कल एक बहुत प्रिय मित्र को एकान्तवास में भेज दिया गया। उनका बेटा भी संग में, इस काल में ग्रसित हो गया। कल ही एक…
View More विस्मृति बड़ी नेमत है और एक दिन मैं भी भुला ही दिया जाऊँगा!Tag: अपना पन्ना
बुद्ध त्याग का तीसरे आर्य-सत्य के रूप में परिचय क्यों कराते हैं?
बुद्ध होने के लिए इच्छाओं को त्यागना पड़ता है। यह त्याग अत्यधिक कठिन है। इस त्याग को, इस निरोध को मोक्ष का मार्ग भी कहा गया है। “क्षणिकाः…
View More बुद्ध त्याग का तीसरे आर्य-सत्य के रूप में परिचय क्यों कराते हैं?बता नीलकंठ, इस गरल विष का रहस्य क्या है?
रास्ते थे, सड़के थीं, नदियाँ, पहाड़, हवाई किलों से गुजरने वाले पथ और चलने वाले असंख्य पाथेय, जो अपनी-अपनी छाप देकर वहाँ चले गए हैं,…
View More बता नीलकंठ, इस गरल विष का रहस्य क्या है?प्रश्न है, सदियाँ बीत जाने के बाद भी बुद्ध एक ही क्यों हुए भला?
त्यागना। इसे सामान्य भाषा में हमेशा के लिए किसी चीज को छोड़ देना कह देते हैं। जैसे दान देना भी त्याग है। वैसे, अक्सर हम धन त्यागने…
View More प्रश्न है, सदियाँ बीत जाने के बाद भी बुद्ध एक ही क्यों हुए भला?योग क्या है, कभी सोचकर देखा क्या हमने?
बीते छह सालों की तरह इस सातवें साल भी 21 जून को दुनियाभर में ‘अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के आयोजन हुए। ख़ूब तस्वीरें दिखीं। तरह-तरह के आसन,…
View More योग क्या है, कभी सोचकर देखा क्या हमने?दूर कहीं पदचाप सुनाई देते हैं…‘वा घर सबसे न्यारा’ ..
शोर में बहुधा एकांत छिन जाने का खतरा रहता है। पर कुछ शोर मन को बहुत भाते हैं। मसलन- चिड़ियों की चहचहाट, टिटहरी की चीख, मुंडेर पर…
View More दूर कहीं पदचाप सुनाई देते हैं…‘वा घर सबसे न्यारा’ ..धर्म-पालन की तृष्णा भी कैसे दु:ख का कारण बन सकती है?
भगवान बुद्ध दुःख के कार्य-कारण बताते हैं। इसमें दुःख समुदाय, यह दूसरा आर्यसत्य है। दुःख है तो दुःख के कारण भी होते ही हैं। इन कारणों को…
View More धर्म-पालन की तृष्णा भी कैसे दु:ख का कारण बन सकती है?बाबू , तुम्हारा खून बहुत अलग है, इंसानों का खून नहीं है…
देवास के जवाहर चौक में एक ही बड़ी सी दुकान थी झँवर सुपारी सेंटर। मंगरोली सुपारी वहीं मिलती थी, जिसे काटो तो नारियल जैसी लगती थी। घर में एक…
View More बाबू , तुम्हारा खून बहुत अलग है, इंसानों का खून नहीं है…“अपने प्रकाशक खुद बनो”, बुद्ध के इस कथन का अर्थ क्या है?
भगवन बुद्ध ने दु:ख को पहला सत्य बताया। बड़े अद्भुत हैं बुद्ध। बहुत लम्बी-चौड़ी बात नहीं करते। एक शब्द में बता दिया कि समस्या क्या है। …
View More “अपने प्रकाशक खुद बनो”, बुद्ध के इस कथन का अर्थ क्या है?रास्ते की धूप में ख़ुद ही चलना पड़ता है, निर्जन पथ पर अकेले ही निकलना होगा
रास्ते की धूप में ख़ुद ही चलना पड़ता है। चाहे नरम धूप हो या कड़क। सब देह को ही सहना है। धूप जब भीतर आत्मा तक छनकर…
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