भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 15/9/2021

हिंदुस्तान में ठगी की समस्या काफ़ी पुरानी थी। मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के शासन के दौरान एक फ्रांसीसी पर्यटक आए थे, डि थेवनॉट। उन्होंने लिखा है, “दिल्ली से आगरा के बीच पूरा रास्ता ठगों से अटा पड़ा है। ठग दुनिया में सबसे धूर्त लुटेरे हैं… वे शिकार को फाँसने के लिए कुछ निश्चित तरक़ीबें लगाते हैं। उनके साथ एक फंदा भी होता है, जिसे वे शिकार के नज़दीक पहुँचते ही पलक झपकते उसके गले में कस देते हैं। इतने सटीक तरीके से कि कभी विफल नहीं होते।” अंग्रेजों को इस समस्या की गंभीरता का अहसास पहली बार 18वीं सदी के अंत में हुआ। लेकिन उन्होंने 1829 तक इनके ख़िलाफ़ प्रभावी कार्रवाई शुरू नहीं की। 

ठगों ने अपनी गतिविधियों का दैवीय अनुमोदन हासिल कर रखा था। किंवदंतियों में उनके दिग्गज अपने साथियों को बताते थे कि प्राचीन काल में एक बड़ा दैत्य हुआ था। वह धरती पर सभी लोगों को खाने लगा। तब भगवान शिव की पत्नी पार्वती ने काली का रूप लिया। उन्होंने उस दैत्य के साथ युद्ध कर उसे काट डाला। लेकिन उसके शरीर से खून की जितनी बूँदें पृथ्वी पर गिरीं, उन सभी से नए दैत्य पैदा हो गए। ऐसा कई बार हुआ। तब देवी ने अपनी दोनों भुजाओं के मैल से दो पुरुष पैदा किए। उन्हें एक-एक चौकोर कपड़ा देकर आदेश दिया कि सभी दैत्यों को खून की एक भी बूँद गिराए बिना मार दो। दोनों पुरुषों ने उनकी आज्ञा का पालन किया और सभी दैत्यों को उस कपड़े से गला घोंटकर मार दिया। काम पूरा होने के बाद दोनों ने वह कपड़ा देवी काली को लौटाना चाहा। लेकिन देवी ने दोनों से कहा कि उनकी निशानी के तौर पर यह कपड़ा अपने पास रख लो। किसी मुनाफ़े के धंधे में इसका इस्तेमाल करना।… इस तरह वे ठगी और उसके लिए की गई हत्याओं को जायज़ ठहराते थे।

बहरहाल, अंग्रेज अधिकारी विलियम स्लीमैन को ठग गिरोहों के उन्मूलन का श्रेय दिया जाता है। वायसराय लॉर्ड विलियम बेंटिंक ने इसके लिए 1829 में विशेष विभाग बनाया। ठगों के बारे में जाँच कर उन्हें ख़त्म करने की ज़िम्मेदारी इस विभाग को दी गई। स्लीमैन को 1835 में इस अभियान का प्रभारी बनाया गया। फिर 1839 में उन्हें ठगी-डकैती उन्मूलन विभाग का आयुक्त बना दिया गया। उस समय ठग गिरोहों को कुछ राजाओं और ज़मींदारों का संरक्षण भी मिला था। कई बड़े किसान भी उन्हें मदद करते थे। अपनी सुरक्षा के बदले उन्हें अपने मुनाफ़े में से हिस्सा देते थे। लेकिन अंग्रेजों ने तय कर लिया था कि ठगी को ख़त्म करना है। उनकी नाराजगी इसलिए थी कि कानून-व्यवस्था को ठग सीधी चुनौती दे रहे थे। 

हालाँकि ठगों को ख़त्म करने की प्रक्रिया जटिल थी। उनसे जुड़ी दंतकथाओं के कारण अंग्रेजों के मन में थोड़ा डर भी था। लिहाज़ा, अंग्रेजों ने पहले सबूत जुटाए। फिर कार्रवाई की। इस दौरान 1831 से 1837 के बीच 3,000 से ज़्यादा ठगों को दोषी ठहराकर सजाएँ दी गईं। इनमें से लगभग 500 ठगों ने सरकारी गवाह या मुख़बिर बनकर किसी तरह अपनी जान बचा ली। इस तरह के ठगों को अलग काराग़ार में रखा गया। ऐसी एक प्रमुख जेल जबलपुर (मध्य प्रदेश) में थी। बाकी ठगों को तो अपने किए पर कोई ग्लानि नहीं थी अलबत्ता। बल्कि उनमें से एक ने तो इस बात पर पछतावा जताया था कि उसे 1,000 हत्याओं का लक्ष्य पूरा करने से पहले ही पकड़ लिया गया। बहरहाल, 1860 तक ठगी पर प्रभावी तरीके से लगाम लग चुकी थी। हालाँकि ठगी-डकैती से संबंधित कार्यालय 1904 तक काम करता रहा।

उस समय ईसाई मिशनरियों ने लड़कियों की शिक्षा के लिए तमाम स्कूल खोल लिए थे। पश्चिम के विचार भी भारतीय समाज में घुसपैठ कर चुके थे। उन विचारों के समर्थक चाहते थे कि सरकार भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में अधिक सुधार के लिए कदम उठाए। इसके लिए सरकार को विवाह की न्यूनतम उम्र बढ़ाने का सुझाव दिया गया। हिंदु विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए कानूनी बंदोबस्त की मांग की गई। लेकिन सरकार ने इस सबको लंबे समय तक नज़रंदाज़ किया। कारण कि उसे लगता था कि वह अब तक भारतीय समाज और धार्मिक मामलों में पर्याप्त दख़ल दे चुकी है। हालाँकि फिर भी ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे विचारकों-सुधारकों ने आख़िरकार उसे राजी कर लिया। इसके बाद 1856 में हिंदु विधवा पुनर्विवाह कानून पारित किया गया।

ऐसे ही, बहुविवाह का मसला था। इसका विरोध करने और इसके ख़िलाफ़ कानून बनाने की वकालत करने वालों में बर्दवान के महाराजा अग्रणी थे। उनके मुताबिक बंगाल में इस प्रथा को संरक्षण देने वाले मुख्य रूप से ब्राह्मण थे। उन्होंने लिखा था, “बंगाल में ये ब्राह्मण ‘कुलीन’ कहलाते हैं। ये लोग, ऐसी लड़कियों की किसी से शादी ही नहीं होने देते, जिनके माता-पिता पर्याप्त दहेज देने में सक्षम न हों। भले लड़कियाँ अविवाहित ही बूढ़ी क्यों न हो जाएँ। भारी-भरकम दहेज के बिना कुलीन किसी से विवाह नहीं करते। जबकि दहेज के लालच में सौ-सौ या उससे अधिक महिलाओं से भी शादी कर लेते हैं। उन्हें उन महिलाओं की कोई फ़िक्र ही नहीं होती, जिनके साथ वे विवाह के पवित्र बंधन में बँधे हैं।” लिहाज़ा इस कुप्रथा को रोकने के लिए भी आख़िर सरकार ने कानून तैयार कर लिया। लेकिन तभी विद्रोह (1857 का) हो गया। इससे कानून पर अमल नहीं हुआ। फिर विद्रोह शांत होने के बाद जब बंगाल के उपराज्यपाल (लेफ्टिनेंट गवर्नर) ने सरकार से इस कानून को हरी झंडी दिखाने आग्रह किया तो उसने इंकार कर दिया। दलील दी कि इससे बंगाल के बाहर उन वर्गों के बीच असहज संदेश जा सकता है, जिनमें बहुविवाह प्रचलित है। इशारा ख़ास तौर पर मुसलिमों की ओर था।

इस तरह 1857 तक तो सरकार ने सुधारवादी कदम उठाए। इस दिशा में कानून बनाए। लेकिन इसके बाद हिचकने लगी। कारण कि सुधारों के प्रति जनता की प्रतिक्रिया का ठीक-ठीक अनुमान लगाना मुश्किल हो रहा था। अब तक सिर्फ़ ठगी के उन्मूलन से लोग सही मायने में खुश थे। जबकि सती प्रथा, नवजात बच्चियों की हत्या पर प्रतिबंध आदि से जुड़े कानूनों को पूरी तरह स्वीकृति नहीं मिली थी। विधवा पुनर्विवाह जैसे कानूनों की तो अनदेखी ही हो रही थी।

(जारी…..)

अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
3. हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों के आधिपत्य की शुरुआत किन हालात में हुई?
2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?

 

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