water bell

कई राज्यों के स्कूलों में पानी पीने के लिए घंटियाँ क्यों बज रही हैं?

टीम डायरी

अभी तीन-चार दिन पहले की ही सूचना है। पंजाब के फिरोजपुर से। यहाँ सरकारी स्कूलों में बच्चों को पानी पीने की याद दिलाने के लिए घंटी बजाने का सिलसिला शुरू किया गया है। घंटियाँ तीन बार बजाई जा रही हैं। पहले सुबह 10.35 पर। फिर 12.00 बजे। इसके बाद तीसरी दिन में 2.00 बजे। इन घंटियों के बजते ही बच्चे अपनी-अपनी पानी की बोतल निकालकर पानी पीते हैं। इस दौरान उनके शिक्षक उन पर नज़दीकी नज़र रखते हैं। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी बच्चा पानी पिए बगैर रह न जाए। पंजाब के स्कूल शिक्षा विभाग के निदेशक डॉक्टर एसएन रुद्र के मुताबिक, “गर्मियों के दौरान बच्चे पानी की कमी के कारण किसी तरह के संक्रमण या पेट, लिवर सम्बन्धी बीमारी के शिकार न हो जाएँ, इसलिए यह क़दम उठाया गया है।” 

वैसे, इस तरह का क़दम उठाने वाला पंजाब कोई पहला राज्य नहीं है। इस बन्दोबस्त की शुरुआत साल 2017 में केरल से हुई थी। वहाँ एक जगह है इरिन्जलकुडा। वहीं के अपर प्राइमरी (माध्यमिक) स्कूल में शारीरिक शिक्षा (फिजिकल एजुकेशन) विषय के शिक्षक जेनिल जॉन ने यह शुरुआत की थी। जॉन राष्ट्रीय स्तर के हैंडबॉल खिलाड़ी रहे हैं। इसी दौरान उनकी नौकरी लग गई। वहाँ उन्होंने देखा कि अक्सर स्कूली बच्चे बुखार, संक्रमण आदि की चपेट में आ जाते हैं। सो, उन्होंने इसका मूल कारण समझा। तब उनके ध्यान में आया कि बच्चे बहुत-बहुत देर तक पानी नहीं पीते। इससे उनके शरीर में पानी की कमी हो जाती है। यह संक्रमण, आदि का कारण बनती है।  

लिहाज़ा जॉन ने अपने उच्चाधिकारियों से बात की और घंटी बजा-बजाकर बच्चों को पानी पीने की याद दिलाने का इन्तिज़ाम कराया। जल्दी ही यह मामला सुर्खि़यों में आ गया। सो, फिर केरल के अन्य स्कूलों में भी यह बन्दोबस्त हुआ। इसके बाद वहाँ से होते हुए कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों के स्कूलों में भी यही तरीक़ा अपनाया गया। और अब हाल ही में पंजाब के फिरोजपुर में, जिसकी ऊपर जानकारी दी गई है। 

निश्चित रूप से प्रयास अच्छा है। इसका स्वागत होना चाहिए। लेकिन साथ में विचाार भी किया जाना चाहिए कि आख़िर स्कूलों में बच्चों के हित के लिए यह क़दम उठाने की ज़रूरत आई ही क्यों? क्या घरों में उन्हें लगातार पानी पीते रहने की आदत नहीं डाली जाती? या एयरकंडीशनर, फ्रिज आदि के लगातार और ज़्यादा इस्तेमाल से बच्चों में भी पानी का उपभोग घटता जा रहा है? या फिर स्कूलों में टॉयलेट वग़ैरा की व्यवस्था ख़राब है या सुविधा नहीं ही है? जिसकी वजह से बच्चे पानी पीने से बचते हैं, ताकि उन्हें टॉयलेट न जाना पड़े?

कारण कुछ भी हो सकते हैं। लेकिन उनका समय रहते पता लगाना ज़रूरी है। उनका निदान भी आवश्यक है। नहीं तो पानी पीने की याद दिलाने वाली यह घंटी, ‘ख़तरे की घंटी’ भी बन सकती है।

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