चरित्र जब पवित्र है, तो क्यूँ है ये दशा तेरी?

टीम डायरी, 23/5/2020

साल 2016 में एक फिल्म आई थी, ‘पिंक’। समाज में महिलाओं की व्यथा, उनकी पीड़ा, उनके संघर्ष को दिखाती एक कहानी। इसी फिल्म में एक कविता थी, ‘तू चल, तेरे वज़ूद की समय को भी तलाश है’। इन ख़ूबसूरत लब्ज़ों को अपनी कलम से कागज़ पर उतारा था, गीतकार तनवीर ग़ाज़ी ने। जबकि आवाज़ दी थी, हिन्दी सिनेमा के सबसे बड़े सितारे की हैसियत पा चुके अमिताभ बच्चन ने। 

इस कविता, इस गीत के बोल और अमिताभ की आवाज़, आज भी जस की तस गूँज रही है। बल्कि इन्टरनेट की दिनों-दिन बढ़ी पहुँच ने बीते पाँच सालों में इसे घर-घर तक पहुँचाया है। इसे सुनकर, पढ़कर तमाम महिलाएँ ऊर्जा हासिल करती हैं। तमाम रचनाधर्मी महिला किरदार इसमें अपनी कला साधना के लिए प्रेरणा का साधन ढूँढ लेते हैं। साथ ही दूसरों को प्रेरित, प्रोत्साहित करने का ज़रिया भी।

ऐसी रचनाशील किरदारों में एक नाम है, भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना सुकन्या कुमार का। उन्होंने इस कविता पर भावपूर्ण नृत्याभिनय किया। और उनकी इस रचनाशीलता ने भोपाल, मध्य प्रदेश की वैष्णवी द्विवेदी को प्रेरित किया। लिहाज़ा उन्होंने भी अपने नृत्याभिनय में इसे ढालने की कोशिश की। इसे #अपनीडिजिटलडायरी को भेजा। डायरी ने इसे अपने सरोकारों की वज़ह से इसे दर्ज़ भी किया।

वीडियो के साथ गीत के बोल पढ़ने की इच्छा होना बहुत लाज़िमी है। लिहाज़ा वे यहाँ नीचे दिए जा रहे हैं…   

तू ख़ुद की खोज में निकल
तू किसलिए हताश है
तू चल, तेरे वज़ूद की
समय को भी तलाश है
समय को भी तलाश है 

जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ
समझ न इन को वस्त्र तू
ये बेड़ियाँ पिघाल के
बना ले इनको शस्त्र तू
बना ले इनकाे शस्त्र तू

चरित्र जब पवित्र है
तो क्यूँ है ये दशा तेरी
ये पापियों को हक़ नहीं
कि लें परीक्षा तेरी 
कि लें परीक्षा तेरी

जला के भस्म कर उसे
जो क्रूरता का जाल है
तू आरती की लौ नहीं 
तू क्रोध की मशाल है
तू क्रोध की मशाल है 

चूनर उड़ा के ध्वज बना
गगन भी कँपकँपाएगा 
अगर तेरी चूनर गिरी
तो एक भूकम्प आएगा
तो एक भूकम्प आएगा 

तू ख़ुद की खोज में निकल
तू किसलिए हताश है
तू चल, तेरे वज़ूद की
समय को भी तलाश है
समय को भी तलाश है

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(नोट : इस वीडियो, पोस्ट का उद्देश्य किसी कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं है। बल्कि युवा नृत्यांगना (वैष्णवी) की प्रतिभा को प्रोत्साहन और घरेलू हिंसा, सामाजिक उत्पीड़न, उपेक्षा की शिकार सामान्य महिलाओं को उनकी ऊर्जा, उनकी क्षमता, उनकी योग्यता आदि को मान्यता देने में सह-आहुति का भाव मात्र है। )

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