हमारा समाज ऐसा है, जिसमें हर कोई ख़ुद को सम्पूर्ण ज्ञानी मानता है। और अपनी या अपने फैसले की तुलना में दूसरे को कमतर या…
View More क्या रेस्टोरेंट्स और होटल भी अब ‘हनी ट्रैप’ के जरिए ग्राहक फँसाने लगे हैं?Tag: सरोकार
‘संस्कृत की संस्कृति’ : आज की संस्कृत पाणिनि तक कैसे पहुँची?
पिछली कड़ी में हमने व्याकरण के आचार्यों का उल्लेख किया। संस्कृत वांग्मय में सभी विषयों का आदि अर्थात् सबसे पहले उपदेश करने वाले ब्रह्मा हैं।…
View More ‘संस्कृत की संस्कृति’ : आज की संस्कृत पाणिनि तक कैसे पहुँची?‘मायाबी अम्बा और शैतान’ : स्मृतियों के पुरातत्त्व का कोई क्रम नहीं होता!
ये सन्नाटा तब टूटा, जब ‘उस पैर’ ने उसे फिर कुरेदा। नींद के बोझ से उसकी आँखें बोझिल थीं। चिपचिपी जुबान सूजकर दोगुनी मोटी हो…
View More ‘मायाबी अम्बा और शैतान’ : स्मृतियों के पुरातत्त्व का कोई क्रम नहीं होता!‘संस्कृत की संस्कृति’ : भाषा और व्याकरण का स्रोत क्या है?
मानव अपनी माता के गर्भ से ही भाषा से परिचित होना शुरू कर देता है। कोई ऐसा नहीं जो अपने विचारों को व्यक्त नहीं करता…
View More ‘संस्कृत की संस्कृति’ : भाषा और व्याकरण का स्रोत क्या है?‘मायावी अंबा और शैतान’ : वह पैर; काश! वह उस पैर को काटकर अलग कर पाती
“डर के साए में, और मैं? साली, हरामजादी, मैं इस पूरे इलाके का बादशाह हूँ, बादशाह…, समझी तू!”“अभी वक्त है, सँभल जा। हम सिर्फ इतना…
View More ‘मायावी अंबा और शैतान’ : वह पैर; काश! वह उस पैर को काटकर अलग कर पातीचीरहरण के कुअवसर पर द्रौपदी का कोप : पूरी और सच्ची कविता यहाँ सुनिए
सोशल मीडिया और मीडिया किस तरह किसी की सामग्री के साथ व्यवहार करता है, यह लोकप्रिय कविता इसका ताज़ा उदाहरण है। चीरहरण के कुअवसर पर…
View More चीरहरण के कुअवसर पर द्रौपदी का कोप : पूरी और सच्ची कविता यहाँ सुनिए‘मायावी अंबा और शैतान’ : सुना है कि तू मौत से भी नहीं डरती डायन?
रोजी मैडबुल चुपचाप बैठा हुआ बोतल से घूँट-घूँट पानी पीते हुए उसके माथे के कोने से बह रहे खून को देख रहा था। वह उस…
View More ‘मायावी अंबा और शैतान’ : सुना है कि तू मौत से भी नहीं डरती डायन?‘संस्कृत की संस्कृति’ : मिलते-जुलते शब्दों का अर्थ महज उच्चारण भेद से कैसे बदलता है!
उच्चारण के महत्त्व को दर्शाता उदाहरण हमने पिछली कड़ी में देखा था कि एक अच्छे पाठक, वक्ता को उसी तरह शब्दों का उच्चारण करना चाहिए…
View More ‘संस्कृत की संस्कृति’ : मिलते-जुलते शब्दों का अर्थ महज उच्चारण भेद से कैसे बदलता है!‘मायावी अंबा और शैतान’ : अच्छा हो, अगर ये मरी न हो!
चूँकि हालात उसकी बर्दाश्त से बाहर थे, उसका दिमाग तरह-तरह के ख्यालों में डूबने-उतराने लगा था। फर्श गीला था। ठंडा और बर्फीला भी। कुछ पलों…
View More ‘मायावी अंबा और शैतान’ : अच्छा हो, अगर ये मरी न हो!‘संस्कृत की संस्कृति’ : ‘अच्छा पाठक’ और ‘अधम पाठक’ किसे कहा गया है और क्यों?
पूर्व में हमने देखा कि वर्ण उत्पत्ति की समस्त प्रक्रिया में बुद्धि क्रमश: विकसित होती हुई वाणी के रूप में परिणत होती है। इससे वक्ता…
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