धार्मिक शिक्षा सिर्फ़ 12वीं की पढ़ाई के बाद ही क्यों नहीं?

टीम डायरी, 5/7/2022

एक सवाल बड़ा प्रासंगिक है। ये कि किसी भी तरह की धार्मिक शिक्षा 12वीं की पढ़ाई के बाद क्यों नहीं दी जानी चाहिए? मतलब सरकार की ओर से इस तरह के बन्दोबस्त क्यों नहीं किए जाने चाहिए कि वह छोटे बच्चों को विशुद्ध धार्मिक शिक्षा दिए जाने के प्रयासों को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दे। साथ ही यह इंतज़ाम भी करे कि पहले सभी बच्चे अपनी सामान्य प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा पूरी करें। इसके बाद जिस तरह 12वीं के बाद डॉक्टरी, इंजीनियरी के विशेषज्ञ पाठ्यक्रमों में दाख़िला लिया जाता है, उसी तरह अगर किसी का मन करे तो वह धार्मिक शिक्षा के लिए नियत पाठ्यक्रमों में दाख़िला ले।

केरल के राज्यपाल हैं, आरिफ़ मोहम्मद खान। बीते कई सालों से वे इस तरह की मांग कर रहे हैं। हालांकि अब तक उनकी बात पर किसी स्तर पर ध्यान दिया नहीं गया है। मगर उनकी दलीलों में दम बहुत है। मसलन, उनका कहना है कि 12वीं के बाद धार्मिक शिक्षा के लिए विशेषज्ञ पाठ्यक्रम में अगर कोई बच्चा दाख़िला लेता है, तो वह इन शिक्षाओं काे तार्किक आधार पर समझ सकेगा। उन्हें ग्रहण कर सकेगा। यानि इसका सबसे बड़ा लाभ ये होगा कि उसे गुमराह किए जाने की सम्भावनाएँ बेहद कम हो जाएँगीं।

युवा गुमराह नहीं होगा तो ज़ाहिर तौर पर वह किसी तरह के धार्मिक कट्‌टरपंथ की चपेट में भी नहीं आएगा। इससे धर्म को आधार बनाकर की जाने वाली हिंसा-प्रतिहिंसा की समस्याओं पर लगाम लग सकेगी। उस दिशा में मदद मिल सकेगी। देश में एक बड़े ओहदे पर मौज़ूद आरिफ़ साहब का यह विचार जितना अहम और सोचनीय है। उतना ही दिलचस्प इसका ज़वाब तलाशना भी है कि अब तक किसी राजनीतिक दल ने आख़िर इस दिशा में कोई पहल क्यों नहीं की? क्या कोई दल धर्म के आधार पर हिंसा-प्रतिहिंसा को रोकना नहीं चाहता? सिर्फ़ इस तरह के मसलों पर राजनीति करना चाहता है?

अभी उदयपुर, राजस्थान में धर्म के आधार पर हुई हत्या की एक घटना के बाद आरिफ़ साहब के तमाम वीडियो और सुझाव इंटरनेट पर फिर नज़र आ रहे हैं। इनमें वे अपनी बातों को बार-बार दोहरा रहे हैं। पढ़े-लिखे शख़्स हैं, इसलिए तमाम किताबों का हवाला भी दिया करते हैं। लेकिन कमाल की बात है कि अब तक भी उनके सवालों के उत्तर कहीं से मिलते नहीं दिखाई देते। और ये उत्तर तब शायद मिलेंगे भी नहीं, जब तक बड़ी तादाद में आवाज़ें आरिफ़ साहब की आवाज़ में जाकर मिलेंगी नहीं। इसलिए सोचिए। और अपनी पीढ़ियों को सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलसने से बचाना है, तो सोचकर बोलिए भी। ताकि हुक्मरानों पर कुछ करने का दबाव बने।

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Neelesh Dwivedi

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