जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 20/8/2021

उस समय लंदन में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर थे सर जोसिया चाइल्ड। उनका मानना था कि भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव रखना कंपनी का कर्त्तव्य है। इसलिए उन्होंने 80,000 पाउंड अदा कर इंग्लैंड के राजा चार्ल्स-द्वितीय से निषेधाज्ञा जारी कराई। इसके जरिए ईस्ट इंडिया कंपनी की प्रतिस्पर्धी ब्रिटिश कंपनियों को भारत में व्यावसायिक गतिविधियाँ चलाने से रोक दिया गया। हालाँकि 1694 में ब्रिटिश संसद ने संकल्प पारित कर यह निषेधाज्ञा रद्द कर दी। इसी बीच 1697 में स्पाइटलफील्ड्स (लंदन का एक इलाका) के रेशम बुनकरों ने भारत से सस्ते कपड़ों के आयात का विरोध कर दिया। इसके एक साल बाद ही 1698 में जोसिया चाइल्ड के व्यावसायिक प्रतिस्पर्धियों ने ब्रिटिश हुकूमत को महज़ आठ फ़ीसदी ब्याज पर 20 लाख पाउंड की रकम उधार दी। इसके बदले उन्होंने अपने लिए विशेषाधिकार पत्र हासिल कर लिया। इस तरह ‘न्यू इंग्लिश कंपनी’ बनी। लेकिन यह ज़्यादा चली नहीं और 1708 में इसका ईस्ट इंडिया कंपनी में विलय हो गया। 

इसी बीच इधर 1707 में हिंदुस्तान के आख़िरी मज़बूत मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की मृत्यु हो गई। इससे देश में अराजक स्थिति बनी, जिसने अंग्रेजों के साथ फ्रांसीसियों को भी मौका दिया कि वे साम्राज्य विस्तार के लिए आगे बढ़ें। हालाँकि अभी वे इसके लिए अपनी सामर्थ्य परख ही रहे थे कि मुग़लिया सल्तनत तेजी से ढहने लगी और देश में अस्थिरता पैदा हो गई। वैसे, अंग्रेज इसके लिए तैयार थे। फिर उनके पास ऐसे राजाओं की मित्रता भी थी, जिन्होंने मुग़ल सल्तनत से अलग स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली थी। सो, जब मुग़ल सल्तनत बिखरी तो अपना अस्तित्व बचाने और अपने ठिकानों की सुरक्षा के लिए अंग्रेजों को प्रभाव बढ़ाना ही था। लिहाज़ा उनके साम्राज्य निर्माण की गतिविधि तेज होने लगी।

दूसरी तरफ, फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी अंग्रेजों जैसी नहीं थी। शुरू में वह फ्रांस सरकार की विदेश नीति का माध्यम थी। इसीलिए सरकार के अधीन थी और बड़े जोख़िम नहीं लेती थी। हालाँकि 1742 में हिंदुस्तान में इसके प्रमुख बने जोसेफ फ्रांसिस डूप्ले साम्राज्य विस्तार का इरादा रखते थे। वे कुशाग्र बुद्धि के मालिक थे और उनके सहयोगी प्रतिभावान। उन्होंने देखा कि कई भारतीय राजा आज़ादी के लिए जोर लगा रहे हैं। उनके पास शक्ति और संसाधन हैं। उनकी सेनाओं को बेहतर प्रशिक्षण मिले तो वे अपने से सक्षम किसी भी पक्ष को हरा सकते हैं। इनमें से किसी भी राजा के साथ मिलकर निर्णायक भूमिका अदा की जा सकती है। यह सोचकर डुप्ले ने इस दिशा में काम शुरू किया। लेकिन फ्रांस सरकार उनकी योजनाओं को समझ नहीं पाई। उस समय फ्रांस की सरकार के लिए यूरोप के घटनाक्रमों की तुलना में भारत छोटा मंच था। लिहाज़ा उसने 1754 में डुप्ले को भारत से हटा लिया। 

उधर, बंगाल में 1756 में सिराज़-उद-दौला नवाब बन बैठा। वह अंग्रेजों के प्रति दुर्भावना से ग्रस्त था। उसे हमेशा लगता था कि गद्दी के दूसरे दावेदारों के साथ अंग्रेज उसके विरुद्ध साज़िश कर रहे हैं। इसी बीच उसने सुना कि अंग्रेज कलकत्ता में अपने ठिकाने की किलेबंदी कर रहे हैं। पता चला कि फ्रांसीसी भी अपने ठिकानों की सुरक्षा पुख़्ता कर रहे हैं। उसको यह जानकारी भी थी कि दक्षिण में अब तक क्या-कुछ हुआ है। लिहाज़ा तमाम तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उसने अंग्रेजों और फ्रांसीसियों, दोनों को हुक्म दिया कि वे अपने ठिकानों की किलेबंदी तत्काल रोक दें। यह आदेश फ्रांसीसियों ने मान लिया लेकिन अंग्रेजों की प्रतिक्रिया आक्रामक थी। इससे नवाब आगबबूला हो गया।

नवाब ने अपनी फौज़ को कलकत्ते पर चढ़ाई का हुक़्म दे दिया। अंग्रेज उस समय अति-आत्मविश्वास के शिकार थे। इस लड़ाई में वह चकनाचूर हो गया। कलकत्ते पर सिराज़-उद-दौला का अधिकार हो गया। नवाब और उसकी सेना जब कलकत्ता पहुँची तो उसे वहाँ एक अंग्रेज न्याय-अधिकारी जोसिया हॉलवेल और उनके 54 साथी ही मिले। बाकी सब भाग चुके थे। नवाब ने उन सभी को काल-कोठरी में डाल दिया। जेलों में ख़ास किस्म के यातनागृह को ‘काल-कोठरी’ का नाम अंग्रेजों ने ही दिया था। यह 18 फीट लंबा और 14 फीट चौड़ा कमरा होता था। जहाँ हवा और रोशनी पहुँचने का कोई ज़रिया नहीं था। नवाब इस बारे में पहले से जानकारी रखता था। इसीलिए उसने जानबूझकर अंग्रेज बंदियों को यहाँ डाला। उनमें से 43 बंदियों की रातभर में दम घुट जाने से मौत हो गई।

इधर, कलकत्ता का किला छिन जाने की सूचना मद्रास पहुँची। तब अंग्रेजों ने रॉबर्ट क्लाइव और एडमिरल वाट्सन के नेतृत्व में सैन्य टुकड़ी वहाँ भेजी। जनवरी 1757 में क्लाइव तथा वाट्सन ने बिना किसी बड़ी दिक्क़त के कलकत्ते पर फिर कब्ज़ा कर लिया। अंग्रेज अब तक फ्रांसीसियों के व्यापारिक केंद्र चंदननगर पर भी कब्ज़ा कर चुके थे। यानी परिस्थितियाँ उनके अनुकूल थीं। लिहाज़ा उन्होंने नवाब के ख़िलाफ निर्णायक लड़ाई छेड़ दी। प्लासी के मैदान में 23 जून 1757 को यह लड़ाई दो हिस्सों में लड़ी गई। क्लाइव की सेना में उस समय 800 यूरोपीय और 2,000 भारतीय सैनिक थे। जबकि नवाब के पास 50,000 का सैन्य बल था। फिर भी नवाब बुरी तरह पराजित हुआ। 

इस युद्ध के राजनीतिक परिणाम स्वाभाविक थे। ईस्ट इंडिया कंपनी 24-परगना की ज़मींदार बन गई। यह कलकत्ता के दक्षिण में लगभग 900 वर्गमील का इलाका था। इससे अंग्रेजों को अच्छा-ख़ासा लगान हासिल होने लगा। अकेले क्लाइव को ही 2,34,000 पाउंड के उपहार मिले। अंग्रेजों ने सिराज़-उद-दौला के सेनापति मीर ज़ाफर को बंगाल का नवाब बना दिया। वह उनकी कठपुतली साबित हुआ। सिराज-उद-दौला की मुर्शिदाबाद जेल में हत्या कर दी गई। इस तरह बंगाल में अब अंग्रेजों की स्थिति सर्वोच्च हो गई थी।

सन् 1760 में क्लाइव इंग्लैंड लौटे। उनके बाद जोसिया हॉलवेल बंगाल के प्रभारी बने। ये वही हॉलवेल थे, जो कलकत्ते की काल-कोठरी से ज़िंदा बच गए थे। बंगाल में इस वक़्त नवाब के उत्तराधिकार को लेकर लड़ाई-झगड़े होने लगे थे। क्योंकि मीर ज़ाफर के पुत्र की मृत्यु हो गई थी। लिहाज़ा अंग्रेजों ने तय किया कि मीर ज़ाफर के दामाद मीर क़ासिम को नवाब बना दिया। मीर ज़ाफर इसके लिए तैयार न था। इसके बावज़ूद अंग्रेजों ने उसे जोर-ज़बर्दस्ती से हटाकर मीर कासिम को गद्दी पर बिठा दिया।

(जारी…..)

अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(नोट : ‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
3. हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों के आधिपत्य की शुरुआत किन हालात में हुई?
2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?

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