सोनम वाँगचुक की पांच दिन की भूख हड़ताल अभी ख़त्म हुई है।
नीलेश द्विवेदी, भोपाल, मध्य प्रदेश से
‘थ्री इडियट’ फिल्म के फुंगशुक वाँगड़ू तो सबको याद होंगे ही। अस्ल ज़िन्दगी में इस फिल्मी किरदार का नाम है, सोनम वाँगचुक। लद्दाख में रहते हैं। बड़े शिक्षाविद्, इंजीनियर और वैज्ञानिक हैं। पर्यावरण की फिक्र करते हैं। पहाड़ों से, प्रकृति से मोहब्बत करते हैं। हमेशा अच्छी बातों के लिए लोगों को प्रेरित करते रहते हैं। इस लिहाज़ से उनको आज-कल की ज़ुबान में ‘इन्फ्ल्युएंशर’ कहा जा सकता है। यानि ऐसी शख़्सियत जो लोगों पर अपना ख़ासा असर रखती हो। उन्हें एक विशिष्ट सोच के साथ चलने काे प्रेरित और प्रोत्साहित करती हो।
यही सोनम वाँगचुक अभी एक दिन पहले तक भूख-हड़ताल पर बैठे थे। पाँच दिन का उनका यह अनशन 30 जनवरी को पूरा हुआ। पर ख़त्म नहीं हुआ है। उनका कहना है कि वे कुछ दिन इंतिज़ार करेंगे। देखेंगे कि केन्द्र सरकार उनकी बातों, उनकी माँगों पर ध्यान देती है या नहीं। कुछ करती है या नहीं। अगर नहीं सुना गया। नहीं कुछ किया गया तो अगली बार 10 दिन की भूख-हड़ताल करेंगे। फिर भी बात न बनी तो 15 दिन की, इसके बाद 20 दिन की और ऐसे यह सिलसिला तब तक चलता रहेगा, जब उनकी माँगों पर कोई फ़ैसला नहीं हो जाता।
और उनकी माँग क्या है? सिर्फ़ इतनी कि जो कुछ उत्तराखंड के टिहरी या जोशीमठ जैसी जगहों पर हुआ, वह लद्दाख में न हो। यहाँ याद दिलाते चलें कि विकास के नाम टिहरी नाम का पुराना शहर पूरी ख़त्म हो चुका है। जबकि जोशीमठ ख़त्म होने की कग़ार पर है। इसकी चौतरफ़ा चर्चा हो रही है। कुछ कार्रवाई भी हो रही है। लेकिन उससे जोशीमठ बच जाएगा, ऐसा भरोसा किसी को होता नहीं। लिहाज़ा सोनम वाँगचुक चाहते हैं कि लद्दाख में इस तरह की कोई ‘विकास-लीला’ हो, इससे पहले ही वहाँ संविधान के 244वें अनुच्छेद की छठवीं अनुसूची के प्रावधान लागू कर, उसके मुताबिक बन्दोबस्त कर दिए जाने चाहिए।
अब सवाल ये कि छठवीं अनुसूची में है क्या?
जैसा कि पहले ही उल्लेख किया, यह अनुसूची संविधान के अनुच्छेद-244 (2) का हिस्सा है। इसके तहत, कुछ विशिष्ट इलाकों को संरक्षित मान लिया जाता है। वहाँ स्वायत्तशासी परिषदें बना दी जाती हैं। ये परिषदें उस इलाके की ज़मीन, जंगल, जल, पर्यावरण, परम्परा, संस्कृति, भाषा, आदि इस क़िस्म के तमाम मसलों पर ख़ुद फ़ैसले करती हैं। उनसे सम्बन्धित नियम-क़ाइदे, कानून बनाती हैं। उन्हें लागू करती हैं। ऐसे मसलों पर इन इलाक़ों में अगर केन्द्र या राज्य सरकार को भी कुछ करना है, तो वे सम्बन्धित स्वायत्तशासी परिषदों से पूछकर, उनकी सहमति से ही वहाँ कुछ कर पाती हैं।
देश में इस छठवीं-अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिज़ोरम के कुछ इलाक़ों में लागू हैं। और सोनम वाँगचुक चाहते हैं कि लद्दाख के भी क्षेत्र-विशेष में यह लागू किया जाए। ताकि उन्हें ‘विकास-लीला’ से बचाया जा सके। भूख-हड़ताल का यह पहला चरण इसी मक़सद से प्रधानमंत्री का ध्यान अपनी माँगों की तरफ़ खींचने के लिए था। सो, अब देखना होगा कि आगे क्या होता है। लेकिन मसला जितना ‘रोचक-सोचक’ है, उतना ही हमारे स्थानीय और स्थानीयता के सरोकारों से जुड़ा हुआ है। है न?
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