देखिए, अगर ‘यक्ष’ आज के सन्दर्भ में ‘धर्म’ से प्रश्न पूछें तो वे और उनके उत्तर कैसे होंगे?

समीर शिवाजीराव पाटिल, भोपाल, मध्य प्रदेश

हर समय कोई यक्ष अपने प्रश्न लिए उपस्थित रहता है, जहाँ कर्तव्य-अकर्तव्य, कर्म-अकर्म, धर्म-अधर्म के झंझावत में मनुष्य का सम्पूर्ण अस्तित्त्व दाँव पर लगा होता है। पूर्वकाल में आप्तजन ऐसे कई प्रश्नों के उत्तर हम उत्तराधिकारियों के लिए छोड़ गए हैं। ये प्रश्न शेष रह गए, अन्यान्य कल्पों में उनके उत्तर की गवेषणा धर्म करता है। तो प्रस्तुत है यक्ष और धर्म का एक नवसंवाद, जिसमें परिकल्पना की गई है कि अगर ‘यक्ष’ आज के सन्दर्भ में ‘धर्म’ से कुछ प्रश्न पूछें, तो वे कैसे और उनके उत्तर कैसे होंगे? एक नज़र…  

यक्ष : व्याभिचारी दंपति किसे कहा जाता है?

धर्म :  पति-पत्नी जब अपने निजी सुख, भोग, राग, आदि कामनाओं से प्रेरित होकर गृहस्थ कर्म में प्रवृत्त होते हैं, व्याभिचारी दंपति कहे जाते हैं।

यक्ष :  व्याभिचारी दंपति के क्या लक्षण होते हैं?

धर्म : पति-पत्नी की – अहन्ता का केन्द्र निज भोगषणा का होना, बुद्धि का अविद्या से आच्छादित होना, चित्तवृत्ति का असद् गामी होना और मन का भ्रमित होना, व्याभिचारी दंपति के लक्षण हैं।

यक्ष : गृहस्थ दंपति कब अव्याभिचारी कही जाती है?

धर्म : गृहस्थ दंपति का जीवन जब देव, ऋषि, पितृ और भूतादि ऋण का कृतज्ञतापूर्वक सदाचारवृत्ति से प्रतिपूर्ति करने में रत रहता है तो वह अव्याभिचारी दंपति कही जाती है।

यक्ष : अव्याभिचारी दंपति के क्या लक्षण होते हैं?

धर्म :  पति-पत्नी का मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से धर्मनीति द्वारा नियत कर्तव्य पालन में जीवन व्यतीत कर देना अव्याभिचारी दंपति का लक्षण है।

यक्ष : व्याभिचारी और अव्याभिचारी दंपति को किस फल की प्राप्त होते हैं?

धर्म : व्यभिचारी दंपति को जीवन में तृष्णा, अशांति, क्लेश और भय की प्राप्ति होती है। अव्याभिचारी दंपत्ति को सन्तुष्टि, क्षांति, सुख और निर्भयपद मिलता है। 
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(नोट: समीर #अपनीडिजिटलडायरी के साथ शुरुआत से जुड़े हुए हैं। लगातार डायरी के पन्नों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं। उज्जैन के रहने वाले हैं और भोपाल में नौकरी करते हैं। पढ़ने-लिखने में स्वाभाविक रुचि है। डायरी पर उपनिवेशी भड़िहाई नाम की एक श्रृंखला भी लिख रहे हैं।) 

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