वसंतसेना बदली हुई गाड़ी से उद्यान की तरफ जा रही होती है। वसंतसेना की प्रतीक्षा में अधीर चारुदत्त बार-बार विदूषक से मार्ग देखने का अनुरोध…
View More मृच्छकटिकम्-16 : प्रेम में प्रतीक्षा दुष्कर है…Author: Vikas
मृच्छकटिकम्-13 : काम सदा प्रतिकूल होता है!
वसंतसेना अपनी सेविका के साथ चारुदत्त से मिलने निकल जाती है। चारुदत्त अपने भवन में बैठे दुःखी मन से अपने दुर्दिनों को याद कर रहा…
View More मृच्छकटिकम्-13 : काम सदा प्रतिकूल होता है!सुनो! ये दिवाली नहीं, दीवाली है
“सुनो! ये जो तुम दिवाली-दिवाली बोलती रहती हो न, ये दिवाली नहीं है। दीवाली है। दिवाली बोलती हो और दिवाली ही लिख देती हो। ग़लत…
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