बाल-विवाह के विरोधी किस समाज-सुधारक ने बेटी की शादी 13 की उम्र में की थी?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 24/10/2021

सन् 1857 की क्रांति के बाद भारतीय अधिक संख्या में समाज सुधार कार्यक्रमों की माँग करने लगे थे। हालाँकि यह माँग भारतीय समाज सुधारकों से ही थी। इस पृष्ठभूमि में राजा राममोहन रॉय द्वारा स्थापित ‘ब्रह्म समाज’ के बड़े नेता देबेंद्रनाथ टैगोर क्रमिक सुधार के पक्षधर थे। उन्होंने 1867 में लिखा था, “हमें हिंदु शास्त्रों में वर्णित ज्ञान के आलोक में अपनी परंपराओं, रीति-रिवाज़ों, समारोहों का शुद्धिकरण करना है। लेकिन यह सावधानी भी बरतनी है कि सामाजिक बदलाव की गति बहुत तेज न हो। नहीं तो हम उसी वर्ग से अलग हो जाएँगे, जिसका हमें उन्नयन करना है।” लेकिन ‘ब्रह्म समाज’ के युवा कार्यकर्ता इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं थे। इनमें अग्रणी नाम था केशब चंद्र सेन का। वे 1857 में ही संगठन से जुड़े थे। अंग्रेजी भाषा में धाराप्रवाह भाषण दिया करते थे। इससे भारत के शिक्षित युवा उन्हें ख़ूब पसंद करते थे। उस समय तक ‘ब्रह्म समाज’ के अधिकांश सदस्य ब्राह्मण थे। जनेऊ उनकी पहचान का हिस्सा था। जबकि केशब चाहते थे कि समाज सुधार की प्रक्रिया में ब्राह्मण जनेऊ पहनना छोड़ दें। लेकिन देबेंद्रनाथ ऐसे विचारों से सहमत नहीं थे। लिहाज़ा ऐसे तमाम मुद्दों पर देबेंद्रनाथ और केशब चंद्र सेन के बीच मतभेद बढ़ते गए। आख़िर केशब ने ‘भारतवर्षीय ब्रह्म समाज’ बना लिया। हालाँकि आगे चलकर यह संगठन भी दो हिस्सों में बँट गया। घटना 1878 की है। उस समय केशब चंद्र ने अपनी 13 साल की बेटी का विवाह एक हिंदु राजकुमार से किया। जबकि वह सार्वजनिक जीवन में बाल-विवाह के विरोधी थे। इससे नाराज़ उनके संगठन के युवाओं ने उसी साल ‘साधारण ब्रह्म समाज’ बना लिया। 

बाद के वर्षों में केशब ने हिंदु, इसलाम और ईसाईयत के बीच समानताएँ स्थापित करने की कोशिश भी की। उन्होंने 1879 में अपने साथियों से कहा, “मेरे भाईयो, एक-दूसरे के विचारों में निहित अच्छाईयों को ग्रहण कीजिए। घृणा मत कीजिए। दूसरों को अलग मत मानिए। उनके मतों में जो सच्चाई और मानवता के भाव हैं, उनका अपने में समावेश कीजिए।… इस तरह धार्मिक, नैतिक जीवन में मानवता पूर्ण और परिपक्व होगी।” अपनी इस नई विचारधारा को केशब ने ‘नव विधान’ कहा था। उन्होंने इसका प्रतीक चिह्न भी तैयार किया। यह हिंदुओं के त्रिशूल, ईसाईयों के सलीब और मुसलिमों के अर्धचंद्र से मिलकर बना था। हालाँकि मुख्य प्रभाव ईसाईयत का था। उन्होंने इस ‘नव विधान’ के बारे में लिखा था, “मेरा पंथ ईश्वर का विज्ञान है, जो सबको प्रकाशित करता है। मेरा सिद्धांत ईश्वर का प्रेम है, जो सबको सुरक्षित रखता है। मेरा गिरिजाघर ईश्वर का अदृश्य राज्य है, जहाँ सत्य, प्रेम और पवित्रता का निवास है।” केशब चंद्र का 1884 में निधन हो गया। इसके बाद उनके काम को किसी ने ज़्यादा आगे नहीं बढ़ाया। 

केशब चंद्र ने रामकृष्ण परमहंस (1836-86) के विचारों के प्रचार-प्रसार में भी अहम भूमिका निभाई थी, जिनकी औपचारिक शिक्षा भी नहीं हुई थी। वे अपने ही आनंद में रहते थे। वे ईश्वर के विभिन्न रूपों को सामने देखते थे। वे इनमें जब जिस स्वरूप को पूजते, उसी के अनुरूप वेश-भूषा रखते, भोजन-प्रार्थना करते थे। उनकी मान्यता थी कि सभी धर्म सच्चे हैं। इसलिए उनमें समानता स्थापित करने की ज़रूरत नहीं है। व्यक्ति अपनी रुचि से मत का चुनाव कर सकता है। वे कहते थे, “हर व्यक्ति को अपने ख़ुद के धर्म का पालन करना चाहिए। ईसाई अपनी ईसाईयत को मानें, मुसलिम लोग इस्लाम को। इसी तरह अन्य भी। हिंदुओं के लिए सनातन पंथ श्रेष्ठ है, जिसका रास्ता महान ऋषियों ने दिखाया है।” रामकृष्ण सहज किस्से-कहानियों से अपनी शिक्षाएँ लोगों तक पहुँचा देते थे। जैसे एक बार उन्होंने कहा, “किसी आदमी ने जंगल में 14 साल तपस्या की। इससे उसे पानी पर चलने की शक्ति प्राप्त हुई। खुशी-खुशी वह इस बारे में बताने के लिए गुरु के पास पहुँचा। उन्हें उसने पूरी बात बताई तो गुरु ने कहा- बेटा, इतना परिश्रम कर के तुम ये क्या हासिल कर आए। ये तो सामान्य व्यक्ति भी कर सकता है। नाविक को एक-दो पैसा देकर पानी पर इस पार से उस पार जा सकता है।” सेवा, समर्पण उनकी शिक्षाओं के केंद्र में था। वे हमेशा कहते थे, “नाहम्, नाहम्, तुहु तुहु यानि मैं कुछ भी नहीं, जो है, बस तू ही तू।” 

रामकृष्ण के शिष्यों सबसे बड़ा नाम विवेकानंद (1863-1902) का हुआ। उन्होंने गुरु की शिक्षाओं को न सिर्फ़ भारत बल्कि अन्य देशों तक प्रसारित किया। विवेकानंद मूर्ति पूजा को अच्छा मानते थे। वे कहते थे, “जो प्रतिमा-पूजा का विरोध करते हैं, उनसे मैं कहना चाहता हूँ कि भाई! अगर आप किसी प्रतिमा के बिना भगवान की पूजा कर सकते हैं तो कीजिए। लेकिन जो ऐसा नहीं कर सकते, आप उनकी निंदा क्यों करते हैं? मान लीजिए, सुंदर कंगूरों, मीनारों वाली इमारत देखभाल के अभाव में धूलधूसरित हो गई है। उसमें टूट-फूट हो गई है, तो क्या इसीलिए आप उसे गिराकर नई इमारत बनाएँगे? या उसका जीर्णाद्धार करेंगे? ज़ाहिर तौर पर हम उसमें सुधार ही करना चाहेंगे।” विवेकानंद मानते थे कि भारत पश्चिमी जगत से काफ़ी-कुछ सीख सकता है। लेकिन वे इस पर भी जोर देते थे कि आध्यात्मिक मामलों में पश्चिम के लिए भारत के पास ज़्यादा कुछ है। उन्होंने भारतीयों को सिखाया कि सभी धर्म अच्छे हैं। उनकी अच्छी बातें ग्रहण करनी चाहिए। लेकिन अपने धर्म का संरक्षण और संवर्धन भी हमारा कर्त्तव्य होना चाहिए। बल्कि अन्य धर्मों के मुकाबले हिंदु धर्म की शिक्षाएँ बेहतर और परिष्कृत हैं। इसलिए हर हिंदु को इस विशिष्टता पर गर्व होना चाहिए। 

रामकृष्ण और विवेकानंद से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ने वालों में एक बड़ा नाम अरबिंदो घोष (1872-1950) का लिया जाता है। उन्हें बाद में श्री अरबिंदो के नाम से जाना गया। उन्होंने विलायत से अंग्रेजी शिक्षा हासिल की। फिर उग्र-राष्ट्रवादियों में शामिल होकर देशसेवा में लग गए। हालाँकि 1910 में उन्होंने राजनीति भी छोड़ दी और पांडिचेरी में आश्रम बनाकर रहने लगे। आख़िरी समय तक वहीं रहे। उनका राजनीतिक जीवन महज चार साल का था। इतने कम समय में ही उन्होंने क्रांतिकारी कार्यों को एक नई दिशा दे दी। हालाँकि इसे राजनीतिक गतिविधि मानकर उन्होंने यह काम नहीं किया बल्कि ईश्वरीय कार्य समझकर देश और धर्म की सेवा के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया। 
(जारी…..)
अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
64. ब्रिटिश सरकार के दौर में महिला शिक्षा की स्थिति कैसी थी?
63. देश जब आज़ाद हुआ, तब कितने प्रतिशत आबादी अशिक्षित थी?
62. लॉर्ड कर्जन को कुछ भारतीयों ने ‘उच्च शिक्षा के सर्वनाश का लेखक’ क्यों कहा?
61. आईसीएस में पहली बार कितने भारतीयों का चयन हुआ था और कब?
60. वायसराय जॉन लॉरेंस को ‘हमारा सबसे बड़ा शत्रु’ किस अंग्रेज ने कहा था?
59. कारखानों में काम करने की न्यूनतम उम्र अंग्रेजों ने पहली बार कितनी तय की थी?
58. प्लास्टिक उत्पादों से भारतीयों का परिचय बड़े पैमाने पर कब हुआ?
57. भारत में औद्योगिक विस्तार का अगुवा किस भारतीय को माना जाता है?
56. क्या हम जानते हैं, भारत में सहकारिता का प्रयोग कब से शुरू हुआ?
55. भारत में कृषि विभाग की स्थापना कब हुई?
54. अंग्रेजों ने पहली बार लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र कितनी तय की थी?
53. ब्रिटिश भारत में कानून संहिता बनाने की प्रक्रिया पहली बार कब पूरी हुई?
52. आज़ादी के बाद पाकिस्तान की पहली राजधानी कौन सी थी?
51. आजादी के आंदोलन में 1857 की क्रांति से ज्यादा निर्णायक घटना कौन सी थी?
50. चुनाव में मुस्लिमों को अलग प्रतिनिधित्व देने के पीछे अंग्रेजों का छिपा मक़सद क्या था?
49. भारत में सांकेतिक चुनाव प्रणाली की शुरुआत कब से हुई?
48. भारत ब्रिटिश हुक़ूमत की महराब में कीमती रत्न जैसा है, ये कौन मानता था?
47. ब्रिटेन के किस प्रधानमंत्री को ‘ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने वाला’ माना गया?
46. भारत की केंद्रीय विधायी परिषद में सबसे पहले कौन से तीन भारतीय नियुक्त हुए?
45. कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल का डिज़ाइन किसने बनाया था?
44. भारतीय स्मारकों के संरक्षण को गति देने वाले वायसराय कौन थे?
43. क्या अंग्रेज भारत को तीन हिस्सों में बाँटना चाहते थे?
42. ब्रिटिश भारत में कांग्रेस की सरकारें पहली बार कितने प्रान्तों में बनीं?
41.भारत में धर्म आधारित प्रतिनिधित्व की शुरुआत कब से हुई?
40. भारत में 1857 की क्रान्ति सफल क्यों नहीं रही?
39. भारत का पहला राजनीतिक संगठन कब और किसने बनाया?
38. भारत में पहली बार प्रेस पर प्रतिबंध कब लगा?
37. अंग्रेजों की पसंद की चित्रकारी, कलाकारी का सिलसिला पहली बार कहाँ से शुरू हुआ?
36. राजा राममोहन रॉय के संगठन का शुरुआती नाम क्या था?
35. भारतीय शिक्षा पद्धति के बारे में मैकॉले क्या सोचते थे?
34. पटना में अंग्रेजों के किस दफ़्तर को ‘शैतानों का गिनती-घर’ कहा जाता था?
33. अंग्रेजों ने पहले धनी, कारोबारी वर्ग को अंग्रेजी शिक्षा देने का विकल्प क्यों चुना?
32. ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में भारत में शिक्षा की स्थिति कैसी थी?
31. मानव अंग-विच्छेद की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले पहले हिन्दु चिकित्सक कौन थे?
30. भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
3. हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों के आधिपत्य की शुरुआत किन हालात में हुई?
2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?

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