“भाई! सोच रहा हूँ, इस्तीफा देकर कहीं सब्जी का ठेला लगा हूँ।” “अरे ऐसा क्या हो गया?” मैंने पूछा। मित्र ने बताया, “बच्चे पढ़ते नहीं।…
View More “जब से शिक्षक की नौकरी में लगा हूँ, रोज मानसिक प्रताड़ना झेल रहा हूँ!”Author: From Visitor
अन्य सरकारी कर्मचारियों की तुलना में शिक्षक सबसे निरीह क्यों लगता है?
शिक्षक, जिसके बारे में कहा जाता है कि समाज उसे बहुत सम्मान की दृष्टि से देखता है। लेकिन मुझे लगता है शिक्षक जब तक सिर्फ…
View More अन्य सरकारी कर्मचारियों की तुलना में शिक्षक सबसे निरीह क्यों लगता है?मत लादिए अपनी इच्छाएँ, अपनी कुंठाएँ, अपनी आशाएँ, अपने सपने किसी पर!
आत्महत्या के कारणों पर जब भी चर्चा होती है, तब हम बाहरी कारण गिनने-गिनाने लग जाते हैं। करियर, वित्तीय परेशानी, सामाजिक हैसियत, आदि। इनके बाद…
View More मत लादिए अपनी इच्छाएँ, अपनी कुंठाएँ, अपनी आशाएँ, अपने सपने किसी पर!उत्तराखंड में 10 दिन : एक सपने का सच होना और एक वास्तविकता का दर्शन!
एक सपना सच हो गया!! मेरी बीते सात साल से इच्छा थी कि मैं श्री केदारनाथजी के दर्शन करूँ। लेकिन काम की अधिकता, समय की…
View More उत्तराखंड में 10 दिन : एक सपने का सच होना और एक वास्तविकता का दर्शन!क्या ये सही समय नहीं कि हम परम्परागत संधारणीय जीवनशैली की ओर लौटें?
भारत हमेशा से संधारणीय या टिकाऊ तरीक़ों से जीवनशैली संचालित करता रहा है। लेकिन दुर्भाग्य से पिछले कुछ सौ वर्षों में हमने अपनी अच्छी आदतों…
View More क्या ये सही समय नहीं कि हम परम्परागत संधारणीय जीवनशैली की ओर लौटें?अपना आउटलेट खुला रखिए, ताकि बाँध फूटने से बचा रहे
लाखों जीवन लेने वाले जर्मन तानाशाह हिटलर ने आख़िर आत्महत्या की! सुन्दर विचार देने वाले साने गुरुजी (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी) भी आत्महत्या कर लेते हैं। …
View More अपना आउटलेट खुला रखिए, ताकि बाँध फूटने से बचा रहेकॉलेज की डिग्री नौकरी दिला पाए या नहीं, नज़रिया ज़रूर दिला सकता है
कॉलेज की डिग्री नौकरी दिला पाए या नहीं, नज़रिया ज़रूर दिला सकता है। हम ऐसा सिर्फ़ कह नहीं रहे हैं। हमने यह करके भी दिखाया…
View More कॉलेज की डिग्री नौकरी दिला पाए या नहीं, नज़रिया ज़रूर दिला सकता हैसुनिए और पढ़िए…, एक कविता प्रेम की : ग़र कहीं नहीं मिली मैं तो मिलूँगी वहीं
एक कविता अपनी छोड़ आई हूँ मैं उसके घर,चार नज़रों में जबदो नाकों जितनी दूरी थी, ग़र कहीं नहीं मिली मैं तो मिलूँगी वहींजहाँ पहुँचने…
View More सुनिए और पढ़िए…, एक कविता प्रेम की : ग़र कहीं नहीं मिली मैं तो मिलूँगी वहींफादर्स-डे पर एक कविता : हे कृषक पिता ! तुझे कोटिशः नमन
जेठ की दोपहरी में ईख खोदना।तवे सी तप्त जमीं पर हल जोतना। गोबर की गन्धज़मी की सुगन्धमहकते आम्रवृक्ष की छाया मेंक्षण भर विश्राम करना। पैरों…
View More फादर्स-डे पर एक कविता : हे कृषक पिता ! तुझे कोटिशः नमन‘पर्यावरण दिवस’ के नाम पर इतनी भीषण गर्मी में पेड़ लगाने का औचित्य क्या?
हाल में हुए ‘पर्यावरण दिवस’ पर जोर-शोर से ‘पेड़ लगाओ अभियान’ चला। सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर भी। लेकिन मुझे समझ नहीं आया कि इतनी…
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