बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से
सिद्दी के घेरे में खड़ीं तोपें पन्हाला पर आग उगल रहीं थीं। लेकिन इससे पन्हाला को कोई क्षति नहीं पहुँची। सिद्दी ने पहचान लिया कि अब दूरगामी तोपों के बिना गुजारा नहीं। तभी सिद्दी को याद आई राजापुर की ईस्ट इंडिया कंपनी के अंगरेज टोपी वालों की। सिद्दी जौहर ने सोचा कि इन अंगरेजों से ही बढ़िया तोपें और बारूद खरीद लेते हैं। सो, 400 घुड़सवारों के साथ उसने अपना प्रतिनिधि राजापुर भेजा। सिद्दी का प्रतिनिधि घाटी से नीचे उतरा। राजापुर की अंगरेज टाल में हेनरी रिविंग्टन से मिला। उसने दूरगामी तोपों की और बम-बारुद की माँग की (सन् 1660 मार्च के आखिर में)। यह बड़ा खरीदार अंगरेजों के पास खुद आया था। हेनरी ने देखा कि इस ग्राहक को खुश करने से पैसा तो मिलेगा ही, राजनीतिक लाभ भी होगा। लेकिन दौलोजी के जरिए शिवाजी के साथ मित्रता का करार हुआ था। ऐसे में, उन्हीं पर आग बरसाने के लिए सिद्दी जौहर को युद्ध सामग्री देने का मतलब होगा शिवाजी से बेइमानी? वह क्या कहेंगे?
काफी उधेड़बुन के बाद हेनरी ने तय किया कि वह सिद्दी जौहर को एक अत्यन्त शक्तिशाली तोप और बम-बारूद तो देगा ही, 10 अंगरेजों के साथ खुद जाकर पन्हाला पर बम भी बरसाएगा। उसे भरोसा था कि इससे सिद्दी जौहर और आदिलशाह खुश हो जाएँगे। उनके जरिए आगे कंपनी को व्यापार के लिए रियायतें मिलेंगी। हेनरी ने दूर की सोची थी। उसे यकीन था कि सिद्दी जौहर और शाहस्ता खान की ताकत शिवाजी को तबाह कर डालेगी। ऐसे में, विनाश की कगार पर खड़े राजे के साथ किए करार का पालन करने में क्या तुक था? लिहाजा, एक अत्यन्त शक्तिशाली तोप और बारूद लेकर हेनरी शाही पुड़सवारों के साथ राजापुर से चल पड़ा (दिनांक 2 अप्रैल)। रायपाटन, अनस्कुरा, येलवन मार्ग से वह पन्हालगढ़ के नीचे सिद्दी जौहर की छावनी में आया (दिनांक 10 अप्रैल 1660)। इससे सिद्दी खुश हो गया।
इसके बाद अब अंगरेजों का झंडा लगाकर हेनरी पन्हाला पर तोप दागने लगा। अंगरेजों की इस दगाबाजी से पन्हालगढ़ पर महाराज जल-भुन गए। पर अभी चुप बैठने में ही खैरियत थी। गोरे रंग के और बिल्ली-सी आँखों वाले अंगरेज, बिल्ली की तरह ही घाघ और चालाक थे। मुँह में राम और बगल में छुरी, यह इनकी रीति थी। वह हिन्दुस्तान में आए थे व्यापार करने को। पर तराजू तौलते समय भी उनकी नजर राजनीति पर रहती थी। और इस बार तो आदिलशाही सरदार खुद उनके पास आए थे। इसीलिए, डेढ़ महीने पहले शिवाजी के साथ किया हुआ सन्धि-पत्र अंगरेज बड़े आराम से भूल गए।
इधर, सिद्दी हिलाल और नेताजी पालकर मराठी फौज के साथ पन्हाला पहुँचने वाले थे। मराठी फौज घेरा तोड़ने के लिए आ रही है, यह जानकर सिद्दी जौहर उन लोगों का दाँव भी जान गया। समझ गया कि बाहरी तरफ से नेताजी की फौज घेरा तोड़ने की कोशिश करेगी। उसी समय किले से भी हमला होगा। इसी हो-हल्ले में शिवाजी महाराज भाग निकलेंगे। लिहाजा, सिद्दी जौहर ने मराठों का दाँव नाकाम करने के लिए नेताजी से मुकाबला करने अपनी आरक्षित फौज भेज दी। नेताजी और सिद्दी की फौज में जमकर लड़ाई हुई। इस बीच, पन्हाला के घेरे में जौहर ने खुद घूमकर मोर्चे लगाए।
किले पर से महाराज यह सब देख रहे थे। वे समझ रहे थे कि सिद्दी का शिकंजा और ज्यादा कस रहा है। साथ ही, बाहरी तरफ घोर संग्राम छिड़ा हुआ है। नेताजी और सिद्दी हिलाल की फौज लगातार सात महीने से दौड़ रही थी। लड़ रही थी। फिर संख्याबल भी बहुत कम था। उसने आदिलशाही फौज के घेरे को तोड़ने की जी-जान से कोशिश की। पर अपनी कोशिश में वह कामयाब न हुई। उसके पाँव पूरी तरह उखड़ गए। बची हुई फौज मैदान छोड़कर भाग खड़ी हुई। नेताजी और सिद्दी हिलाल को भी भागना पड़ा। और किले से शिवाजी के निकल जाने की उम्मीद पर पानी फिर गया।
धुआँधार बारिश का मौसम आ गया। लेकिन सिद्दी जौहर के घेरे में ढील नहीं आई। महाराज चिन्तित थे। बाहर से कोई खबर नहीं आ रही थी। महाराज जानते थे कि बारिश के बाद केंचुल उतारे हुए साँप की तरह जौहर नए जोश से मोर्चे लड़ाएगा। सो, चाहे जिस तरीके से हो बारिश के दौरान ही किले से निकल लेना चाहिए। ऐसे में, एक दिन उनके मन में एक साहसी विचार कौंधा। मंसूबा तय हुआ। महाराज के वकील गंगाधर पन्त अब जौहर से मिलने नीचे गए। आषाढ़ पौर्णिमा का दिन था वह (दिनांक 12 जुलाई 1660)। पन्त ने जौहर को महाराज का पत्र दिया। महाराज ने पत्र में लिखा था, “मुझे माफ कीजिए। मैं गुनहगार हूँ। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है। सो, अपना सर्वस्व आपके कदमों में रख देता हूँ। मैं आपसे मिलने आपकी छावनी आ रहा हूँ।”
इस पत्र में मिलने का निश्चित दिन तो नहीं लिखा था, पर यही ध्वनित हो रहा था कि “कल ही आऊँगा।” यह जानकर जौहर की बाँछें खिल गईं। ‘बिना शर्त शरणागति’। शिवाजी शरण में आएगा। बस, सिद्दी जौहर के मन में इतना ख्याल आते ही शिवाजी महाराज का काम बन गया। उन्होंने किले से रफूचक्कर होने की सारी तैयारी कर ली। रात हुई। मावला जासूस टोह लेने किले के नीचे उतरे। उन्होंने भाँप लिया कि अँधेरे में, बारिश में नहाता घेरा रोज की तरह चुस्त-दुरुस्त नहीं है। उसकी नजर बचाकर जासूसों को घेरे से भाग निकलने के लिए गुप्त राह खोजनी थी। सो, बारिश में भीगते, काँपते जासूस पेड़ों के झुरमुट में घुसकर चट्टानों के पीछे से झाँककर आदिलशाही पहरे से छिपी हुई ऐसी निरापद राह खोज रहे थे। और आखिर में उन्हें एक ऐसी राह मिल ही गई।
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।)
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ
21- शिवाजी महाराज : जब 60 साल की जिजाऊ साहब खुद मोर्चे पर निकलने काे तैयार हो गईं
20- शिवाजी महाराज : खान का कटा हुआ सिर देखकर आऊसाहब का कलेजा ठंडा हुआ
19- शिवाजी महाराज : लड़ाइयाँ ऐसे ही निष्ठावान् सरदारों, सिपाहियों के बलबूते पर जीती जाती हैं
18- शिवाजी महाराज : शिवाजी राजे ने जब अफजल खान के खून से होली खेली!
17- शिवाजी महाराज : शाही तख्त के सामने बीड़ा रखा था, दरबार चित्र की भाँति निस्तब्ध था
16- शिवाजी ‘महाराज’ : राजे को तलवार बहुत पसन्द आई, आगे इसी को उन्होंने नाम दिया ‘भवानी’
15- शिवाजी महाराज : कमजोर को कोई नहीं पूछता, सो उठो! शक्ति की उपासना करो
14- शिवाजी महाराज : बोलो “क्या चाहिए तुम्हें? तुम्हारा सुहाग या स्वराज्य?
13- शिवाजी ‘महाराज’ : “दगाबाज लोग दगा करने से पहले बहुत ज्यादा मुहब्बत जताते हैं”
12- शिवाजी ‘महाराज’ : सह्याद्रि के कन्धों पर बसे किले ललकार रहे थे, “उठो बगावत करो” और…
11- शिवाजी ‘महाराज’ : दुष्टों को सजा देने के लिए शिवाजी राजे अपनी सामर्थ्य बढ़ा रहे थे
10- शिवाजी ‘महाराज’ : आदिलशाही फौज ने पुणे को रौंद डाला था, पर अब भाग्य ने करवट ली थी
9- शिवाजी ‘महाराज’ : “करे खाने को मोहताज… कहे तुका, भगवन्! अब तो नींद से जागो”
8- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवबा ने सूरज, सूरज ने शिवबा को देखा…पता नहीं कौन चकाचौंध हुआ
7- शिवाजी ‘महाराज’ : रात के अंधियारे में शिवाजी का जन्म…. क्रान्ति हमेशा अँधेरे से अंकुरित होती है
6- शिवाजी ‘महाराज’ : मन की सनक और सुल्तान ने जिजाऊ साहब का मायका उजाड़ डाला
5- शिवाजी ‘महाराज’ : …जब एक हाथी के कारण रिश्तों में कभी न पटने वाली दरार आ गई
4- शिवाजी ‘महाराज’ : मराठाओं को ख्याल भी नहीं था कि उनकी बगावत से सल्तनतें ढह जाएँगी
3- शिवाजी ‘महाराज’ : महज पखवाड़े भर की लड़ाई और मराठों का सूरमा राजा, पठाणों का मातहत हुआ
2- शिवाजी ‘महाराज’ : आक्रान्ताओं से पहले….. दुग्धधवल चाँदनी में नहाती थी महाराष्ट्र की राज्यश्री!