अन्य सरकारी कर्मचारियों की तुलना में शिक्षक सबसे निरीह क्यों लगता है?

अजुज राज पाठक, दिल्ली

शिक्षक, जिसके बारे में कहा जाता है कि समाज उसे बहुत सम्मान की दृष्टि से देखता है। लेकिन मुझे लगता है शिक्षक जब तक सिर्फ शिक्षण-कार्य में लगा था, तब तक ही समाज उसे सम्मान की दृष्टि से देखता था। क्योंकि अब तो वह अन्य सरकारी कर्मचारियों जैसा ही एक कर्मचारी मात्र है। बल्कि ऐसा कहें कि अन्य कर्मचारियों की तुलना में वह सबसे निरीह सरकारी कर्मचारी है, तो भी अनुचित नहीं होगा। शिक्षक के निरीह होने में बहुत कारण हैं। इनमें पहला तो यही कि कार्य दूसरे का और जबावदेही शिक्षक की। ऐसा शायद ही किसी पेशे में होता हो। लेकिन शिक्षक के पेशे में ऐसा है।

मसलन- विद्यार्थी पढ़े न पढ़े, लेकिन परिणाम शिक्षक का माना जाता है। विद्यार्थी का परिणाम खराब होने का एकमात्र ज़िम्मेदार शिक्षक को माना जाता है। विद्यार्थी के कपड़े गन्दे तो शिक्षक ज़िम्मेदार। विद्यार्थी पुस्तक-पुस्तिकाएँ लेकर न आए, तो शिक्षक की ज़िम्मेदारी। उपस्थित नहीं, तो शिक्षक की ज़िम्मेदारी। वह खाना लेकर न आए, तो शिक्षक की ज़िम्मेदार। उसके बोर्ड के फॉर्म भरने की ज़िम्मेदारी शिक्षक की। छात्रवृत्ति बाँटना, आधार बनवाना, बैंक खाता खोलना, फीस ज़मा कराने की ज़िम्मेदारी शिक्षक की। शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड रखने की ज़िम्मेदारी शिक्षक की। पोषित-कुपोषित रिकॉर्ड रखने की ज़िम्मेदारी शिक्षक की। सद्व्यवहार निर्मित करने की ज़िम्मेदारी शिक्षक की। साथ ही विद्यार्थी को किसी भी तरह का मानसिक शारीरिक कष्ट न देने की ज़िम्मेदारी भी शिक्षक की।

अगर विद्यार्थी ने कह दिया कि किसी शिक्षक ने उसे कष्ट दिया है तो दंडित होने के अलावा कोई उपाय नहीं। तिस पर मामला यहाँ भी नहीं रुकता। ऐसे अन्य अनगिनत कार्यों की ज़िम्मेदारी शिक्षक की ही होती है। निश्चित रूप से शिक्षक विद्यार्थियों से जुड़ी ज़िम्मेदारियों को निभाता है। चाहे मन से या बिना मन के। इन सब से अलग शिक्षणोत्तर कार्य होते हैं, जिनमें विभागीय और विभागेत्तर कार्य करने होते हैं। तस्दीक के लिए कभी सरकारी विद्यालयों में जाइए। देखिए कि प्रबन्धन, व्यवस्थापक, अधिकारी, अभिभावक और विद्यार्थी के सामने शिक्षक की दशा कैसी है! 

मेरा सवाल है कि शिक्षा विभाग के अलावा किस विभाग में इस तरह से अपने वास्तविक कार्य से अलग कार्य करने की ज़वाबदेही सम्बन्धित कर्मचारियों पर निश्चित की गई है? उल्टा उनके अपने कार्य में लेट-लतीफ़ी के लिए भी किसी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाता। उदाहरण के तौर पर एक न्यायाधीश, जिसका काम निर्णय देना है। लेकिन वास्तव में होता क्या है? अदालती मामले पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते रहते हैं। पीड़ित को न्याय नहीं मिलता। फिर भी इसके लिए कभी किसी  न्यायाधीश को ज़िम्मेदार ठहराया गया हो तो बताइए? बल्कि वे तो समाज के सबसे सम्मानित वर्ग में बने रहते हैं। क्यों? क्योंकि वह सामर्थ्यवान हैं। ऐसे ही सुरक्षाकर्मी या अन्य कर्मचारियों के बारे में समझ सकते हैं। लेकिन शिक्षक के साथ ऐसा नहीं होता क्योंकि वह उन सभी के जितना सामर्थ्यवान नहीं है। आज न्याय व्यवस्था में कौन न्याय पा रहा है? सुरक्षाकर्मी किस तरह सुरक्षा कर रहे हैं? लेकिन आपत्तियाँ केवल शिक्षाकर्मी से हैं। जबकि उनमें से अधिकांश अपने कर्तव्यों का पालन करने में प्रयासरत रहते हैं।

जिस समाज से शिक्षक उसी समाज से हम हैं। क्या उस समाज के लोगों ने शिक्षकों को अन्य पेशों में लगे लोगों के मुकाबले भ्रष्ट पाया है? यह विचार करना चाहिए। कुछ शिक्षक अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी भले न निभाते हों लेकिन अधिकांश आज भी शिक्षक बनने से पूर्व नैतिक और सद्भाव पूर्व मन से कार्य करने के उद्देश्य से आते हैं। चाहे बाद में भले व्यवस्था के चक्र में पिसकर मात्र शिक्षाकर्मी बने रह जाते हों।

बावज़ूद अगर शिक्षकों से अपेक्षाएँ हैं, तो पहले उनकी समस्याओं पर विचार हो। लोग अभिभावक के तौर पर अगर अपने बच्चे के शिक्षक के प्रति दुर्भाव रखते रहेंगे और शिक्षक के पेशे को अपमानित, प्रताड़ित करते रहेंगे तो निश्चित ही शिक्षक भी शिक्षक न रहकर केवल शिक्षाकर्मी बनने की राह पर चल देगा। यह स्थिति शिक्षा और बच्चे के हित में नहीं होगी। मैं पूछता हूँ, कितने शिक्षक भ्रष्टाचार में लिप्त मिलते हैं? अधिकांशत: उनका बस एक ही अपराध होता है कि उन्होंने बच्चे को शारीरिक प्रताड़ना दे दी। लेकिन यह ‘तथाकथित अपराध’ भी तो बच्चे के हित को ध्यान में रखकर ही किया जाता है! अपने सुख के लिए तो नहीं? 

याद रखिए, सभी शिक्षक भ्रष्ट और अपने कार्य के प्रति ज़वाबदेह न होते, तो निश्चित ही हमारा समाज अशिक्षित होता। इसलिए ज़रूरी हे कि शिक्षक और शिक्षा व्यवस्था की समस्याओं पर सकारात्मक माहौल में कोई बेहतर समाधान निकाला जाए। शिक्षक को केवल अपराधी ही मानकर उलाहने देते रहेंगे तो न शिक्षक, न शिक्षा और न ही हमारे बच्चों पर कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। 

—-

(नोट : अनुज दिल्ली में संस्कृत शिक्षक हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापकों में शामिल हैं। अच्छा लिखते हैं। इससे पहले डायरी पर ही ‘भारतीय दर्शन’ और ‘मृच्छकटिकम्’ जैसी श्रृंखलाओं के जरिए अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। समय-समय पर दूसरे विषयों पर समृद्ध लेख लिखते रहते हैं।)

सोशल मीडिया पर शेयर करें
From Visitor

Share
Published by
From Visitor

Recent Posts

हे राम… अब नैवेद्य और प्रसाद भी दूषित!

भला हो कि तिरुपति देवस्थानम् ट्रस्ट का। यदि इस देवस्थान के लब्धप्रतिष्ठित लड्डु प्रसाद में… Read More

6 hours ago

तिरुपति बालाजी के लड्‌डू ‘प्रसाद में माँसाहार’, बात सच हो या नहीं चिन्ताजनक बहुत है!

यह जानकारी गुरुवार, 19 सितम्बर को आरोप की शक़्ल में सामने आई कि तिरुपति बालाजी… Read More

1 day ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!

बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More

2 days ago

नमो-भारत : स्पेन से आई ट्रेन हिन्दुस्तान में ‘गुम हो गई, या उसने यहाँ सूरत बदल’ ली?

एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More

3 days ago

मतदान से पहले सावधान, ‘मुफ़्तख़ोर सियासत’ हिमाचल, पंजाब को संकट में डाल चुकी है!

देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More

4 days ago

तो जी के क्या करेंगे… इसीलिए हम आत्महत्या रोकने वाली ‘टूलकिट’ बना रहे हैं!

तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More

6 days ago