया है कि वह मराठा बगावत को कुचल डालने के लिए महाराष्ट्र की ओर रवाना हो (दिनांक 30 सितम्बर 1664)। फिर पता चला कि दिलेर खान, दाऊद खान, एहतशाम खान, जबरदस्त खान वगैरा कई बड़े सरदारों को मिर्जा राजा की मदद करने के हुक्म दिया गया है (दिनांक 6 अक्टूबर 1664)। इन राहु-केतुओं की विशाल फौजें स्वराज्य को ग्रसने के लिए निकल भी पड़ी थीं। लग यही रहा था कि मराठों के लिए ग्रहण का समय नजदीक आया हुआ है।

लेकिन तभी महाराज के मन में एक बहुत ही उम्दा खयाल आया। खयाल था अपनी माँ की तुला सोने से पूर्ण करने का। माँ के वजन का सोना दान करना था। बड़ा ही प्यारा खयाल था। लेकिन यह तुलादान विधि थी सिर्फ मन के सन्तोष के लिए। क्योंकि ईश्वर ने आदमी को ‘माँ’ नाम की जो अलौकिक धरोहर दी है, उसकी तुला पूरे विश्व से भी नहीं हो सकती। तराजू के दोनों पलड़े समतौल होने के लिए चाहिए होता है, सिर्फ सन्तान का अथाह प्यार से भरा हृदय। फिर भी, आऊसाहब की सुवर्णतुला होनेवाली थी। महाबलेश्वर के पास।

सुवर्ण तुलादान विधि करने की कल्पना बहुत पवित्र थी। उसके लिए जरूरी साजो-सामान और आदमी श्रीमहाबलेश्वर के लिए रवाना हुए। जिजाऊ साहब के साथ वयोवृद्ध कूटनीतिज्ञ सोनो विश्वनाथ डबीर भी थे। श्रीमहाबलेश्वर व श्रीअतिबलेश्वर के मन्दिरों के इर्द-गिर्द सुरम्य बृहदारण्य फैला हुआ था। यहीं पर पंचगंगाओं का उद्गम था। वे एक गौमुख से बह निकली थीं। यहीं श्रीक्षेत्र की चारदीवारी में एक बहुत बड़ा तराजू लगाया गया। एक पलड़े में आऊसाहब को बिठाया गया। बाद में वृद्ध सोनोपन्त की भी तुला की गई। पन्त भी बहुत थक गए थे। उमर भी अस्सी साल से क्या कम होगी? बहुत बुजुर्ग आदमी थे। भोसले परिवार के ही हो गए थे। पन्त स्वराज्य के दबीर थे। निजी सचिव थे।
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ 
30-शिवाजी महाराज : “माँसाहब, मत जाइए। आप मेरी खातिर यह निश्चय छोड़ दीजिए”
29- शिवाजी महाराज : आखिर क्यों शिवाजी की सेना ने तीन दिन तक सूरत में लूट मचाई?
28- शिवाजी महाराज : जब शाइस्ता खान की उँगलियाँ कटीं, पर जान बची और लाखों पाए
27- शिवाजी महाराज : “उखाड़ दो टाल इनके और बन्द करो इन्हें किले में!”
26- शिवाजी महाराज : कौन था जो ‘सिर सलामत तो पगड़ी पचास’ कहते हुए भागा था?
25- शिवाजी महाराज : शिवाजी ‘महाराज’ : एक ‘इस्लामाबाद’ महाराष्ट्र में भी, जानते हैं कहाँ?
24- शिवाजी महाराज : अपने बलिदान से एक दर्रे को पावन कर गए बाजीप्रभु देशपांडे
23- शिवाजी महाराज :.. और सिद्दी जौहर का घेरा तोड़ शिवाजी विशालगढ़ की तरफ निकल भागे
22- शिवाजी महाराज : शिवाजी ने सिद्दी जौहर से ‘बिना शर्त शरणागति’ क्यों माँगी?
21- शिवाजी महाराज : जब 60 साल की जिजाऊ साहब खुद मोर्चे पर निकलने काे तैयार हो गईं
20-  शिवाजी महाराज : खान का कटा हुआ सिर देखकर आऊसाहब का कलेजा ठंडा हुआ
19- शिवाजी महाराज : लड़ाइयाँ ऐसे ही निष्ठावान् सरदारों, सिपाहियों के बलबूते पर जीती जाती हैं
18- शिवाजी महाराज : शिवाजी राजे ने जब अफजल खान के खून से होली खेली!
17- शिवाजी महाराज : शाही तख्त के सामने बीड़ा रखा था, दरबार चित्र की भाँति निस्तब्ध था
16- शिवाजी ‘महाराज’ : राजे को तलवार बहुत पसन्द आई, आगे इसी को उन्होंने नाम दिया ‘भवानी’
15- शिवाजी महाराज : कमजोर को कोई नहीं पूछता, सो उठो! शक्ति की उपासना करो
14- शिवाजी महाराज : बोलो “क्या चाहिए तुम्हें? तुम्हारा सुहाग या स्वराज्य?
13- शिवाजी ‘महाराज’ : “दगाबाज लोग दगा करने से पहले बहुत ज्यादा मुहब्बत जताते हैं”
12- शिवाजी ‘महाराज’ : सह्याद्रि के कन्धों पर बसे किले ललकार रहे थे, “उठो बगावत करो” और…
11- शिवाजी ‘महाराज’ : दुष्टों को सजा देने के लिए शिवाजी राजे अपनी सामर्थ्य बढ़ा रहे थे

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Neelesh Dwivedi

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