प्रतीकात्मक तस्वीर
नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश
साल 1978 में फिल्म आई थी ‘गमन’। उसमें मशहूर गायक सुरेश वाडकर की आवाज़ में ‘शहरयार’ साहब की लिखी हुई ग़ज़ल थी। बोल थे, “सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है। इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है।” ये लफ़्ज़ अपने दौर की जितनी सच्चाई बयाँ करते रहे होंगे, उससे ज़्यादा आज के हमारे समय की हक़ीक़त बताते हैं। इसकी पुष्टि इसी साल आई एक अध्ययन रिपोर्ट से भी हुई है।
इस रिपोर्ट का नाम है, ‘ग्लोबल टेलेन्ट ट्रेन्ड्स-2024’। जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है, यह रिपोर्ट दुनियाभर के प्रतिभावान् लोगों के बारे में है। दूसरे शब्दों में कहें तो कामकाजी लोगों के बारे में है। एक अमेरिकी कम्पनी है, ‘मर्सर’। उसी ने यह जारी की है। ‘मर्सर’ दुनियाभर की तमाम कम्पनियों को इस काम के लिए अपनी सेवा देती है कि वे अपने व्यवसाय और कर्मचारियों की बेहतरी के लिए क्या कर सकती हैं।
हालाँकि इस रिपोर्ट के कुछ प्रमुख निष्कर्षों पर ग़ोर करें, इससे पहले दो-तीन हालिया सुर्ख़ियों पर नज़र डालना बेहतर होगा। पहली दो दिन पहले की घटना। नागपुर, महाराष्ट्र में बहुराष्ट्रीय कम्पनी एचसीएल टेक्नोलॉजीज़ में काम करने वाले 40 वर्षीय नितिन एडविन माइकल शाम को दफ़्तर में अचानक गिर पड़े। उनको अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था।
ऐसी ही घटना इसी 24 सितम्बर को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुई। वहाँ एचडीएफसी बैंक में काम करने वाली सदफ़ फ़ातिमा सहयोगियों के साथ खाना खाने के बाद जब काम पर लौट रही थीं, ताे वे गिर पड़ीं। उन्हें भी आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। दिल का दौरा पड़ने की वज़ा से उनका निधन हो चुका था। उनकी उम्र 45 साल के आस-पास बताई गई है।
अलबत्ता, इस तरह की ये दो घटनाएँ कोई अकेली नहीं हैं। दुनियाभर में इसी तरह की घटनाएँ रोज़ इफ़रात होती रहती हैं। क्यों? इसका ज़वाब उस रिपोर्ट में है, जिसका ऊपर ज़िक्र किया गया। यह रिपोर्ट बताती है कि दुनियाभर में लगभग 82% कामकाज़ी लोग ‘बर्नआउट’ के शिकार हो रहे हैं। अब ये ‘बर्नआउट’ क्या है? सामान्य भाषा में इसका उत्तर समझें तो जैसे मोबाइल फोन की बैटरी पूरी ख़त्म हो जाती है न, यह उस तरह की अवस्था है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि रॉकेट का इंजन बन्द हो जाने जैसी मनोदशा।
अर्थात् ‘बर्नआउट’ एक मनोवैज्ञानिक समस्या है। इसमें व्यक्ति मानसिक रूप से बुरी तरह हताश हो जाता है। थका हुआ महसूस करता है। इससे वह हतोत्साहित रहता है। तनाव में रहता है। कई बार इस स्थिति से बचने के लिए वह ज़्यादा से ज़्यादा काम करने की क़ोशिश करता है। ताकि काम में डूबने से वह इन मानसिक व्याधियों से बच जाए। मगर वह बच नहीं पाता। अक़्सर दुनिया से ही विदा हाे जाता है।
और इस ‘बर्नआउट’ का कारण जानते हैं, क्या है? ज़वाब के लिए किसी अध्ययन, अनुसन्धान की ज़रूरत नहीं हे। बस, आस-पास नज़र दौड़ाएँ और थोड़ा सामान्य ज्ञान मज़बूत करें। उन लोगों के बारे में जानने की क़ोशिश करें, जिन लोगों ने अपने शौक़ को अपना काम, अपना पेशा बनाया हुआ है। जैसे- गीतकार-संगीतकार, चित्रकार, साहित्यकार, खिलाड़ी, या अपनी ख़ुशी से खेती-बाड़ी अथवा अपना व्यवसाय करने वाले लोग। इस तरह के लोगों के काम के घंटों के साथ-साथ उन पर लगातार पड़ने वाले दबाव के बारे में जानिए।
इस थोड़ी सी क़वायद से हम घर बैठे-बैठे ही जान-समझ सकते हैं कि वे तमाम लोग जिन्होंने अपने शौक़ को पेशा बना रखा है, वे निजी कम्पनियों में काम करने वाले किन्हीं पेशेवरों से ज़्यादा काम करते हैं। उनके काम के घंटे तुलनात्मक रूप से ज़्यादा ही होते हैं। इतना ही नहीं, उन पर दबाव भी अधिक होता है। इसमें सबसे बड़ा दबाव तो यही होता है कि उन्हें वेतनभोगियों की तरह निश्चित समय पर तयशुदा वेतन नहीं मिलता। इसलिए उन्हें हमेशा अपनी ज़रूरतों को अपनी वित्तीय उपलब्धता के हिसाब से आगे-पीछे करना होता है। सुविधाभोगी जीवनशैली और बाज़ारवाद के दौर में यही सबसे बड़ा दबाव है, सभी इस बात को जानते हैं। फिर भी…
…फिर भी इस तरह के लोगों के बीच से ‘बर्नआउट’ या काम के बोझ में दबकर मर जाने जैसी घटनाएँ अमूमन, नहीं ही आती। बल्कि ये अपने काम, अपनी अतिव्यवस्तता का भी आनन्द ही उठाते रहते हैं। क्यों? क्योंकि उनका काम उनका शौक़ होता है। उनका आनन्द, उनकी ख़ुशी होती है। इसीलिए वे उसके कारण मिलने वाली शारीरिक थकान के बावज़ूद मानसिक तौर पर नहीं थकते। जबकि ऊपर जिन 82% कामकाज़ी लोगों का उल्लेख किया गया है, वे मानसिक रूप से थक जाते हैं क्योंकि उनका काम उनके दिल पर बोझ होता है।
बस, यही ग़ौर करने की बात है। अभी 29 सितम्बर को ‘विश्व ह्रदय दिवस’ मनाने की सालाना औपचारिकताएँ भी हो गईं। लेकिन कितना बेहतर होता अगर इस मौक़े पर लोग अपने काम और अपने दिल से जुड़े इस छाेटे से तथ्य पर ग़ौर कर लेते! कई किशोर, युवा, असमय मौत के मुँह में जाने से बच जाते!!
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