बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से
पुरन्दरगढ़ को जीतने की खातिर दिलेर खान ने लगातार दो महीने अथक मेहनत की। लेकिन बारूद के अजस्त्र भंडार, लक्षावधि रुपए और हजारों सैनिकों के बम, रक्त तथा प्राण फूँक देने पर भी वह पुरन्दर को जीत न सका। गढ़ पर लड़ती मराठा फौज अब आधी ही बची थी। मुरार बाजी भी वीरगति को प्राप्त हुए थे। फिर भी पुरन्दर हँस रहा था। उसकी हिम्मत परास्त नहीं हुई थी। मराठों के घर-संसार कुचलती मुगली फौज लगातार दौड़ रही थी। पुणे के नीचे के कर्यात मावल में कुबाहत खान, कर्हे पठार में शर्झे खान, खेडेबारे में सरफराज खान, पवन मावल तथा अन्दर मावल में कुतुबुद्दीन खान, हिरडस मावल और रोहीड घाटी में, बेलवंड घाटी में, गुजन घाटी में तथा कानद घाटी में दाऊद खान कुरैशी, रायसिंह, अचल सिंह वगैरा बहादुरों ने तबाही मचाई हुई थी।
सभी मावल उजड़ चुके थे। मुगलों ने अब सिंहगढ़ पर भी मोर्चे लगाए हुए थे। इस समय सिंहगढ़ पर खुद आऊसाहब और महाराज के परिवार के सदस्य थे। सिंहगढ़ लड़ने लगा। ये मोर्चे लगाए थे सरफराज खान ने। मराठा शरण में आएँगे, टूट जाएँगे, पैसे या जागीर की लालच में शिवाजी का साथ छोड़ेंगे। ऐसी आशाएँ थीं, मुगलों कीं। लेकिन इन आशाओं पर पानी ही फिर गया था। मराठा निशान और मराठों के सिर अब भी उसी शान से तने हुए थे। अपनी जान और घर-बार की परवा छोड़ वे दुश्मन से लड़ रहे थे।
वहाँ दिल्ली में औरंगजेब बेताबी से इंतजार कर रहा था फतह की खबरों का। महाराष्ट्र से पत्र तो रोजाना रवाना हो रहे थे लेकिन उसमें बड़ी जीत की कोई खबर नहीं होती थी। सिर्फ आगजनी की, मोर्चे लगाने की या पुरन्दर के पास का छोटा किला वज्रगढ़ और पुरन्दर का मचान ले लिया, ऐसी छुटपुट जीत की खबरें ही होती थीं इन पत्रों में। वैसे दिलेर खान मेहनती और दिलेर सेनानी था। जब तक कोई मुहिम पूरी नहीं होती, उसे चैन नहीं आता था। लगन और मेहनत यही उसके जीवन के महामंत्र थे। लेकिन बहुत जूझने पर भी पुरन्दर अब तक उसके हाथ नहीं आया था।
तब उस स्वाभिमानी सेनानी ने अपने मातहत सरदारों के सामने पगड़ी उतार के रख दी। प्रतिज्ञा की कि जब तक पुरन्दर हाथ नहीं आता, तब तक मैं सिर पर पगड़ी न रखूँगा। दिलेर खान जिद पर उतर आया था। लेकिन पुरन्दर भी कम नहीं था। खेमे के दरवाजे से दिलेर पुरन्दरगढ़ की तरफ देख रहा था। आज तक कई मुहिमों में वह लड़ा था। उसकी बहादुरी के कारनामे मुगलशाही में मशहूर थे। लेकिन आज यह गढ़ उसे मुँह चिढ़ा रहा था। दुःख, सन्ताप और निराशा से उसका रोम-रोम जल रहा था।
दिलेर खान पठान जान हथेली पर लेकर लड़ रहा था। मुगली मुहिम का रोज़मर्रा का खर्चा पहाड़ जैसा था। उस हिसाब से प्राप्ति अभी तक बहुत ही कम हुई थी। गढ़ के अन्दरूनी किले पर दक्षिण की ओर से पुरदिल खान, शुभकर्ण बुन्देला, रसूल बेग रोजभानी, हुसैन दाऊदसई, शेरसिंह राठौड़, जबरदस्त खान तथा महमूद खान ने मोर्चे लगा रखे थे। लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला था। उत्तर की तरफ तो रोज ही झंझा की तरह भयंकर युद्ध छिड़ जाता। भाड़ में डाले चने की तरह खान के सिपाही छटपटा कर मर रहे थे। इस दरवाजे में छोटी-सी दरार भी तो नहीं पड़ रही थी। यह दरवाजा था ढाल का। ढाल कहते थे झंडे को। गेरुए झंडे को। इस दरवाजे पर परकोटों, बुर्जों पर चढ़े मराठा मुगलों को कुचल रहे थे। हालाँकि मराठा जवान भी तड़फड़ा कर मर रहे थे।
एक बार का मुगली हमला बहुत ही विकट था (दिनांक 10 जून 1665)। लेकिन फिर भी मराठों ने उसका करारा जवाब दिया। अनगिनत बलि चढ़ाकर मुगलों को पीछे हटना पड़ा। हमले में 60 मराठा भी मौत की गोद में सो गए। उधर महाराज देख रहे थे कि मुगल सर्वनाश करने पर तुले हुए हैं। उनकी विध्वंसक क्षमता थी भी अपार। और इधर अपनी छोटी सी सेना लगातार 12 सालों से दुश्मन के खिलाफ लड़ रही थी। महाराज ने सोचा कि इस समय सन्धि करके दो कदम पीछे हटना और ताकत बढ़ाकर मौका देखकर हमला करना ज्यादा मुनासिब रहेगा। सो उन्होंने मिर्जा राजा के साथ सन्धि सम्बन्धी बातचीत चलाई।
पुरन्दर की उत्तर में एक बस्ती है, नारायण पेठ। तय हुआ कि वहाँ मिर्जा राजा के शिविर में प्रत्यक्ष रूप में बातचीत होगी। महाराज स्वयं आकर शिविर में उपस्थित हुए (दिनांक 11 जून 1665)। इस समय भी पुरन्दर पर लड़ाई जारी ही थी। महाराज को युद्ध का हल्ला-गुल्ला सामने ही दिखाई दे रहा था। हो-हल्ला सुनाई दे रहा था। दिलेर हठ पर उतर आया था। पुरन्दर के पीछे पड़ गया था। आखिर महाराज ने ही मुगलों को दिए जाने वाले किलों की फेहरिस्त में पुरन्दर को शामिल किया और उसे मुगलों के हवाले किया (दिनांक 12 जून को किले पर मुगली झंडा फहराया)।
खान की बाँछें खिल गई। महाराज सिर्फ छह मराठों के साथ मुगल छावनी में आए थे। मिर्जा राजा ने रहने के लिए शिवाजी राजे को अपना दीवानखाने का शामियाना दे दिया। वस्तुतः कोई भी मराठा किलेदार, सरदार अथवा शिवसैनिक लड़ाई से ऊबा हुआ या निराश नहीं था। लेकिन महाराज को चाहिए थी शक्तिसंचय के लिए अवधि। महाराज का हरकारा, तुरन्त गढ़ पर पहुँच गया। उसने महाराज की आज्ञा सुनाई. ‘किला खाली करके सब लोग नीचे उतर आएँ।
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।)
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ
34- शिवाजी ‘महाराज’ : मरते दम तक लड़े मुरार बाजी और जाते-जाते मिसाल कायम कर गए
33- शिवाजी ‘महाराज’ : जब ‘शक्तिशाली’ पुरन्दरगढ़ पर चढ़ आए ‘अजेय’ मिर्जा राजा
32- शिवाजी ‘महाराज’ : सिन्धुदुर्ग यानी आदिलशाही और फिरंगियों को शिवाजी की सीधी चुनौती
31- शिवाजी महाराज : जब शिवाजी ने अपनी आऊसाहब को स्वर्ण से तौल दिया
30-शिवाजी महाराज : “माँसाहब, मत जाइए। आप मेरी खातिर यह निश्चय छोड़ दीजिए”
29- शिवाजी महाराज : आखिर क्यों शिवाजी की सेना ने तीन दिन तक सूरत में लूट मचाई?
28- शिवाजी महाराज : जब शाइस्ता खान की उँगलियाँ कटीं, पर जान बची और लाखों पाए
27- शिवाजी महाराज : “उखाड़ दो टाल इनके और बन्द करो इन्हें किले में!”
26- शिवाजी महाराज : कौन था जो ‘सिर सलामत तो पगड़ी पचास’ कहते हुए भागा था?
25- शिवाजी महाराज : शिवाजी ‘महाराज’ : एक ‘इस्लामाबाद’ महाराष्ट्र में भी, जानते हैं कहाँ?
24- शिवाजी महाराज : अपने बलिदान से एक दर्रे को पावन कर गए बाजीप्रभु देशपांडे
23- शिवाजी महाराज :.. और सिद्दी जौहर का घेरा तोड़ शिवाजी विशालगढ़ की तरफ निकल भागे
22- शिवाजी महाराज : शिवाजी ने सिद्दी जौहर से ‘बिना शर्त शरणागति’ क्यों माँगी?
21- शिवाजी महाराज : जब 60 साल की जिजाऊ साहब खुद मोर्चे पर निकलने काे तैयार हो गईं
20- शिवाजी महाराज : खान का कटा हुआ सिर देखकर आऊसाहब का कलेजा ठंडा हुआ
19- शिवाजी महाराज : लड़ाइयाँ ऐसे ही निष्ठावान् सरदारों, सिपाहियों के बलबूते पर जीती जाती हैं
18- शिवाजी महाराज : शिवाजी राजे ने जब अफजल खान के खून से होली खेली!
17- शिवाजी महाराज : शाही तख्त के सामने बीड़ा रखा था, दरबार चित्र की भाँति निस्तब्ध था
16- शिवाजी ‘महाराज’ : राजे को तलवार बहुत पसन्द आई, आगे इसी को उन्होंने नाम दिया ‘भवानी’
15- शिवाजी महाराज : कमजोर को कोई नहीं पूछता, सो उठो! शक्ति की उपासना करो