Mahila, Women

महिला दिवस जैसे मौकों पर होने वाले स्त्री-विमर्श में भाषा को नपुंसक क्यों करना?

आजकल भाषा में स्त्री- विमर्श जोर पकड़ रहा है। ऐसा नहीं कि यह कोई नया विषय है। भाषा में लैंगिक भेद सम्भवत: प्रायोजित नहीं अपितु…

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K. Annamalai

भारत 2047 में अमेरिका से कहेगा- सुनो दोस्त, अब हम बराबर! पर कैसे? ज़वाब इधर…

भारत 2047 में अमेरिका से आँख में आँख मिलाकर कहेगा, “सुनो दोस्त, अब हम दोनों बराबर हैं।” मतलब भारत और अमेरिका दुनिया की दो सबसे…

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Sanskrit Grammer

‘संस्कृत की संस्कृति’ : उदाहरण रूप वैदिक शब्दों की रूढ़ संज्ञा को क्या कहते हैं?

चारों वेदों के उपलब्ध सबसे प्राचीन भाष्यकार आचार्य सायण अपनी ऋग्वेद-भाष्य-भूमिका में निरूक्त का लक्षण देते हुए लिखते हैं, “अर्थ ज्ञान के लिए स्वतंत्र रूप…

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criticising

जब भी कोई अच्छा कार्य करोगे, 90% लोग तुम्हारे खिलाफ़ होंगे

गर्मी की छुट्टियाँ थीं और मैं उस दिन आराम से घर के कामकाज में व्यस्त थी। तभी किसी अज्ञात नम्बर से फोन आया। उधर से…

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Positivity

अच्छी चीज़ों का प्रसार कीजिए, नहीं तो कोई ख़राब चीज़ें फैलाएगा

ज़िन्दगी में हम जिन चीज़ों को मूल्यवान समझते हैं, या जिनकी क़द्र करते हैं, उसे हम सबसे साझा भी करते हैं। अगर हम पान का…

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Nirukt-Sanskrit

‘संस्कृत की संस्कृति’ : सुनना बड़ा महत्त्वपूर्ण है, सुनेंगे नहीं तो बोलेंगे कैसे?

सुनना बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य है। सुनेंगे नहीं तो बोलेंगे कैसे? इस लिहाज से कभी सोचा है क्या कि ‘मूक-बधिर’ शब्द युग्म शब्द क्यों है? दरअस्ल,…

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shikayat

सुनिएगा, एक अच्छी रचना…: कैसे करूँ शिक़वा या गुज़ारिश तुमसे

जब मैंने तुमसे सिर्फ तुम्हारा समर्पण माँगा,सच कहूं तो केवल अपना सुख ही चाहा था।जो मैं सच्चा रिझवार हो जाता प्रियवर,अगन में तुम्हारी जलकर फ़ना…

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Nato

दड़बा-ए-नाटो में घुसने को तैयार ‘बागड़ बिल्ले’ के गले में घंटी कौन बाँधेगा?

शनिवार 10 फरवरी को दक्षिण कैरोलिना की एक चुनाव रैली में अमेरिका के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने एक वक्तव्य दिया। लब्बो-लुआब यह था कि…

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marriage

‘संस्कृत की संस्कृति’ : मैं ऐसे व्यक्ति की पत्नी कैसे हो सकती हूँ?

वेद के छह अङ्गों में एक अङ्ग व्याकरण है, जिसके विषय में सामान्य तौर पर हमने पूर्व की कड़ियों (नीचे उनकी लिंक्स दी गई हैं,…

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Mechanical life

यांत्रिक हो रही ज़िन्दगी का मक़ाम क्या होगा?

जिस रफ़्तार से हम अपनी ज़िन्दगी में मशीन-रसायनों का समावेश कर रहे हैं, हमारे शहर उसी अनुपात में मानवीय चेतना और भावना विहीन होते जा…

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