‘दोस्तों’ की भारी भीड़ में भी अक्सर हम ख़ुद को अकेला क्यूँ पाते हैं?

आज (अगस्त का पहला रविवार) मित्रता दिवस था। इस मौके पर कुछ मित्रों के साथ शुभकामना और बधाई सन्देशों का आदान-प्रदान हुआ। इनमें एक मित्र…

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कैसे सनकी चीनी शासकों पर लगाम कसने के लिए कई डोरियाँ तो चीन में ही मौज़ूद हैं?

भारत के लिए चीन की चुनौती ‘राष्ट्रीय सरोकार’ से जुड़ा मसला है। कैसे? यह हाल की दो ख़बरों से अन्दाज़ा लग सकता है। ‘इंडिया टुडे’…

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जब कोई ‘दोहरे चरित्र’ के साथ चीन की चुनौती से निपटने की बात करे, तो हँसी क्यूँ न आए भला?

शुरुआत ताज़ातरीन दो घटनाओं से। अभी आठ तारीख़ की बात है। ख़ुद को राष्ट्रवादी कहने-समझने वाले एक संगठन का सन्देश व्हाट्स ऐप पर प्रसारित हुआ।…

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मई माह, कभी बारात की सामूहिक मेहमाननवाज़ी का महीना भी होता था, याद है?

वैश्विक महामारी ‘कोरोना’ के इस दौर में देशव्यापी तालाबन्दी है। इसलिए शादी-ब्याह भी नहीं हो रहे हैं। वरना अप्रैल, मई, जून के महीनों में तो…

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बेटा! मेरे नाम की चिट्ठी भेज दे, अब भगवान मुझे बुला ले

ये एक माँ के बोल हैं। सुनकर मन खिन्न रहा दिनभर। समझ नहीं आया कि क्या करूँ, किससे कहूँ। कैसे मदद करूँ। उस माँ की,…

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मनुष्य का सार है ‘रस’, नहीं तो जीवन ‘नीरस’

जीवन ‘चाहना’ का नाम है। ‘चाहना,’ वस्तुत: रस की होती है। और ‘रस’ हमारे हर ज्ञान का आधार बनता है। उदाहरण के लिए, सूर्योदय पूर्व…

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विज्ञान ‘चाँद’ को धरती पर ले आया पर धरती की ही गुत्थियाँ न सुलझा पाया

दो दिन पहले दो ख़बरें पढ़ीं। दोनों दिलचस्प। विज्ञान के दो दीगर पहलुओं से जुड़ी हुईं। साथ ही हमें सोचने पर मज़बूर करती हुईं भी।…

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टुकड़ों में बँटे हम ‘आत्मनिर्भर’ हों तो कैसे?

एक किस्सा है। हम में से कई लोगों ने थोड़े-बहुत फ़र्क के साथ बचपन से ही सुना होगा। एक बार हमारे शरीर के अंगों में…

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क्या कोरोना और कश्मीर के बीच भी कोई सम्बन्ध हो सकता है?

सोचने और समझने में थोड़ा अजब लग सकता है। लेकिन सच हो तो शायद अचरज न लगे। मामला कोरोना और कश्मीर के बीच सम्बन्ध का…

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लगता है, जैसे हम समाज में हैं पर ‘समाज’ कहीं नहीं है!

किस्सा 1967-68 का है। जाने-माने व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय के संस्मरण के रूप में यह किस्सा ‘दैनिक भास्कर’ अख़बार के फीचर पेज ‘साहित्य रंग’ में प्रकाशित…

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