Surat Loot

शिवाजी महाराज : आखिर क्यों शिवाजी की सेना ने तीन दिन तक सूरत में लूट मचाई?

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

सूरत को बचाने की कोई सूरत नहीं निकाली इनायतखान ने। उगाही तो खैर दी हो नहीं उसने। पर सूरत की रक्षा के लिए लड़ा भी नहीं वह नाकारा। बस जाकर कायर की तरह किले में छिप गया। एक जमाने में सूरत दुनिया का बहुत अमीर शहर था। इसीलिए मुगलों के कब्जे वाले इस शहर से महाराज उगाही वसूलने आए थे। उन्होंने साफ-साफ कह दिया था, “मुगलों ने मेरे राज्य में साढ़े तीन साल भारी तबाही मचाई है। हरजाने के तौर पर मुझे एक करोड़ रुपया दे दो। मैं सूरत की जरा-सी भी हानि नहीं करूँगा।” लेकिन खान ने महाराज की सूचना का मखौल उड़ाया। सो, महाराज सूरत के बाहर डेरा डालकर बैठ गए और मराठी फौज की टुकड़ियाँ सूरत शहर में घुस गईं। इसके बाद उगाही या लूट ली जाती, सिर्फ धनिकों से। गरीब, स्त्रियों, बच्चे-बूढ़े, मन्दिर, दर्गे, चर्च, धर्मसेवक, साधु-सन्तों को हाथ भी नहीं लगाया जाता था।

सूरत करोड़पतियों से भरा हुआ था। हीरे-जवाहरात, चाँदी, सोना और रोकड़ रकम इकट्ठा की जा रही थी। महाराज के सामने धन-दौलत का अम्बार लग गया। भागे हुए या छिपे हुए रईसों की कोठियाँ तोड़ी जा रही थीं। तभी फादर अम्बास नाम का क्रिश्चियन मिशनरी महाराज से मिलने आया (दिनांक 6 जनवरी बुधवार)। उसने विनती की, “मेरा अनाथालय और चर्च है यहाँ। अभय मिले।’ महाराज ने कहा, “आपको तथा क्रिश्चियन लोगों को हम परेशान न करेंगे।” सचमुच ही उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई। ऐसे ही, एक डच परिवार को भी कोई तकलीफ नहीं उठानी पड़ी। इस घर के कर्ता आदमी की मौत हुई थी। घर में केवल औरतें और बच्चे ही थे। लेकिन परिवार पर आँच न आई। हालाँकि अंगरेजों ने बिना उगाही दिए अपने ठिकाने की आखिर तक रक्षा की। उनका प्रमुख था जॉर्ज ऑक्जिडेन (दिनांक 7 जनवरी 1664)।

तभी गुरुवार को इनायतखान की तरफ से वकील के तौर पर एक नौजवान आया। महाराज के साथ बातें करते समय उसने एकाएक कटार निकाल, महाराज पर वार किया। चारों तरफ खड़े मराठों ने फुर्ती से उसे मार गिराया। इस दगाबाजी से मराठा सैनिक भड़क उठे। उन्होंने धनी मुहल्लों में आगजनी शुरू कर दी। तीन दिन तक सूरत का यही हाल रहा। आगजनी और लूट-पाट से सूरत सिहर रही थी। वहाँ दिन में धुएँ के कारण रात उतर आती थी। रात में आग के कारण दिन का नजारा दिखाई देता। हवा के इशारे पर अग्रि तांडव नृत्य कर रहा था। मराठों के इशारे पर धनिक लोग जेवर, गहने, रुपए-पैसे निकालकर दे रहे थे। लगातार तीन साल तक मुगल फौज ने अत्याचार और बलात्कार कर मराठी देहातियों को, काश्तकारों को, यंत्रणा दी थी। जबकि महाराज ने तो फिर भी सिर्फ तीन दिन औरंगजेब की सूरत को सताया था। मुगलों के उद्दंड अधिकारियों को सिखाने के लिए यह निष्ठुरता उन्हें दिखानी पड़ी।

सूरत की सम्पदा लेकर महाराज वापिस लौटे (दिनांक 10 जनवरी रविवार 1664)। यह अपार सम्पदा महाराज क्यों बटोर लाए थे? स्वराज्य की बर्बादी करने वाले मुगलों को सबक सिखाने के लिए। सूरत की जनता से उनका कोई बैर नहीं था। गरीबों को, आम जनता को, उन्होंने वहाँ भी नहीं सताया था। उल्टे जहाँ तक हो सका, उन्होंने उनकी रक्षा की को। लेकिन बादशाह को बड़े-बड़े नजराने, सूबेदारों को रिश्वत और अपमानजनक कर राजी-खुशी से देनेवाले रईसों को उन्होंने आड़े हाथ लिया था। वैसे तो सूरत लूटी ही नहीं जाती। पर वह लूटी गई। इसके लिए दोषी था इनायत खान। महाराज ने सूरत लूटी क्योंकि वह औरंगजेब की थी इसलिए। गुजरातियों को सूरत को वह हरगिज न लूटते।

वैसे भी सूरत में महाराज को पाँच करोड़ से भी कम का ही माल मिला। सूरत की अमीरी को देखते हुए यह काफी कम लूट थी। वहाँ पाँच-पाँच करोड़ की हैसियत वाले कई धनवानों थे। लखपति तो बहुत ही अधिक थे। सूरत से चलते वक्त महाराज ने जो कहा था वह एक यूरोपियन ने दर्ज करके रखा। गौरतलब है, महाराज ने कहा था, “व्यक्तिगत रूप से हमारा किसी से भी बैर नहीं है, न था। हमने सूरत को लूटा, क्योंकि वह औरंगजेब की है। औरंगजेब ने हमारे मुल्क में साढ़े तीन साल तक कहर ढाया। कत्ल किए। उसी का बदला लेने के लिए हमने सूरत को लूटा।”

महाराज इतना कहकर सूरत में चले गए। लेकिन इनायत खान सात दिन तक किले से बाहर नहीं आया। मुँह छिपाए रहा (दिनांक 17 जनवरी 1664 तक)। यह थी सूरत के सूबेदार की बहादुरी। उधर, सारी सम्पदा लेकर महाराज घाट में से स्वराज्य की तरफ आ रहे थे। उनकी इस यात्रा के दौरान एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी। होदिगेरी के जंगल में शहाजी राजे महाराज साहब घोड़ा दौड़ा रहे थे। अचानक घोड़े का पैर वनलताओं के जंजाल में उलझ गया। घोड़ा अचानक ठिठक गया। राजे घोड़े पर से नीचे गिरे। जख्म बहुत गहरे थे। इसी में शहाजी राजे का इन्तकाल हुआ (दिनांक 23 जनवरी 1664)। अंत्येष्टि तथा अन्य कर्म एकोजी राजे ने किए। मौत की खबर राजगढ़ की ओर रवाना हुई।

इसी समय शिवाजी राजे रफ्ता-रफ्ता राजगढ़ की तरफ बढ़ रहे थे। शहाजी राजे की तीन शादियाँ हुई थीं। बड़ी रानी थी जिजाऊ साहब। दूसरी थीं तुकाऊ साहब और तीसरी नरसाऊ साहब। शहाजी राजे की मौत की खबर से राजगढ़ पर वज्राघात हुआ। माँ साहब को गुजरा हुआ जमाना याद आ गया। शरमीली जिजाऊ और रावदार शहाजी राजे का विवाह। उनका प्रेममय जीवन। पति और पिता में ठने बैर की कड़वी यादें। फिर शिवबा का बचपन, स्वराज्य की लड़ाई और शिवबा का कर्त्तत्त्व। जीवन की साँझबेला में वह संतुष्ट थी। पर अब यह?
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ 
28- शिवाजी महाराज : जब शाइस्ता खान की उँगलियाँ कटीं, पर जान बची और लाखों पाए
27- शिवाजी महाराज : “उखाड़ दो टाल इनके और बन्द करो इन्हें किले में!”
26- शिवाजी महाराज : कौन था जो ‘सिर सलामत तो पगड़ी पचास’ कहते हुए भागा था?
25- शिवाजी महाराज : शिवाजी ‘महाराज’ : एक ‘इस्लामाबाद’ महाराष्ट्र में भी, जानते हैं कहाँ?
24- शिवाजी महाराज : अपने बलिदान से एक दर्रे को पावन कर गए बाजीप्रभु देशपांडे
23- शिवाजी महाराज :.. और सिद्दी जौहर का घेरा तोड़ शिवाजी विशालगढ़ की तरफ निकल भागे
22- शिवाजी महाराज : शिवाजी ने सिद्दी जौहर से ‘बिना शर्त शरणागति’ क्यों माँगी?
21- शिवाजी महाराज : जब 60 साल की जिजाऊ साहब खुद मोर्चे पर निकलने काे तैयार हो गईं
20-  शिवाजी महाराज : खान का कटा हुआ सिर देखकर आऊसाहब का कलेजा ठंडा हुआ
19- शिवाजी महाराज : लड़ाइयाँ ऐसे ही निष्ठावान् सरदारों, सिपाहियों के बलबूते पर जीती जाती हैं
18- शिवाजी महाराज : शिवाजी राजे ने जब अफजल खान के खून से होली खेली!
17- शिवाजी महाराज : शाही तख्त के सामने बीड़ा रखा था, दरबार चित्र की भाँति निस्तब्ध था
16- शिवाजी ‘महाराज’ : राजे को तलवार बहुत पसन्द आई, आगे इसी को उन्होंने नाम दिया ‘भवानी’
15- शिवाजी महाराज : कमजोर को कोई नहीं पूछता, सो उठो! शक्ति की उपासना करो
14- शिवाजी महाराज : बोलो “क्या चाहिए तुम्हें? तुम्हारा सुहाग या स्वराज्य?
13- शिवाजी ‘महाराज’ : “दगाबाज लोग दगा करने से पहले बहुत ज्यादा मुहब्बत जताते हैं”
12- शिवाजी ‘महाराज’ : सह्याद्रि के कन्धों पर बसे किले ललकार रहे थे, “उठो बगावत करो” और…
11- शिवाजी ‘महाराज’ : दुष्टों को सजा देने के लिए शिवाजी राजे अपनी सामर्थ्य बढ़ा रहे थे
10- शिवाजी ‘महाराज’ : आदिलशाही फौज ने पुणे को रौंद डाला था, पर अब भाग्य ने करवट ली थी
9- शिवाजी ‘महाराज’ : “करे खाने को मोहताज… कहे तुका, भगवन्! अब तो नींद से जागो”

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