bediyan

उड़ान भरने का वक्त आ गया है, अब हमें निकलना होगा समाज की हथकड़ियाँ तोड़कर

क्या इंसान का वजूद महज़ एक पुतले जितना है? जो दुनिया के बनाए कानून और रस्मों का आँखें बन्द कर पालन करे, बस? आखिर क्यों…

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Helping Hands

दूसरे का साथ देने से ही कर्म हमारा साथ देंगे

बचपन से कोई भी अच्छा या बुरा काम करने पर हमने अपने बड़ों से अक्सर सुना है कि इंसान जैसा बोता है, वेसा ही काटता…

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Dipression

सुनें उन बच्चों को, जो शान्त होते जाते हैं… कहें उनसे, कि हम हैं तुम्हारे साथ

हम एक ऐसे दौर में ज़िन्दगी गुजर रहे हैं, जहाँ हमारे करीबियों के पास भी हमारे लिए वक्त नहीं है। या कह लीजिए कि वे…

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mrachkatikam-7

मृच्छकटिकम्-7 : दूसरों का उपकार करना ही सज्जनों का धन है

“आर्य चारुदत्त का नाम लेने से मेरी इतनी सेवा हो रही है। धन्य हो आर्य चारुदत्त, धरती पर मात्र आप जीवित हैं। बाकी तो बस…

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mrachkatikam-6

मृच्छकटिकम्-6 : जो मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार बोझ उठाता है, वह कहीं नहीं गिरता

‘माथुर’ और ‘संवाहक’ के मध्य जुए में हारे सोने के सिक्कों के लिए लड़ाई होती है। ‘माथुर’ अपने सिक्के पाने के लिए बेचने के उद्देश्य…

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mrachkatikam-5

मृच्छकटिकम्-5 : जुआरी पाशों की तरफ खिंचा चला ही आता है

‘वसंतसेना’ दरिद्र ‘चारुदत्त’ से प्रेम करती है, ऐसा जानकर ‘मदनिका’ कहती है : क्या मंजरीरहित आमों पर मधुकारियां (भौरें) कभी बैठी हैं? वसंतसेना : तभी…

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mrachkatikam-4

मृच्छकटिकम्-4 : धरोहर व्यक्ति के हाथों में रखी जाती है न कि घर में

‘चारुदत्त’ को ‘मैत्रेय’ बताता है, “शकार बलात् वसंतसेना का पीछा करते हुए यहाँ आया था। और वह न्यायालय में वाद दायर करने की बात कहते…

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mrachkatikam-3

मृच्छकटिकम्-3 : स्त्री के हृदय में प्रेम नहीं तो उसे नहीं पाया जा सकता

पूजा पूरी करने के बाद ‘चारुदत्त’ फिर से मातृदेवियो को बलि देने जाने के लिए ‘मैत्रेय’ को आदेश देता है। लेकिन ‘मैत्रेय’ के मना कर…

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mrachkatikam-2

मृच्छकटिकम्-2 : व्यक्ति के गुण अनुराग के कारण होते हैं, बलात् आप किसी का प्रेम नहीं पा सकते

‘मैत्रेय’ का प्रश्न ‘चारुदत्त’ के सामने यथावत् है, ‘मरण और निर्धनता में तुम्हें क्या अच्छा लगेगा?’ गहरी श्वांस लेकर ‘चारुदत्त’ उत्तर देता है, “निर्धनता और…

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