मेरे प्यारे गाँव मैने पहले भी तुम्हें लिखा था कि तुम रूह में धँसी हुई कील हो। मेरी आत्मा का हाहाकार हो। प्यारे, तुम्हारी याद…
View More मेरे प्यारे गाँव, शहर की सड़क के पिघलते डामर से चिपकी चली आई तुम्हारी यादAuthor: From Visitor
‘हाउस अरेस्ट’ : समानता की इच्छा ने उसे विकृत कर दिया है और उसको पता भी नहीं!
व्यक्ति के सन्दर्भ में विचार और व्यवहार के स्तर पर समानता की सोच स्वयं में अधूरी है। व्यावहारिक तौर पर व्यक्तियों में समानता सम्भव नहीं।…
View More ‘हाउस अरेस्ट’ : समानता की इच्छा ने उसे विकृत कर दिया है और उसको पता भी नहीं!प्रशिक्षित लोग नहीं मिल रहे, इसलिए व्यापार बन्द करने की सोचना कहाँ की अक्लमन्दी है?
इन्दौर में मेरे एक मित्र हैं। व्यवसायी हैं। लेकिन वह अपना व्यवसाय बन्द करना चाहते हैं। क्यों? इसलिए उन्हें अपने व्यवसाय के लिए कुशल और…
View More प्रशिक्षित लोग नहीं मिल रहे, इसलिए व्यापार बन्द करने की सोचना कहाँ की अक्लमन्दी है?देखिए, सही हाथों से सही पतों तक पहुँच रही हैं चिट्ठियाँ!
“आपकी चिट्ठी पढ़कर मुझे वे गाँव-क़स्बे याद आ गए, जिनमें मेरा बचपन बीता” प्रिय दीपक “आपके गाँव की चिट्ठी पर आपका ज़वाब पढ़ा। इस ज़वाब…
View More देखिए, सही हाथों से सही पतों तक पहुँच रही हैं चिट्ठियाँ!मेरे प्रिय अभिनेताओ, मैं जानता हूँ, कुछ चिट्ठियों के ज़वाब नहीं आते, पर ये लिखी जाती रहेंगी!
मेरे प्रिय अभिनेताओ इरफान खान और ऋषि कपूर साहब! मैं आप दोनों से कभी नहीं मिला, लेकिन यूँ लगता ही नहीं कि आपसे कोई वास्ता…
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पहलगाम में जब 22 अप्रैल को आतंकी हमला हुआ, तब मेरी माँ और बहन वहीं थीं। जहाँ पर्यटकों को मारा गया, वहाँ से महज़ एक…
View More पहलगाम आतंकी हमला : मेरी माँ-बहन बच गईं, लेकिन मैं शायद आतंकियों के सामने होता!सुनो सखी…, मैं अब मरना चाहता हूँ, मुझे तुम्हारे प्रेम से मुक्ति चाहिए
एक ‘आवारा’ ख़त, छूट गई या छोड़ गई प्रियतमा के नाम! सुनो सखी मैं इतने वर्षों बाद तुम्हें कुछ लिख रहा हूँ। शायद इसे पढ़ते…
View More सुनो सखी…, मैं अब मरना चाहता हूँ, मुझे तुम्हारे प्रेम से मुक्ति चाहिएवास्तव में पहलगाम आतंकी हमले का असल जिम्मेदार है कौन?
पहलगाम की खूबसूरत वादियों के नजारे देखने आए यात्रियों पर नृशंसता से गोलीबारी कर कत्लेआम किया गया है। इसमें 26 लोगों को जानें गईं। लेकिन…
View More वास्तव में पहलगाम आतंकी हमले का असल जिम्मेदार है कौन?चिट्ठी, गुमशुदा भाई के नाम : यार, तुम आ क्यों नहीं जाते, कभी-किसी गली-कूचे से निकलकर?
प्रिय दादा मेरे भाई तुम्हें घर छोड़कर गए लगभग तीन दशक गुजर गए हैं, लेकिन तुम्हारी याद के छींटे कभी- कभी सुख-चैन में तेजाब की…
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उसने पूछा- क्या धर्म है तुम्हारा?मेरे मुँह से निकला- राम-राम और गोली चल गई।मैं मर चुका हूँ अब, मगर इसका मतलब ये नहीं कि तुम…
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